Friday, August 31, 2012

कुपोषण की वजह शाकाहार है -Narendr Modi

'आर्य भोजन' ब्लॉग पर  नई पोस्ट 

कुपोषण की वजह शाकाहार है -Narendr Modi


सौंदर्य के प्रति अधिक जागरूक
वॉल स्ट्रीट जर्नल को दिए इंटरव्यू में मोदी ने कहा, मध्यमवर्ग सेहत के बजाय सौंदर्य के प्रति अधिक जागरूक है.गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्य वर्ग को लेकर विवादास्पद बयान दिया है.
अमेरिका के मशहूर अखबार वॉल स्ट्रीट जनरल को दिए गए इंटरव्यू में मोदी से जब पूछा गया कि उनके राज्य में कुपोषण की दर इतनी ज्यादा क्यों है, तो इसके जवाब में मुख्यमंत्री ने कहा, गुजरात मोटे तौर पर शाकाहारी राज्य है.
और तो और गुजरात एक मध्य वर्गीय (मिडल क्लास) राज्य है. मध्य वर्ग को सेहत से ज्यादा सुंदरता की फिक्र होती है-यही चुनौती है.
http://aryabhojan.blogspot.in/2012/08/narendr-modi.html

जापान शिक्षा मेले में Indian students की भीड़

जापानी सरकार ने 2009 में जापान में उच्च शिक्षा के भूमंडलीकरण की पहल के तहत यह परियोजना शुरू की थी। परियोजना का एक महत्वपूर्ण मिशन की दुनिया भर से उत्कृष्ट छात्रों को आकर्षित करना है। इस पहल के तहत 2020 तक तीन लाख विदेशी छात्रों को जापान में दाखिला दिलाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा गया है।’’
जापानी दूतावास के कांउसलर, श्री रयोजी नोडा ने इस अवसर पर बोलते हुये कहा कि जापान में भारतीय छात्र अध्ययन के लिए एक अन्य आकर्षण जापानी कंपनियों में नौकरी के ज्यादा अवसर भी हैं, जो भारत भर में तेजी से विस्तार कर रही हैं। इन्हें जापान के ज्ञान और जापानी भाषा की समझ वाले उत्कृष्ट भारतीय कर्मियों की तलाश है।“
फिलहाल संयुक्त राज्य अमेरिका में एक लाख की तुलना में जापान में करीब 600 भारतीय छात्र अध्ययन कर रहे हैं। ऐसा मुख्य रूप से जागरूकता में कमी के लिए कारण है। यह मेला जापान में पढ़ाई के लिए भारतीय छात्रों में जागरूकता पैदा करने और उन्हें आकर्षित करने में मदद करेगा।
जापानी सरकार की छात्रवृत्तियों के अलावा, अलग-अलग विश्वविद्यालय, शैक्षिक फाउंडेशन और कुछ कंपनियां, अंतर्राष्ट्रीय छात्रों को कानूनी तौर पर विश्वविद्यालयों के सत्र के दौरान हफ्ते में 28 दिन और छुट्टियों के दौरान एक दिन में आठ घंटे तक काम करने की अनुमति देती हैं।
इसके अलावा, आगंतुकों को भी जापानी एनिमेशन, चिबी मराकू चान और सारस पर चढ़ कर, जापान की अत्याधुनिक और पर्यावरण के अनुकूल प्रौद्योगिकियों के बारे में वीडिया। मेले में ओरीगामी (कागज शिल्प), इकेबाना (फूल व्यवस्था) और जापानी कैलिग्राफी और इलेक्ट्रॉनिक्स का प्रदर्शन हुआ। साथ ही हरी चाय के साथ कुछ जापानी नाश्ते का आनंद लिया जा सका।
इसी तरह का जापान शिक्षा मेला बंग्लुरू में एक सितंबर (शनिवार) को आयोजित होगा ।

जापान शिक्षा मेले में जुटी भारतीय छात्रों की भीड़

 
नई दिल्ली 30 अगस्त, 2012 : जापान में उच्च शिक्षा के बढ़ते मौकों के प्रति भारतीय छात्रों को अधिक से अधिक आकर्षित करने के लिए आज राजधानी में आर के पुरम के दिल्ली पब्लिक स्कूल में एक दिन का जापान शिक्षा मेला आयोजित किया गया।

ग़ज़लगंगा.dg: कोयले की खान में दबकर रहा हीरा बहुत.

हर किसी की आंख में फिर क्यों नहीं चुभता बहुत.
कोयले की खान में दबकर रहा हीरा बहुत.

इसलिए मैं धीरे-धीरे सीढियां चढ़ता रहा
पंख कट जाते यहां पर मैं अगर उड़ता बहुत.

Thursday, August 30, 2012

रहीम चाचा A. K. Hangal की मृत्यु

'जनपक्ष' ब्लॉग पर 

एक वैचारिक निष्‍ठावान कलाकार का अंतिम प्रयाण

आज सुबह ए के हंगल साहब की मृत्यु की खबर कला-संस्कृति से जुड़े प्रतिबद्ध लोगों के साथ उनके अनगिनत प्रशंसकों के लिए भी हृदय-विदारक थी. उनकी फिल्मों के बारे में जानने वाले कम ही लोग वामपंथ और इप्टा के साथ उनकी गहरी सम्बद्धता के बारे में जानते हैं. अभी एक मित्र ने फोन करके बताया की भगत सिंह की फांसी के बाद जो पहली श्रद्धांजलि सभा हुई, उसे हंगल साहब ने ही आयोजित किया था. आजादी की लड़ाई में वर्षों जेलों में बिताने वाले हंगल साहब अपने जीवन के अंतिम क्षणों में भी इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे. जनपक्ष की ओर से उन्हें श्रद्धांजलि और लाल सलाम. हमारे अनुरोध पर राजस्थान प्रलेसं के राज्य सचिव साथी प्रेमचंद गांधी ने यह स्मृति लेख लिखा है. 
एक वैचारिक निष्‍ठावान कलाकार का अंतिम प्रयाण
मध्य प्रदेश साहित्य सम्मेलन द्वारा शिवपुरी में आयोजित नाटक रचना शिविर, मई 1983 में राजेन्द्र रघुवंशी व ए. के. हंगल
(अवतार कृष्‍ण हंगल जन्‍म 1 फरवरी 1917 निधन 26 अगस्‍त, 2012)
बहुत से लोगों की तरह मैंने भी हंगल साहब को बरसों तक ‘शोले’ के रहीम चाचा के तौर पर एक शानदार अभिनेता के रूप में ही जाना। शोले के वक्‍त मैं बहुत छोटा था, करीब दस बरस की उम्र रही होगी। बहुत से पिताओं की तरह मेरे पिता भी सिनेमा को खराब और बच्‍चों को बिगाड़ने वाला माध्‍यम मानते थे। इसलिये मैंने ‘शोले’ फिल्‍म को देखकर नहीं सुनकर जाना। उन दिनों इस फिल्‍म के एलपी रिकॉर्ड हर जगह बजते रहते थे और मेरे जैसे अनेक लोग फिल्‍म का सुनकर आनंद लेते थे। जो लोग फिल्‍म देख चुके होते थे, वे किरदारों का बहुत खूबसूरती से बयान करते थे। इमाम साहब यानी रहीम चाचा के रोल में हंगल साहब की दर्द भरी आवाज़ एक ऐसी कशिश पैदा करती थी कि रोंगटे खड़े हो जाते थे। बाद में जब फिल्‍म देखी तो ठाकुर, गब्‍बर के अलावा जो किरदार सबसे ज्‍यादा याद रहा वह हंगल साहब का ही था। फिल्‍म के उस दृश्‍य को देखकर, जिसमें पोते की मृत्‍यु पर हंगल साहब का लाजवाब किरदार खामोशी में एक बूढ़े की लाचारगी को  बयान करता है, मैं अक्‍सर रोने को हो जाता था और आंखें डबडबाने लगती थीं।.....

