मैंने परमहंस जी की आत्मकथा 'योगी कथामृतम' अब से २५ साल पहले पढी थी . मैं उन्हें पसंद करता हूँ .
पुस्तक के अंत में उन्होंने अपना एक अनुभव भी लिखा है कि कैसे उन्होंने अपनी आत्मा की गहराई से हज़रात ईसा मसीह को तड़प कर पुकारा और उनसे उनकी मुलाक़ात हुई . उनकी यह किताब जो कोई भी पढ़ेगा उसे कुछ न कुछ नया जानने को मिलेगा. ऐसी किताबें पढ़कर ही मेरा झुकाव बचपन से ही योग कि तरफ हो गया था और मैं संन्यास लेकर हिमालय पर जाने और साधना करने के बारे में सोचने लगा था .
http://vedquran.blogspot.com/2010/04/way-to-god.html
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पुस्तक के अंत में उन्होंने अपना एक अनुभव भी लिखा है कि कैसे उन्होंने अपनी आत्मा की गहराई से हज़रात ईसा मसीह को तड़प कर पुकारा और उनसे उनकी मुलाक़ात हुई . उनकी यह किताब जो कोई भी पढ़ेगा उसे कुछ न कुछ नया जानने को मिलेगा. ऐसी किताबें पढ़कर ही मेरा झुकाव बचपन से ही योग कि तरफ हो गया था और मैं संन्यास लेकर हिमालय पर जाने और साधना करने के बारे में सोचने लगा था .
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यह कमेन्ट आज मैंने दिया है इस पोस्ट पर
आप भी जाएँ और जानें एक सनातनी सन्यासी के बारे में .
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