पीर उस सालिक को साधना के मार्ग पर बढ़ने का रास्ता दिखाते हैं। सूफ़ी गुरुओं ने साधकों को साधना के लिए ये चार सोपान निर्धारित किए हैं –
1. शरीयत
2. तरीक़त
3. मारिफ़त
4. हक़ीक़त
1. शरीयत - शरीयत अर्थात धर्मग्रंथ, अल्लाह के बताए क़ानून का नाम है। अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए शरीयत की पाबन्दी ज़रूरी है। इसे हमारे यहां के संदर्भ में कर्मकांड कहा जा सकता है। शरीयत के तीन अंग हैं – इल्म (ज्ञान), अमल (कर्म) और इख़लास (निष्ठा)। जबतक ये तीनों जीवन में नहीं उतरेंगे, शरीयत पर पूरा अमल न होगा।
2. तरीक़त – तरीक़त का अर्थ है बाहरी क्रिया-कलाप से परे होकर केवल हृदय की शुद्धता द्वारा भगवान का ध्यान। तरीक़त अन्तःपक्ष पर वार्ता करती है, यानी हृदय को कैसे शुद्ध किया जाए, मन में ईश-प्रेम को कैसे उतारा जाए। इसे उपासना कांड के रूप में समझा जा सकता है। जब गुरु (पीर) सूफ़ी साधक (सालिक) को अपने संरक्षण में ले लेता है, तो वह उसे ‘तरीक़त’ के पालन में, यानी साधना में लगा देता है।
साधना के प्रारंभिक सात सोपान हैं –
1. अनुताप
2. आत्म-संयम
3. वैराग्य
4. दारिद्र्य
5. धैर्य
6. ईश्वर-विश्वास, और
7. संतोष
साधक को इन सात सोपानों को पार करना होता है। जब वह इन सात सोपानों को पार कर लेता है, तो साधक चतुर्विध सोपानों का अधिकारी हो जाता है। पूरी पोस्ट के लिए देखें मनोज कुमार जी की पोस्ट :
साधना की चार अवस्थाएं
3 comments:
डॉक्टर साहब!
आभार हमारी रचना को स्थान मुझे मान देने के लिए।
धर्म-ग्रन्थ पर आस्था, निष्ठा ज्ञान करम |
केवल हिरदय शुद्धता, सुमिरो ईश परम |
सुमिरो ईश परम, साध ले सीढ़ी सातों |
हो जाओ इरफ़ान, नूर में उसके मातो |
सद-दर्शन पहचान, सत्य अनुभव निज-अंतर |
यही नशा ले जाय, बेखुदी तक हे रविकर ||
बधाई मनोज भाई .आभार भाई अनवर ज़माल इस प्रस्तुति के लिए .
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