Wednesday, August 29, 2012

'औरत की हक़ीक़त' ब्लॉग पर नई पोस्ट

'औरत की हक़ीक़त' ब्लॉग पर नई पोस्ट

The most precious thing in the world is virtuous woman.


fact n figure: सोशल मीडिया के एक्टिविस्ट टीम की जरूरत

 प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मार्केंडेय काटजू ने इलेक्ट्रोनिक और सोशल मीडिया के नियमन की जरूरत पर बल दिया है. इसके लिए उन्होंने प्रेस काउंसिल अक्त 1978  में संशोधन का आग्रह किया है. वे इन दोनों मीडिया को प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के दायरे में लेन के पक्षधर हैं. इस ब्लॉग पर 20  अगस्त के पोस्ट में मैंने भी इस तरह के विचार रखे थे लेकिन मेरी अवधारणा   थोडा भिन्न है. काउंसिल शिकायतों की सुनवाई करने वाली एक संवैधानिक संस्था है. मेरे विचार में सोशल मीडिया के अंदर गड़बड़ी फ़ैलाने या इसका दुरूपयोग करने वालों को नियंत्रित करने के लिए इतनी लंबी प्रक्रिया कारगर नहीं होगी. यह प्रिंट की अपेक्षा फास्ट मीडिया है इसलिए अफवाहों को कुछ ही क्षणों में जवाबी कार्रवाई कर निरस्त करने के जरिये ही इसपर नियंत्रण पाया जा सकता है. इसके सेवा प्रदाता अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क का संचालन करते हैं इसलिए कानूनी प्रक्रिया बहुत पेचीदा हो सकती है. राष्ट्रहित में इसपर नियंत्रण के लिए एक्टिविस्ट किस्म के लोगों की एक टीम होनी चाहिए जो इस मीडिया में दखल रखते हों. वे काउंसिल के दायरे में काम करें लेकिन उनका विंग अलग हो तभी बात बनेगी. हमला जिस हथियार से हो जवाब भी उसी हथियार से देना होता है. यह प्रोक्सी वार का जमाना है. इसका जवाब एक्टिविज्म       के जरिये ही दिया जा सकता है. दूसरी बात यह कि आरएनआई, ड़ीएवीपी जैसी संस्थाओं में कुछ अहर्ताओं के आधार पर भारतीय वेबसाइट्स को सूचीबद्ध कर उन्हें और जवाबदेह बनाने की संभावनाओं पर भी गंभीरता से विचार करने की जरूरत है.

---देवेंद्र गौतम
fact n figure: सोशल मीडिया के एक्टिविस्ट टीम की जरूरत:

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Tuesday, August 28, 2012

औरतों ने की एक सप्‍ताह की सेक्‍स स्‍ट्राइक Sex Strike


औरतों ने की एक सप्‍ताह की सेक्‍स स्‍ट्राइक
टोगो के राष्ट्रपति ग्‍नासिंगबे की सबसे बड़ी विरोधी और विपक्षी नेता इसाबेले लोगों से अपील करते हुए।

लोम। अफ्रीका के एक देश में इन दिनों प्रदर्शनकारियों की रिहाई के लिए महिलाओं से एक सप्‍ताह तक सेक्‍स नहीं करने की अपील की जा रही है। टोगो में सरकार के विरोध में कई प्रदर्शनों के दौरान सैकड़ों की तादाद में विरोधियों को गिरफ्तार किया गया है। यह अपील इन लोगों की रिहाई के लिए दबाव के रूप में की गई है।
इस अपील का असर भी देखने को मिल रहा है। औरतों ने अपने पतियों को एक सप्‍ताह तक दूर रहने को कह दिया है। 
टोगो की विपक्षी नेता इसाबेले अमेगांवी की अपील के अनुसार, देश की महिलाओं को सोमवार से ही अपने पति या पार्टनर के साथ बिस्‍तर पर दूरी बना लेनी चाहिए। उन्‍होंने कहा कि मैं सभी महिलाओं को एक हफ्ते की सेक्स हड़ताल, उपवास और दुआ करने के लिए आमंत्रित करती हूं ताकि हमारे गिरफ्तार भाइयों और पतियों को रिहा किया जा सके। 

औरतों ने की एक सप्‍ताह की सेक्‍स स्‍ट्राइक
विरोध की मुख्‍य वजह अमेगांवी का समूह ‘चलिए टोगो को बचाएं’ है। यह समूह देश में चार दशकों से जारी इयादेमा परिवार की सरकार का अंत चाहता है। सैकड़ों लोग राष्ट्रपति फाउरे ग्नासिंगबे के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं और सड़क पर उतर रहे हैं।
औरतों ने की एक सप्‍ताह की सेक्‍स स्‍ट्राइक
ग्नासिंगबे वर्ष 2005 से टोगो के राष्ट्रपति हैं। उन्होंने अपने पिता ग्नासिंगबे इयादेमा की मौत के बाद टोगो की कुर्सी संभाली। ग्नासिंगबे इयादेमा ने 38 साल तक टोगो पर शासन किया था।औरतों ने की एक सप्‍ताह की सेक्‍स स्‍ट्राइक

टोगो में लगातार विरोध जारी हैं। हर दिन सैकड़ों विरोधियों को हिरासत में लेकर कठोर यातनाएं दी जा रही हैं।
इसके बावजूद प्रदर्शनकारी अपनी मांग पर अड़े हैं। वे टोगो में लोकतंत्र लाने के लिए सड़क पर उतर रहे हैं।




Monday, August 27, 2012

बच्चे ने बनाई कैसर जांचने की सस्ती प्रणाली Cancer

बच्चे ने बनाई कैसर जांचने की सस्ती प्रणाली Cancer - जैक को अपने शोध की पुष्टि करवाने में काफ़ी मशक्कत करनी पड़ी अमरीका के मेरीलैंड में रहने वाले 15 साल के छात्र जैक एंद्राका के शौक बिल्कुल वैसे हैं जैसा उनकी ...

Sunday, August 26, 2012

गुड खाना और गुलगुलों से परहेज करना

सिरफिरा-आजाद पंछी: गुड खाना और गुलगुलों से परहेज करना: का श ! हमारे देश के सभी बुद्धिजीवी भी हिंदी के प्रति पूरे ईमानदार होकर ज्यादा से ज्यादा हिंदी का प्रयोग करते हुए अपनी सभी बातें/विचार/रच...

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ऐसे ही हरेक अपने गुणों के विकास पर भी उचित ध्यान दे ताकि परलोक में शाश्वत और दिव्य जीवन पाए .

Saturday, August 25, 2012

आयुर्वेदिक दवाओं में मिला ‘ज़हर’ Toxins

हिन्दी ब्लोगर्स फोरम इंटरनेश्नल पर नई पोस्ट

आयुर्वेदिक दवाओं में मिला ‘ज़हर’ Toxins

  • Saturday, August 25, 2012
  • by  DR. ANWER JAMAL 

    अमेरिकी शोधकर्ताओं ने भारत में बनी आयुर्वेदिक दवाओं में ‘खतरनाक ज़हर’ पाए जाने का दावा किया है। इनके मुताबिक, यह ‘ज़हर’ ब्रेन, किडनी यहां तक कि पूरे नर्वस सिस्टम (तंत्रिका तंत्र) को नष्ट कर सकता है। कई गर्भवती महिलाओं द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली आयुर्वेदिक दवाओं में खतरनाक लेड (सीसा) की अधिकता पाई।
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    Friday, August 24, 2012

    राजगुरु जी की 104वी जयंती पर "हम अपने मन को निर्मल बनाकर जियें"

    http://hbfint.blogspot.com/2012/08/104-rajguru.htmlSource 
    आज 24 अगस्त है ... आज  राजगुरु जी की 104वी जयंती है ...

    देश के लिए क़ुर्बान होने वाले वीरों के लिए "हिंदी ब्लोगर्स फोरम इंटरनेश्नल" की और से प्रेममय मनोभाव .
    शिवराम हरि राजगुरु मराठी थे . उन्होंने हिन्दू धर्म-ग्रंन्थों तथा वेदों का अध्ययन तो किया ही लघु सिद्धान्त कौमुदी जैसे क्लिष्ट ग्रन्थ को भी बहुत कम आयु में ही कण्ठस्थ कर लिया था। वह छत्रपति शिवाजी की छापामार युद्ध-शैली के बड़े प्रशंसक थे.

