राखे बासी त्यागे ताज़ा.
अंधी नगरी चौपट राजा.
वो देखो लब चाट रहा है
खून मिला है ताज़ा-ताज़ा.
फटे बांस के बोल सुनाये
कोई राग न कोई बाजा.
अंदर-अंदर सुलग रही है
इक चिंगारी, आ! भड़का जा.
बूढा बरगद बोल रहा है
धूप कड़ी है छावं में आ जा.
जाने किस हिकमत से खुलेगा
अपनी किस्मत का दरवाज़ा.
हम और उनके शीशमहल में?
पैदल से पिट जाये राजा?
वक़्त से पहले हो जाता है
वक़्त की करवट का अंदाज़ा.
---देवेंद्र गौतम
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ग़ज़लगंगा.dg: अंधी नगरी चौपट राजा:
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और शैतान का उन लोगों पर कुछ क़ाबू तो था नहीं मगर ये (मतलब था) कि हम उन
लोगों को जो आख़ेरत का यक़ीन रखते हैं उन लोगों से अलग देख लें जो उसके बारे
में शक में (पड़े) हैं और तुम्हारा परवरदिगार तो हर चीज़ का निगरा है
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और शैतान का उन लोगों पर कुछ क़ाबू तो था नहीं मगर ये (मतलब था) कि हम उन
लोगों को जो आख़ेरत का यक़ीन रखते हैं उन लोगों से अलग देख लें जो उसके बारे
में शक ...
1 comments:
गजब गजल गंगा पढ़ी, गौतम जी आभार |
ऐसी ही उत्कृष्ट नित, मिले गजल हर बार ||
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