मनोज पटेल at पढ़ते-पढ़ते - 2 days ago
*अरुंधति रॉय का यह लेख आज इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित हुआ है. * *अरुंधति रॉय: मैं अपना पुरस्कार क्यों लौटा रही हूँ * (अनुवाद: मनोज पटेल) हालांकि मैं यह नहीं मानती कि पुरस्कार हमारे काम को मापने का कोई पैमाना होते हैं, मैं लौटाए गए पुरस्कारों के बढ़ते ढेर में 1989 में सर्वश्रेष्ठ पटकथा के लिए जीता गया अपना राष्ट्रीय पुरस्कार जोड़ना चाहूंगी. इसके अलावा, मैं यह भी स्पष्ट कर देना चाहती हूँ कि मैं यह पुरस्कार इसलिए नहीं लौटा रही हूँ क्योंकि मैं मौजूदा सरकार द्वारा पोसी जा रही उस चीज को देखकर "हैरान" हूँ जिसे "बढ़ती असहिष्णुता" कहा जा रहा है. सबसे पहले तो यह कि इंसानों की पीट-पीट कर हत्... more »
2 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (08-11-2015) को "अच्छे दिन दिखला दो बाबू" (चर्चा अंक 2154) (चर्चा अंक 2153) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर रचना,
आप सभी का स्वागत है मेरे इस #ब्लॉग #हिन्दी #कविता #मंच के नये #पोस्ट #मिट्टीकेदिये पर | ब्लॉग पर आये और अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें |
http://hindikavitamanch.blogspot.in/2015/11/mitti-ke-diye.html
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