    इसके बावजूद वह क्षेत्रवाद और सांप्रदायिकता की भावना से ऊपर थे . अपने मन की संकीर्णता से मुक्ति पाना अंग्रेजों से मुक्ति पाने से भी ज़्यादा कठिन काम है. यह काम उन्होंने किया और हमारे लिए एक अच्छी मिसाल क़ायम की.
    उनका जन्म 24 अगस्त 1908 को हुआ था. आज उनके जन्मदिन पर हम सब अपने मन को संकीर्णताओं से मुक्त करने का संकल्प लें.
    उन्हें 23 मार्च 1931 को फाँसी पर लटका दिया गया था ।

    जिन्हें फाँसी पर नहीं लटकाया गया, उनके काल के दूसरे सब भी मर चुके हैं. उन्हें फांसी देने वाला जल्लाद, जज और अंग्रेज़ सब मर गए हैं.

    मौत सबको आनी है.  उन्हें आई है तो हमें भी आएगी.
    हम अपने मन को निर्मल बनाकर जियें और बुराई से पवित्र हो कर मर जाएँ, तो हम सफल रहे.
    यह एक लड़ाई हरेक आदमी अपने आप से लड़ ले तो हमारे देश की हर समस्या हल हो जायेगी.
    वर्ना हिसाब लेने वाला एक प्रभु परमेश्वर तो हमारे सभी छिपे और खुले कामों का साक्षी है ही.
    अपने शुभ अशुभ कर्मों को खुद हमें ही भोगना है. 


    Acidity से बचाव के Top 10 tips


     कुमार राधारमण जी बता रहे हैं-

    सीने में जलन से बचाव के 10 उपाय

    सीने में जलन हर किसी की चिर-परिचित समस्या है।
    खाने की नली और आमाशय बीच बना वॉल्व इस समस्या की जड़ है। इस वॉल्व का काम भोजन को आगे आमाशय में बढ़ने देना और फिर ऊपर लौटने से रोकना है। वॉल्व के कमज़ोर होने से भोजन ऊपर की ओर लौटने लगता है। इसके साथ ही पाचन के लिए आमाशय में बना तेज़ाब उलट कर खाने की नली में जाने लगता है। नली की अंदरुनी सतह इसे सह नहीं पाती और उसमें जलन होने लगती है।
    इससे बचने के लिए यह उपाय किए जा सकते हैं -
    १.टमाटर, प्याज़, लाल मिर्च, काली मिर्च, संतरा, चॉकलेट व पेपरमिंट भोजन- नलिका के निकास पर स्थित वॉल्व को कमज़ोर बना देते हैं। इन चीज़ों को खाने से तकलीफ होती हो तो समझ लें कि इनसे परहेज़ करने में ही भलाई है। 
    २.इसी प्रकार तले हुए वसा-युक्त व्यंजन भी कई लोगों को रास नहीं आते। इन्हें कम से कम लें।
    ३.चाय, कॉफी और कोला ड्रिंक्स में पाई जाने वाली कैफीन अन्न नली के वॉल्व की कार्यक्षमता को चौपट कर देती है। यदि सीने में जलन रहती है तो इन पदार्थों से दूरी बना लें। 
    ४.तंबाकू हर रूप में खाने की नली के वॉल्व का दुश्मन है। यह पेट की सुरक्षा प्रणाली को भी ठेस पहुँचाता है। इसके दुष्प्रभावों से आमाशय तेज़ाब को सहने के काबिल नहीं रहता। 
    ५.व्यक्ति को विवेकशून्य बनाने के साथ-साथ शराब भोजन-नली के वॉल्व को भी सुस्त कर देती है। यह तकलीफ "नीट" पीने वालों तथा मदिरा के साथ सिगरेट के कश खींचने वालों में सबसे प्रबल होती है। ऐसे में पेट में अम्ल भी अधिक बनता है जिससे स्थिति और भी बदतर हो जाती है।

    ६.यह छोटी सी बात गांठ बांध लें कि भोजन करने के दो-ढाई घंटे बाद तक लेटने और उलटे झुकने-मुड़ने से परहेज़ करें। गुरुत्वाकर्षीय प्रभाव के आगे वॉल्व को नतमस्तक होना ही पड़ता है। भोजन करने के बाद कुछ देर टहलना सबसे अच्छा है।टहलने न जा पाएँ तो पीठ टेककर सीधे बैठें। इसके लिए यह नियम बना लें कि रात्रि-भोज सोने के समय से कम से कम दो-ढाई घंटे पहले ही कर लें। काम धंधे से देर से लौटना और भोजन करके चटपट बिस्तर में लेट जाना एसिडिटी का कारण बनता है। 

    7.खाना कितना ही स्वादिष्ट हो और पकवान कितने ही प्रकार के हों, भोजन करते समय पेट के साथ कभी ज़्यादती नहीं करें। पेटू होने से स्वास्थ्य तो बिगड़ता ही है, पेट भी भोजन को नहीं संभाल पाता। जिनकी भोजन नली का वॉल्व कमजोर उन्हें इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए। 

    ८.कलेजे की जलन से छुटकारा पाने के लिए थोड़ी-थोड़ी देर में पानी पीते रहें। हर आधे-एक घंटे में एक-दो घूँट पानी पीते रहने से एसिडिटी से बच सकते हैं। 

    ९.मोटापा स्वास्थ्य का बहुत बड़ा शत्रु है। इसके कारण भोजननली का वॉल्व भी काम करना बंद कर देता है। पेट पर लदी चर्बी वॉल्व को शिथिल बनाती है, डायफ्राम के पेशी तंतुओं में भी छितरा-पन पैदा करती है, जिससे पेट कई बार उचक कर छाती में जा बैठता है। इसे ही हायेटस हर्निया कहते हैं। ऐसे में आमाशय से भोजन के उलटकर खाने की नली में जाने पर रोक-टोक खत्म हो जाती है। 

    १०.ढीले आरामदायक वस्त्र पहनें। तंग कसी हुई पेंट और जीन्स फैशनेबल ज़रूर दिख सकती हैं, पर पेट के लिए कष्टकारी है। कमर अधिक कसी रहे तो खाने की नली का वॉल्व ठीक से काम नहीं करता। 

    एंटासिड लेने के नियम 
    कभी-कभार की जलन और बदहज़मी से निपटने के लिए एंटासिड लिया जा सकता है। डायजीन, म्यूकेन, जेल्युसिल आदि सभी इस दृष्टि से उपयोगी हैं पर इन्हें लगातार लेना ठीक नहीं होता। कुछ एंटासिड कब्ज़ पैदा करते हैं, कुछ सोडियम होने के कारण रक्तचाप को प्रभावित करते हैं। जलन लगातार बनी रहती हो जो चिकित्सक से परामर्श लें। 
    आयुर्वेदिक उपाय 
    - एक ग्लास पानी में दो चम्मच सेब का सिरका तथा दो चम्मच शहद मिलाकर खाने से पहले सेवन करें, यह भी एक बेहतरीन उपाय है 
    - खाना के बाद आधा चम्मच सौंफ चबाएं। 
    - भोजन के पहले अलोवेरा जूस का सेवन करें । 
    - ताजा पुदीने के रस का रोज सेवन करना है।

    Thursday, August 23, 2012

    Hindi भाषा में Typing करें

     

    कहीं भी अपनी भाषा में टंकण (Typing) करें - Google Input Tools

    प्रयोगकर्ता को मात्र अंग्रेजी वर्णों में लिखना है जिसप्रकार से वह शब्द बोला जाता है और गूगल इनपुट टूल उसे चुनी गयी लिपि में बदल देगा। उपलब्ध इनपुट टूल लिप्यंतरण (transliteration), IME, और ऑनस्क्रीन कीबोर्ड उपलब्ध कराता है।

    ग़ज़लगंगा.dg: आखरी सांस बचाकर रखना

    एक उम्मीद लगाकर रखना.
    दिल में कंदील जलाकर रखना.

    कुछ अकीदत तो बचाकर रखना.
    फूल थाली में सजाकर रखना.

    जिंदगी साथ दे भी सकती है
    आखरी सांस बचाकर रखना.

    पास कोई न फटकने पाए
    धूल रस्ते में उड़ाकर रखना.

    ये इबादत नहीं गुलामी है
    शीष हर वक़्त झुकाकर रखना.

    लफ्ज़ थोड़े, बयान सदियों का
    जैसे इक बूंद में सागर रखना.

    भीड़ से फर्क कुछ नहीं पड़ता
    अपनी पहचान बचाकर रखना

    ----देवेंद्र गौतम
    ग़ज़लगंगा.dg: आखरी सांस बचाकर रखना:

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    बाबा फ़रीद Baba Fareed


    भारत की धरती पर संतों की लंबी कतार हमेशा से लगी रही। ख़्वाज़ा बख़्तियार काकी के शिष्य बाबा फ़रीद भी उनमें से एक थे। हांसी और अजोधन में सक्रिय रहे बाबा फ़रीद का भारतीय सूफ़ीमत के इतिहास में विशिष्ट स्थान है। उनके पूर्वज बारहवीं शताब्दी में काबुल से आकर पंजाब में बस गए थे। बारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में ग़ज़नी और क़ाबुल के बीच की लड़ाई और मध्य एशिया से मंगोलों के बार-बार के आक्रमण से परेशान होकर कई लोग भारत की ओर चले आए। क़ाबुल से जो शरणार्थी आए थे, उनमें से एक थे क़ाज़ी शुएब। वे एक विद्वान और धार्मिक प्रकृति के व्यक्ति थे। 1157 ई. के आसपास अपने तीन पुत्रों के साथ वे लाहौर पहुंचे। भारत आगमन के बाद इस परिवार में एक पुत्र का जन्म हुआ । सन 1173 ई. में जिस बालक का जन्म हुआ उसका नाम फ़रीद-उद-दीन मसूद रखा गया। बाद में एक सूफ़ी संत और चिश्तिया सिलसिला के तीसरे प्रमुख के रूप में वे शैख़ फ़रीद-उद-दीन, गंज-ए-शकर के नाम से प्रसिद्ध हुए। धर्मोपदेशक होने के नाते उन्हें शैख़ कहा जाता है। भारतीय परंपरा के अनुसार आदर से उन्हें बाबा कहा जाने लगा।
    बाबा फ़रीद का जन्म 1173 ई. में मुल्तान के एक गांव कहतवाल में हुआ था। उनके पिता क़ाजी शुएब ग़ज़नी शासकों की ओर से खोतवाल के क़ाज़ी थे। यह जगह मुल्तान के महरान और अजोधन के बीच में है। उनकी मां, हज़रत कुरैशम बीवी, साध्वी स्वभाव की थी और उनके ही प्रभाव से उनका मन सूफ़ीवाद की ओर मुड़ गया। उनके पिता हज़रत जमाल-उद-दीन सुलेमान भी क़ुरआन के बड़े ज्ञाता थे और बाद में खोतवाल के क़ाज़ी हुए। उन्होंने ही बालक फ़रीद के मन में इस्लामिक साहित्य के अध्ययन की ललक जगाई। उनकी आरंभिक शिक्षा कहतवाल में हुई थी जहां उन्होंने फारसी और अरबी भाषा के अध्ययन के अलावा क़ुरआन के सिद्धांतों की शिक्षा भी प्राप्त की। 18 वर्ष की उम्र में बाबा फ़रीद मुल्तान चले गए। मुल्तान में बाबा फ़रीद मौलाना मिनहाजउद्दीन तिर्मिज़ी की मदरसा (पाठशाला) में अध्ययन करते थे, जहां उन्होंने क़ुरआन और इस्लामी विधि व न्याय व्यवस्था की शिक्षा प्राप्त की। कहा जाता है कि उन्हें पूरा क़ुरआन कंठस्थ हो गया और वे दिन में एक बार उसका पूरा पाठ कर डालते थे। उन्हें प्यार से लोग “क़ाज़ी बच्चा दीवाना” कहने लगे। एक रहस्यवादी संत के रूप में उनकी ख्याति पूरे शहर में फैलने लगी।
    उन्हीं दिनों वहां बालक फ़रीद की भेंट ख़्वाजा बख़्तियार काकी से हुई। वे उनके शिष्य बन गए और अध्यात्म-साधना में जुट गए। पांच वर्षों तक कांधार में उच्च शिक्षा ग्रहण कर बाबा ने ईरान, इराक़, ख़ुरासन और मक्का की यात्रा की। यात्राओं से जब बाबा लौटे तो वे एक अत्यधिक निपुण व्यक्ति थे। वे सुल्तान की दरबार में उच्चस्थ पद पाने के क़ाबिल थे। लेकिन बाबा फ़रीद का चिन्तन तो कहीं और था। न उन्हें दरबार की ज़रूरत थी न धन की। वे तो आध्यात्मिक मार्ग के अनुयायी थे। 1221 में जब ख़्वाजा बख़्तियार काकी दिल्ली गए तो बाबा फ़रीद भी उनके साथ दिल्ली चले आए।

    Wednesday, August 22, 2012

    K. C. Sudarshan चल दिए मस्जिद की ओर







    Ved Quran: जब आरएसएस के पूर्व प्रमुख के. सी. सुदर्शन जी ईद की नमाज़ अदा करने के लिए चल दिए मस्जिद की ओर Tajul Masajid

    Dr. Ayaz Ahmad 
    परम पूज्य हैं सुदर्शन, हम अनुयायी एक ।
     उनके बौद्धिक सुन बढ़े, आडम्बर सब फेंक ।
    आडम्बर सब फेंक, निराली सोच रखें वे ।
    सबका ईश्वर एक,  वही जग-नैया खेवे ।  
    मूर्ति पूज न पूज, पूजते पत्थर पुस्तक ।
     पद्धति बनी अनेक, पहुँचिये जैसे रब तक ।।




    Tuesday, August 21, 2012

    साध्वी फिर पहुंची बलात्कारी स्वामी के पास Sadhvi Chidarpita

    चर्चामंच पर  जी ने बताया है कि
    साध्वी फिर पहुंची बलात्कारी स्वामी के पास ...

    साध्वी चिदर्पिता एक बार फिर खबरों में हैं। ज्ञान की बड़ी-बड़ी बाते करने वाली चिदर्पिता ने प्रेम विवाह में आई खटास के बाद फिर बलात्कारी स्वामी की शरण में ही जाना बेहतर समझा। एक बात बता दूं बलात्कारी स्वामी...
    source  : http://charchamanch.blogspot.in/2012/08/blog-post_19.html
     

    fact n figure: प्रेस काउंसिल की तर्ज़ पर बने वेब काउंसिल

    असम हिंसा को लेकर पूरे देश में अफवाह फ़ैलाने के लिए पाकिस्तान और बांग्लादेश से जिस तरह सोशल नेटवर्किंग साइट्स और वेबसाइट्स का दुरूपयोग किया गया उसे देखते हुए प्रेस काउंसिल की तर्ज़ पर एक वेब काउंसिल के गठन की जरूरत महसूस हो रही है. भारत सरकार ने इस दिशा में पाकिस्तान सरकार से लेकर नेटवर्किंग साइट्स की भूमिका पर आपत्ति जताई है. केस-मुक़दमे की भी तैयारी है. लेकिन भविष्य में इस तरह की साजिश न हो और हो तो उसका तुरंत मुहतोड़ जवाब दिया जा सके इसके लिए इतना पर्याप्त नहीं है. यह सही है कि इंटेलिजेंस एजेंसियों में साइबर अपराध पर नियंत्रण के लिए विशेष सेल हैं. लेकिन  इस तरह की साजिशों से निपटने की लिए जिस मुस्तैदी की जरूरत पड़ती है उसके लिए भारत के वेब जगत के सक्रिय लोग ज्यादा कारगर भूमिका निभा सकते हैं. वे अपनी रचनाओं और अपने नेटवर्क के जरिये तुरंत इस हमले की काट कर सकते हैं. इसमें जांच और उसकी रिपोर्ट आने और उसका विश्लेषण किये जाने तक की मोहलत नहीं होती. यदि सरकार ब्लॉग, वेबसाट्स और पोर्टल का संचालन करनेवाले जिम्मेवार लोगों को मिलकर वेब  काउंसिल का गठन करे तो आनेवाले दिनों में राष्ट्र विरोधियों के छायायुद्ध का बेहतर जवाब दिया जा सकेगा.

    --देवेंद्र गौतम

     fact n figure: प्रेस काउंसिल की तर्ज़ पर बने वेब काउंसिल:

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    Sunday, August 19, 2012

    ग़ज़लगंगा.dg: तुम उसकी गर्दन नहीं नाप सकते

    (पूर्वोत्तर की भगदड़ पर)
    ये भगदड़ मचाई है जिस भी किसी नेउसे ये पता हैकि तुम उसकी गर्दन नहीं नाप सकतेकि अब तुममे पहली सी कुव्वत नहीं हैकभी हाथ इतने थे लंबे तुम्हारेकि उड़ते परिंदों के पर गिन रहे थेकोई सात पर्दों में चाहे छुपा होपकड़ कर दिखाते थेपिंजड़े का रस्तामगर अब वो दमखमकहीं भी नहीं हैकि अब आस्मां क्याज़मीं तकतुम्हारी पकड़ में नहीं है.....

    Read more: http://www.gazalganga.in/2012/08/blog-post_18.html#ixzz23z870mltग़ज़लगंगा.dg: तुम उसकी गर्दन नहीं नाप सकते:

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    Saturday, August 18, 2012

    ईद पर कविता


    राजेन्द्र तेला जी की ईद पर कविता का एक अंश 
    बहुत दिन बाद आया
    मुबारक दिन ईद का
    खुशियाँ मनाने का
    रंजिशें मिटाने का
    निरंतर इंसान बन कर
    जीने का
    अमन का पैगाम
    फैलाने का
    http://mushayera.blogspot.in/2012/08/blog-post_18.html


    ग़ज़लगंगा.dg: हुकूमत की चाबी.....

    हकीकत यही है
    ये हम जानते हैं
    कि गोली चलने का कोई इरादा
    तुम्हारा नहीं है.
    कोई और है जो
    तुम्हारे ही कंधे पे बंदूक रखकर
    तुम्हीं को निशाना बनाता रहा है.
    सभी ये समझते हैं अबतक यहां पर
    जो दहशत के सामां दिखाई पड़े हैं
    तुम्हीं ने है लाया .
    तुम्हीं ने है लाया
    मगर दोस्त!
    सच क्या है
    हम जानते हैं
    कि इन सब के पीछे
    कहीं तुम नहीं हो.....
    फकत चंद जज्बों  के कमजोर धागे
    जो उनकी पकड़ में
    रहे हैं बराबर .
    यही एक जरिया है जिसके  सहारे
    अभी तक वो सबको नचाते रहे  हैं
    ये तुम जानते हो
    ये हम जानते हैं
    तुम्हारी ख़ुशी से
    तुम्हारे ग़मों से
    उन्हें कोई मतलब न था और न होगा
    उन्हें सिर्फ अपनी सियासत की मुहरें बिछाकर यहां पर
    फकत चाल पर चाल चलनी है जबतक
    हुकूमत की चाबी नहीं हाथ आती
    हकीकत यही है
    ये तुम जानते हो
    ये हम जानते हैं
    हमारी मगर एक गुज़ारिश है तुमसे
    अगर बात मानो
    अभी एक झटके में कंधे से अपने
    हटा दो जो बंदूक रखी हुई है
    घुमाकर नली उसकी उनकी ही जानिब
    घोडा दबा दो
    उन्हें ये बता दो
    कि कंधे तुम्हारे
    हुकूमत लपकने की सीढ़ी नहीं हैं.

    --देवेंद्र गौतम
    ग़ज़लगंगा.dg: हुकूमत की चाबी.....:

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    Thursday, August 16, 2012

    दान-पर्व है ईद-उल-फितर Eid 2012


    पावन ऋग्वेद के दसवें मण्डल के एक सौ सत्रहवें सूक्त के छठे मंत्र में भी उल्लेख है "केवलाघो भवति केवलादी" अर्थात् जो अपनी रोटी अकेले खाता है, वह पाप करता है, अर्थात् रोटी बांटकर खाओ। इस प्रकार ईद-उल-फितर में निहित पवित्र कुरआन के संदेश और ऋग्वेद के मंत्र में बड़ी समानता है।
    एक दान-पर्व है ईद-उल-फितर Eid 2012


    http://vedquran.blogspot.in/2012/08/eid-2012.html

    Wednesday, August 15, 2012

    fact n figure: बांसुरी नई तो सुर पुराना क्यों!

    राष्ट्रपति के पद को सुशोभित करने के बाद भी प्रणव मुखर्जी अपनी पुरानी भूमिका से मुक्त नहीं हो पाए हैं. स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम उनके संबोधन से तो यही प्रतीत होता है. भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलनों की चिंता का विषय संसद और सरकार का हो सकता है राष्ट्रपति का नहीं. अब उन्हें कांग्रेस के ट्रबुल शूटर की भूमिका का निर्वाह करने की भी जरूरत नहीं. संसदीय संस्थाओं की गरिमा की चिंता स्वाभाविक है. लेकिन क्या गरिमामय संस्थाओं में बैठे लोग लाखों-करोड़ों के घोटालों को अंजाम दें तो यह चिंता का विषय नहीं होना चाहिए? इससे संसदीय संस्थाओं की गरिमा पर आंच नहीं आती? क्या जनता की शांतिपूर्ण आवाज़ को इस नाम पर दबा देना लोकतंत्र के लिए अनुकूल है कि इससे अशांति फ़ैल रही है. यानी उसे अहिंसा की जगह हिंसा का रास्ता अपनाना चाहिए. उग्रवादियों और आतंकवादियों को इस तरह का प्रवचन क्यों नहीं दिया जाता.
    क्या विदेशी बैंकों में जमा काला धन चिंता का विषय नहीं होना चाहिए? इस सवाल पर लाल कपडा के आगे सांड की तरह भड़कने वाले नेताओं के खिलाफ इसलिए नहीं बोलना चाहिए कि इससे संसद की गरिमा पर आंच आ रही है? क्या वोट डालने के बाद जनता को सरकार के कार्यों की समीक्षा नहीं करनी चाहिए? आखिर संसद बनती किसकी बदौलत है. यदि जनता की लोकतांत्रिक तरीके से न्यायोचित मांगों से संसदीय संस्थाओं की गरिमा भंग होती है तो इसे अभी और इसी क्षण भंग हो जाना चाहिए और लुटेरों की रक्षा में लगी संस्थाओं की गरिमा तो क्या उनका अस्तित्व भी ज्यादा दिनों तक बरक़रार नहीं रहनेवाला. इतना तय है.

    ---देवेंद्र गौतम
    fact n figure: बांसुरी नई तो सुर पुराना क्यों!:

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    Monday, August 13, 2012

    तिरंगा शान है अपनी ,फ़लक पर आज फहराए ,


    Flag Foundation Of India  Flag Foundation Of India 
    तिरंगा 
    शान है अपनी ,फ़लक पर आज फहराए ,
    . .................. शालिनी कौशिक [कौशल]

    एक निवेदन सभी महिला ब्लोग्गर्स  से-आपको शिखा कौशिक  के एक नए ब्लॉग ''WORLD'sWOMAN BLOGGERS ASSOCIATION -JOIN THIS NOW  ''का लिंक दे रही हूँ यहाँ जुड़ें और महिला शक्ति को संगृहीत होने का सुअवसर दें.
                 आभार 
               शालिनी कौशिक 





    हड्डियों के दर्द में "सुदर्शन का रस"


    हड्डियों के दर्द में रामबाण है "सुदर्शन का रस" - योगाचार्य विजय श्रीवास्तव



    सुदर्शन एक ऐसा पौधा है जो लगभग अधिकतर उद्यानों व घरो में गमलों की शोभा बढ़ाते हैं इस वनौषधि को आमतौर पर सुन्दरता के लिए लगाते हैं लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि सुदर्शन के पत्तों में हड्डियों के दर्द को हरने की अद्भुत क्षमता है ये तमाम औषधीय गुणों से भी परिपूर्ण है | इस पौधे का रस हड्डियों के दर्द में चमत्कारिक प्रभाव दिखाता है | इसके पत्ते को आग पर गर्म करके दर्द वाले स्थान पर लपेटना काफी श्रेयष्कर है | यह पौधा घरों में फूल पत्ती लगाने के लिए बनायी गयी क्यारियों और पार्कों में बहुतायत दिखाई देती है, इसका फूल बड़ा, सुन्दर, सफ़ेद व सुगन्धित होता है | इसकी पत्तियों में वेदना हरने का अचूक गुण विद्यमान है , कहीं भी दर्द होने पर उस स्थान पर इसे पीस कर बाँध देने से जल्द ही पर्याप्त राहत मिल जाती है |
    http://yogachary.blogspot.in/2012/08/blog-post.html



    ईसाई पादरी अपना रहे हैं इस्लाम Spirituality


    ईसाई पादरी अपना रहे हैं इस्लाम

    शायद आप यकीन ना करें लेकिन हकीकत यही है कि इस्लाम की गोद में आने वाले लोगों में एक बड़ी तादाद ईसाई  पादरियों की है। यह किताब इसी सच्चाई को आपके सामने पेश करती है। यह ईसाई किसी एक मुल्क या इलाके  विशेष के नहीं है, बल्कि दुनिया के कई देशों के हैं। अंगे्रजी की इस किताब में 18  ईसाई पादरियों का जिक्र हैं जिन्होंने सच्चे दिल से इस्लाम की सच्चाई को कुबूल किया और ईसाईयत को छोड़कर इस्लाम को गले लगा लिया।

    इस किताब में इनके वे इंटरव्यू शामिल किए गए हैं जिसमें उन्होंने बताया कि आखिर उन्होंने इस्लाम क्यों अपनाया। उनकी नजर में इस्लाम में ऐसी क्या खूबी थी कि उन्होंने पादरी जैसे सम्मानित ओहदे का त्यागकर इस्लाम को अपना लिया। 
    पुस्तक  में शामिल ये अट्ठारह पादरी ग्यारह  देशों  के हैं। इनमें शामिल हैं अमेरिका के यूसुफ एस्टीज, उनके  पिता, मित्र पेटे, स्यू वेस्टन, जैसन कू्रज, राफेल नारबैज, डॉ. जेराल्ड डिक्र्स, एम. सुलैमान, कनाडा के डॉ. गैरी मिलर, ब्रिटेन के इदरीस तौफीक, ऑस्ट्रेलिया के सेल्मा ए कुक, जर्मनी के डॉ. याह्या ए.आर. लेहमान,रूस के विचैसलव पॉलोसिन, इजिप्ट के इब्राहीम खलील, स्पैन के एंसलम टोमिडा, श्रीलंका के जॉर्ज एंथोनी ,तंजानिया के मार्टिन जॉन और ब्रूंडी की मुस्लिमा। 
    • इस्लाम अपनाने वाले ये पादरी वे हैं जिन्होंने हाल ही के दौर में इस्लाम को अपनाया। पढि़ए इस किताब को और जानिए इस्लाम की सच्चाई इन पूर्व पादरियों की जुबान से।
    • इस किताब को यहां पेश करने का मकसद इस्लाम से जुड़ी लोगों की गलतफहमियां दूर करना और इस्लाम की सच्चाई को बताना है, मकसद किसी भी मजहब का मजाक उड़ाना नहीं है।
    • क्लिक कीजिए और रूबरू होइए इस किताब से 

      Eighteen Priests Journey From Church to Mosque

    Sunday, August 12, 2012

    जन्माष्टमी पर सबको शुभकामनाएं

    जन्माष्टमी के मौके पर सबको शुभकामनाएं

    जन्माष्टमी के मौके पर सबको शुभकामनाएं और दो लिंक - श्री कृष्ण जी हमें भी प्रिय है और हम भी उनका आदर करते हैं - Dr. Anwer Jamalब्लॉगर्स मीट वीकली (5) Happy Janmashtami & Happy Ramazan   ...
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    Saturday, August 11, 2012

    fact n figure: रांची की शांति भंग करने की साजिश

    रांची शहर की शांति भंग करने की लगातार साजिश रची जा रही है और पुलिस प्रशासन साजिशकर्ताओं की नकेल कसने में आंशिक भूमिका ही निभा पा रही है. कल 10 अगस्त को असम और मयांमार की घटनाओं के विरोध में अल्पसंख्यकों की रैली निकली तो यह विरोध के जनतांत्रिक अधिकारों का उपयोग था. लेकिन रैली में शामिल कुछ लोग यदि दुकानों में लूटपाट और दूसरे संप्रदाय को भड़काने का काम करने लगे तो यह एक साजिश और शरारत थी.रांची शहर की शांति भंग करने की लगातार साजिश रची जा रही है और पुलिस प्रशासन साजिशकर्ताओं की नकेल कसने में आंशिक भूमिका ही निभा पा रही है. कल 10 अगस्त को असं और मयांमार की घटनाओं के विरोध में अल्पसंख्यकों की रैली निकली तो यह विरोध के जनतांत्रिक अधिकारों का उपयोग था. लेकिन रैली में शामिल कुछ लोग यदि दुकानों में लूटपाट और दूसरे संप्रदाय को भड़काने का काम करने लगे तो यह एक साजिश और शरारत थी. जाहिर है कि कुछ लोगों ने भीड़ में शामिल होकर उसे उपद्रवी बनाने की कोशिश की. दूसरे संप्रदाय के लोग भी मुकाबले के लिए सड़क पर आ गए. पुलिस ने स्थिति को संभाला. विधान सभा अध्यक्ष सीपी सिंह ने भी मौके पर स्वयं पहुंच कर लोगों को समझाया बुझाया और मामला शांत किया. लेकिन पुलिस भीड़ में छुपे साजिशकर्ताओं को चिन्हित नहीं कर पाई. हालांकि  उस वक़्त यह संभव भी नहीं था. शांति बरक़रार रखना तात्कालिक ज़रुरत थी. लेकिन इतना तय है कि कुछ लोग लगातार शांति भंग करने की कोशिश कर रहे हैं. उनकी नकेल कसना ज़रूरी है.
    अभी चार दिन पहले शहर की कुछ जगहों पर एक तालिबानी पोस्टर सात कर लड़कियों को जींस पहनने पर तेज़ाब फेंक देने की धमकी दी गयी थी. हालाँकि उस पोस्टर में तालिबान के अलावा नक्सली, आपराधिक और लोकल-बाहरी विभेद के स्वर भी आ रहे थे. पुलिस ने इसे कुछ शरारती तत्वों का काम माना था. लेकिन यदि शरारत का लक्ष्य दहशत फैलाना हो तो उसे हलके ढंग से नहीं लेना चाहिए. वह भी स्वाधीनता दिवस की पूर्व बेला में. हो सकता है इन साजिशों के पीछे कोई संगठन न हो और कुछ शरारती तत्व व्यक्तिगत स्तर पर विभिन्न तरीकों   से यह साजिश रच रहे हों लेकिन ऐसी शरारतें तभी सूझती हैं जब पुलिस-प्रशासन की सतर्कता घटती है और उसकी क्षमता कमजोर दिखती है. इसलिए वो जो भी हों उन्हें सबक सिखाना ज़रूरी है.

    --देवेंद्र गौतम
    fact n figure: रांची की शांति भंग करने की साजिश:

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    Thursday, August 9, 2012

    इंसान के व्यवहार को जानना जटिल क्यों है ? : Facebook


    फेसबुक पर सुनीता जी ने कहा -
    किसी भी जानवर के व्यवहार को समझना बहुत आसान होता है बनिस्बत इंसान के व्यवहार के...जानवर तभी खाते हैं जब उन्हें भूख लगती है...तभी सोते हैं जब उन्हें नींद आती है...वे अपने बच्चों की रक्षा और देखभाल भी करते हैं...परन्तु इंसानी व्यवहार को समझना बहुत कठिन है...यह बहुत जटिल है...हम तब भी खाते हैं जब हमें भूख नहीं होती...तब भी पड़े रहते हैं जब हमें नींद नहीं आती....हम ख़ास परिस्थितियों में अपने बच्चे को भी रिजेक्ट कर देते हैं ...हम छोटी छोटी सी बात पर भी आक्रमण करने को तैयार रहते हैं...हम लालची भी होते हैं और सामान बेहिसाब जमा भी करते रहते हैं जबकि हमें उनकी ज़रुरत भी नहीं होती...हम दूसरों को मार डालने पर भी उतारू हो सकते हैं सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए...हम अपने पडोसी से सिर्फ इस बात के लिए नफरत कर सकते हैं कि वह किसी दूसरी जाति, धर्म का है या हमसे भिन्न भाषा बोलता है...क्यों? कुछ लोग एक ही बात पर अलग अलग तरह से क्यों रिएक्ट करते हैं? आखिर क्यों?
    इस पर आई टिप्पणियों में से कुछ ये हैं-
    फेसबुक पर सुनीता जी ने कहा -
    किसी भी जानवर के व्यवहार को समझना बहुत आसान होता है बनिस्बत इंसान के व्यवहार के...जानवर तभी खाते हैं जब उन्हें भूख लगती है...तभी सोते हैं जब उन्हें नींद आती है...वे अपने बच्चों की रक्षा और देखभाल भी करते हैं...परन्तु इंसानी व्यवहार को समझना बहुत कठिन है...यह बहुत जटिल है...हम तब भी खाते हैं जब हमें भूख नहीं होती...तब भी पड़े रहते हैं जब हमें नींद नहीं आती....हम ख़ास परिस्थितियों में अपने बच्चे को भी रिजेक्ट कर देते हैं ...हम छोटी छोटी सी बात पर भी आक्रमण करने को तैयार रहते हैं...हम लालची भी होते हैं और सामान बेहिसाब जमा भी करते रहते हैं जबकि हमें उनकी ज़रुरत भी नहीं होती...हम दूसरों को मार डालने पर भी उतारू हो सकते हैं सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए...हम अपने पडोसी से सिर्फ इस बात के लिए नफरत कर सकते हैं कि वह किसी दूसरी जाति, धर्म का है या हमसे भिन्न भाषा बोलता है...क्यों? कुछ लोग एक ही बात पर अलग अलग तरह से क्यों रिएक्ट करते हैं? आखिर क्यों?
    इस पर आई टिप्पणियों में से कुछ ये हैं-


      • Shweta Mishra हमारा हर व्यवहार हमारे ब्रेन में ही डिजाइन होता है और वहीँ से संचालित होता है...ब्रेन के विकास और स्वास्थ्य में ज़रा सा भी विचलन किसी भी व्यक्ति के वैयक्तिक व्यवहार में बदलाव ला सकता है...जैसे- ब्रेन में डोपामिन (एक रासायनिक पदार्थ) की कमी अवसाद(dipression ) की स्थिति पैदा कर सकती है जिस से व्यक्ति अत्यधिक उदास रहता है उसमे निराशावादी प्रवृत्ति आ जाति है,वह मरने की बातें सोच सकता है या उसकी कुछ काम करने की इच्छा नहीं होती आदि आदि...वह ख़ुदकुशी भी कर सकता है...टेम्पोरल लोब में electric activities का असामान्य बहाव से व्यक्ति एक ही जगह घूरे जाता है (staring )...कुछ अप्रत्याशित व्यवहार करता है ....ऐसा अटैक पूरा होने के उपरान्त उसे इस बारे में कुछ याद नहीं होता (इसे मिर्गी भी कहते हैं)... ब्रेन के अगले हिस्से में क्षति से व्यक्ति पागलों जैसे भी व्यवहार कर सकता है....विटामिन B1 की कमी से याददाश्त खराब हो जाती है... एड्रिनल ग्रंथि में एड्रीनलीन की अधिकता व्यक्ति को लड़ने या भागने (लड़ाई से) के लिए तैयार करती है.....वह या तो बहुत उग्र हो जाता है या बहुत गुस्से में रहता है या फिर एकदम कायर और डरपोक बन सकता है....
      • Seema Singh Chandel जाति...धर्म....के नाम पर बँटे लोगो को क्य़ा कहूँ......इनकी मानसिकता इतनी प्रदूषित होती है कि कोई फ्रेशनर काम नहीं करता...
      • DrAmitabh Pandey सिर्फ यही सोच हमें जानवरों से अलग करती है.मनुष्य तो स्वार्थी होता ही है वो चाहे कोई भी हो.जानवर नहीं होता .हमारा पेट भर जाता है तो नहीं खाते है .जानवर भी नहीं खाते है .लेकिन बसेरा सभी ढूढ़ते है.हा यह बात सही है की आज हम जानवरों की अपेक्षा ज्यादा हिंसक हो गए है .लेकिन यह मानव का स्वाभाव है क्योकि उसका मन स्थिर नहीं होता है.और जब मन स्थिर नहीं होता तभी हम अपनी प्रगति के लिए जायज और नाजायज काम करते है.
      • Jyoti Mishra chinta jayaj hai...!
      • Vibhas Awasthi जानवर और इंसान के व्यवहार को समझने से पहले ... हमें उस मूल अंतर को ढूंढ़ना होगा.....जो जानवर और इंसान को अलग-अलग खानों में रखती है.....
        मंगलवार को 22:16 बजे ·  · 5

      • वस्तुत: हम भी एक जानवर ही हैं पर अन्य की अपेक्षा हममें बुद्धि ज्यादा है और हम उसी का सदुपयोग अथवा दुरुपयोग भी बेहिसाब करते हैं जिस तत्व का उपयोग अधिक होगा वह मुख्य होगा और तत्व गौड़ हो जाएँगे ठीक अंगों के उपयोग की तरह। उपयोग के बिनाह पर ही एक हाथ कम काम करता है इसी तरह नितान्त बौद्धिक होते जाने के कारण हम संवेदनाशून्य होते जा रहे हैं निरन्तर। यही भयावह स्थिति सोचकर शायद निदा फ़ाजली साहब ने लिखा कि-
        'सोच-समझ वालों को थोड़ी नादानी दे मौला'
      • Vibhas Awasthi जानवर और इंसान के अंतर पर हमने भी कुछ पढ़ा और मनन-चिंतन किया है.... वो आप लोगों से शेयर कर रहा हूं.....असहमति मुझे और अधिक विज़न देगी..
        मंगलवार को 22:29 बजे ·  · 4

      • Chandra Bhushan Mishra Ghafil स्वागत है सर!
      • Vibhas Awasthi प्रकृति द्वारा निर्मित हर जीव में दो चीज कॉमन होती हैं...
        - जिजीविषा - अंतिम सांस तक जिंदा रहने की इच्छा और उसके लिए संघर्ष की इच्छा
        - भुभक्षा - अपने मन और शरीर को आनंद (मानसिक और शारीरिक) में रखने की इच्छा....

        लेकिन इंसान में एक तीसरा तत्व भी होता है....
        - जिज्ञासा.... उसकी इस इच्छा की पूर्ति जितने आंशिक सत्यों के जरिये होती जाती है....वो ही उस इंसान के व्यवहार का निर्धारण करता जाता है....
        एक जैसी जिज्ञासा होने के बावजूद बच्चों को जो उनका समाधान मिलता है...वो उनके तब तक के अर्जित ज्ञान (जिज्ञासा के विविध उत्तरों) के आधार पर अलग-अलग मानसिकता और भाव जगत का निर्माण करती जाती है....इसलिए इंसान का व्यवहार जानवर की तुलना में ज्यादा जटिल और Unpredictable होता जाता है....
        मंगलवार को 22:35 बजे ·  · 9

      • Chandra Bhushan Mishra Ghafil मैं आपसे पूरा सहमत हूं सर! सॉरी आपके विज़न को और आयाम फिलहाल मैं नहीं दे सकता यहां
      • Vinay Mishra who r we? According to science we r superior animal coz we have more developed brain..... who says that human & animals r diff.? Ya other animals can be better than us coz they have better feelings than us.
      • DrAmitabh Pandey हमने इस ग्रह पर जन्म लिया है। अपनी अनगिनत इच्छाओं को संतुष्‍ट करने के प्रयास में हम जीते हैं और फिर मर जाते हैं। केवल कई जन्मों के बाद हम उस अवस्था तक पहुँचते हैं जब केवल एक ही इच्छा रह जाती है: अपने स्रोत-अपने जीवन के अर्थ, को प्राप्‍त करने की इच्छा। एक बार जब यह अंतिम और परम इच्छा प्रकट हो जाती है,बाकी सब कुछ अनावश्यक और अर्थहीन लगता है। व्यक्‍ति अवसाद-ग्रस्त हो जाता है, वह जीवन में भावात्मक और अध्यात्मिक खालीपन अनुभव करता है, मानो इस संसार में कुछ भी नहीं जो खुशी लेकर आ सके। जीवन निरर्थक और उसमें कुछ वास्तविक अभाव लगता है....."मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है?" "मैं क्यों जीवित हूँ?"। यही प्रश्‍न हैं जो लोगों को कबला में लाते हैं।
        16 घंटे पहले ·  · 3
      • Vibhas Awasthi ‎Shweta MishraChandra Bhushan Mishra Ghafilभाई.... कल तक हमने जानवर और इंसान के बीच अंतर जिज्ञासा को लिया था.... रतिया भर दिमगवा उधरै दौड़ता रहा....
        जानवरों के सामने भी कोई नयी चीज आती है तो वो अपनी Body language से जाहिर करते हैं - लेकिन हम उन्हें कौतूहल, विस्मय या आश्चर्य जैसी श्रेणियों में रख सकते हैं...
        लेकिन जिज्ञासा---- जानने की इच्छा....एक ऐसी मानसिक प्रवृत्ति है...जो इंसान को जानवरों की श्रेणी से अलग करती है.... अर्जित ज्ञान की श्रेणी ही ये निर्धारित करती है कि अपनी जिज्ञासा चाहे तो इंसान अध्यात्म में लगाये या परपंच में.....
        14 घंटे पहले ·  · 4
      • DrAmitabh Pandey आज मानवता का इतना असहाय रुप का होना वैसे ही है जैसे मिठाई को मिठाई का रुप तो दे दिया जाये पर उसकी मिष्टाता को नष्ट कर दिया जाये…!! । मनुष्य का शरीर तो हमें नजर आ रहा है पर मनुष्यता नदारद है..!! मनुष्य में मनुष्यता का होना बेहद ज़रूरी हैं वरना उस में और पशु में कोई फर्क ही न रह जायेगा ।
        14 घंटे पहले ·  · 4

      • Chandra Bhushan Mishra Ghafil विभास सर आपकी लाइन को एक क़दम और आगे बढ़ा देने पर श्वेता के प्रश्न का उत्तर दिखाई दे जा रहा है वह यह कि-
        मानव उसी जिग्यासा को शांत करने की क़वायद में इतना मशग़ूल हो गया है, इतने बौद्धिक प्रपंचों में उलझ गया है कि अन्य आवश्यक संवेदनात्मक वृत्तियाँ उसके लिए गौड़ होती होती लगभग समाप्तप्राय हो गयी हैं अत: उन्हें वह तरज़ीह नहीं दे रहा पर एकदम नकारना सम्भव नहीं क्योंकि वे वृत्तियाँ भी व्यक्तित्व का अनिवार्य पक्ष हैं परिणामत: उन्हें गौड़ और अनावश्यक समझने के कारण उसके वीभत्स रूप को अमल में ले आ रहा है
        13 घंटे पहले मोबाइल के द्वारा ·  · 4

      • Chandra Bhushan Mishra Ghafil विभास सर! 2+2=4 के जोड़-घटाव में उलझे, नितान्त भौतिक विकास की प्रक्रिया से गुज़र रहे आज के बौद्धिकों को शेरो-शा'इरी नहीं सुहाती, अनर्गल प्रलाप लगती है और कहीं से यदि सुनाई दे गयी, जैसा कि होना ही है क्योंकि यह भी एक आवश्यक वृत्ति है, तो वश चलने पर या तो वे शा'इर का क़त्ल कर देंगे अथवा बेवश होने पर अपना ही सर फोड़ लेंगे। इसीलिए विकास चँहुमुखी हो इसका विशेष प्रयास अपेक्षित है मानव-समाज को। चँहुमुखी से तात्पर्य भौतिकता, आध्यात्मिकता, बौद्धिकता और भावनात्मकता अथवा संवेदनात्मकता से है।
        (मेरे शेरो-शा'इरी के उद्धरण को मात्र उदाहरण स्वरूप स्वीकार किया जाय तात्पर्य भावात्मक, संवेदनात्मक वृत्तियों के प्रतिफल से है)
        13 घंटे पहले मोबाइल के द्वारा ·  · 3
      • Virendra Pratap Singh itani charcha ke bad sayad yahi niskarsh nikalata ha ki baudhik vikas me antar hi karan hai,to kya baudhik vikas hona achchha nahi hai?
        12 घंटे पहले ·  · 3

      • Chandra Bhushan Mishra Ghafil वीपी सर प्रणाम! आपका सवाल वाज़िब है। सर! बौद्धक विकास बाधक नहीं है यह बौद्धिकता के ही दम पर केवल और केवल मानव ही जान सकता है कि विकास प्रत्येक दिशा में संतुलित रूप से हो। और केवल मानव के लिए ही विकल्प उपलब्ध है कि वह अपना सर्वांगीण विकास करता है या केवल एक पक्ष का। वह एक हाथ कुशल बनाना चाहता है या दोनों तदनुरूप उसे प्रयत्न करना होगा। वर्ना एक हाथ रफ़्ता रफ़्ता नकारा हो जाएगा। यही विकल्प चुनने की स्वतन्त्रता ही शायद मानव-जीवन को जटिल और विसंगतिपूर्ण बनाती है वर्ना जानवरों के पास विभास सर का शब्द 'आश्चर्य' से ज्यादा और कोई विकल्प नहीं है अत: वहाँ कोई जटिलता और विसंगति नहीं है।
        11 घंटे पहले मोबाइल के द्वारा ·  · 4
      • Shailendra Pratap Singh मैं Chandra Bhushan Mishra Ghafil की बात से इत्तेफाक़ करता हूँ. Shweta Mishra, आपने जैसा पोस्ट में लिखा है कि जानवरों में एकत्रित करने की प्रवृत्ति नहीं होती, मेरे विचार से पूर्ण सत्य नहीं है. जानवरों और कीटों में भी यह प्रवृत्ति स्पष्ट दिखती है, चींटियाँ, मधुमक्खी के अतिरिक्त अनेक मांसाहारी जानवर आदि भी भोजन संचय करते हैं. ऊँट तो अपने शरीर में ही जल का संचय करता है. कहने का तात्पर्य यह कि ईश्वर ने सबको उसके survival के लिए पर्याप्त बुद्धि दे रखी है और सब उसके उपयोग से जीवित रहते हैं. मनुष्य को उसने कुछ अधिक बख्शी है इसलिये उसे इसका तुलनात्मक रूप से अधिक उपयोग करना पड़ता है. और शायद इसीलिये मनुष्य को "जीवधारियों में सर्वश्रेष्ठ" या "अशरफ-उल-मख़लूक़ात" कहा गया है. 
        आदिम काल में मनुष्य भी भविष्य की न सोच कर पशुओं की भाँति अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर लेता था पर कालान्तर में विकास के क्रम में और बुद्धि को अधिक विकसित कर सकने के कारण मनुष्य ने अपनी आवश्यकताओं को कम प्रयास में पूरा करना सीखा और सीख रहा है. मनुष्य की इस बुद्धि के कारण पशुओं को भी लाभ होता है, यथा - पशुओं को स्वास्थ्यवर्द्धक आहार तथा चिकित्सा आदि.
        पर यह भी सच है कि व्यक्तियों में स्वार्थपरता तो निश्चित रूप से उनके स्वयं के कथित पशुवत सोच के कारण ही होती हैं.
        11 घंटे पहले ·  · 4

      • Chandra Bhushan Mishra Ghafil एक बात और वीपी सर! व्यक्ति कौन सा अथवा कौन-कौन सा अथवा सभी में कौन सा विकल्प चुनेगा यह बहुत कुछ उसकी प्रकृति, परिस्थिति, अनुवांशिकता, संस्कार, शिक्षा और सामाजिक तथा पारिवारिक परिवेश आदि आदि पर निर्भर करता है
        11 घंटे पहले मोबाइल के द्वारा ·  · 4

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    22- मोम का सा मिज़ाज है मेरा / मुझ पे इल्ज़ाम है कि पत्थर हूँ -'Anwer'

    23- दिल तो है लँगूर का

    24- लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी - Allama Iqbal

    25- विवाद -एक लघुकथा डा. अनवर जमाल की क़लम से Dispute (Short story)

    26- शीशा हमें तो आपको पत्थर कहा गया (ग़ज़ल)

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