Wednesday, April 4, 2012

मां बाप का आदर करना सीखिए Manu means Adam

बोल्डनेस छोड़िए हो जाइए कूल...खुशदीप​ के सन्दर्भ में 

 ख़ुशदीप सहगल किसी ब्लॉग पर अपनी मां का काल्पनिक नंगा फ़ोटो देखें तो उन्हें दुख होगा इसमें ज़रा भी शक नहीं है लेकिन उनकी मां का नंगा फ़ोटो ब्लॉग पर लगा हुआ है और उन्हें दुख का कोई अहसास ही नहीं है।
...और यह फ़ोटो उनके ही ब्लॉग पर है और ख़ुद उन्होंने ही लगाया है।
उन्होंने चुटकुलों भरी एक पोस्ट तैयार की। जिसका शीर्षक है ‘बोल्डनेस छोड़िए और हो जाइये कूल‘
इस पोस्ट का पहला चुटकुला ही हज़रत आदम अलैहिस्सलाम और अम्मा हव्वा अलैहिस्सलाम पर है। इस लिहाज़ से उन्होंने एक फ़ोटो भी उनका ही लगा दिया है। फ़ोटो में उन्हें नंगा दिखाया गया है।
दुनिया की तीन बड़ी क़ौमें यहूदी, ईसाई और मुसलमान आदम और हव्वा को मानव जाति का आदि पिता और आदि माता मानते हैं और उन्हें सम्मान देते हैं। ये तीनों मिलकर आधी दुनिया की आबादी के बराबर हैं। अरबों लोग जिनका सम्मान करते हैं, उनके नंगे फ़ोटो लगाकर ब्लॉग पर हा  हा ही ही की जा रही है।
यह कैसी बेहिसी है भाई साहब ?
आदम हव्वा का फ़ोटो इसलिए लगा दिया कि ये हमारे कुछ थोड़े ही लगते हैं, ये अब्राहमिक रिलीजन वालों के मां बाप लगते हैं।

अरे भाई ! आप किस की संतान हो ?
कहेंगे कि हम तो मनु की संतान हैं।
और पूछा जाए कि मनु कौन हैं, तो ...?
कुछ पता नहीं है कि मनु कौन हैं !

अथर्ववेद 11,8 बताता है कि मनु कौन हैं ?
इस सूक्त के रचनाकार ऋषि कोरूपथिः हैं -
यन्मन्युर्जायामावहत संकल्पस्य गृहादधिन।
क आसं जन्याः क वराः क उ ज्येष्ठवरोऽभवत्। 1 ।
तप चैवास्तां कर्भ चतर्महत्यर्णवे।
त आसं जन्यास्ते वरा ब्रह्म ज्येष्ठवरोऽभवत् । 2 ।
दशसाकमजायन्त देवा देवेभ्यः पुरा।
यो वै तान् विद्यात् प्रत्यक्षं सवा अद्य महद् वदेत । 3 ।
प्राणापानीचक्षुः श्रोतमक्षितिश्च क्षितिश्न या ।
ध्यानोदानौ नाड्Ûमनस्ते वा आकूतिमावहन् । 4 ।
आजाता आसन्नृतवोऽथो धाता बृहस्पतिः ।
इन्द्रग्नो अश्विना तर्हि क ते ज्येष्ठमुपासत । 5 ।
तपश्च वास्तां कर्म चांतर्महत्यर्णवे ।
तपो ह जज्ञे कर्णाणाष्तत् ते ज्येष्ठमुपासत । 6 ।
येते आसीद् भूमि पूर्वा यामद्धातय इद् विदुः ।
यो वै तां विद्यान्नमथा स मन्येत पुराणावित । 7 ।
कुतः इन्द्रः कुतः सोमः कुतो अग्निरजायत ।
कुतस्त्वष्टा समभवत् कुतो धाता जायतः । 8 ।
इन्द्रा दन्द्रः सोमात् सोमो अग्नेरग्निरजायत ।
त्वष्टा स जज्ञे त्वष्ट्रर्घाताजायत । 9 ।
ये त आसन् दश जाता देवा देवेभ्यः पुरा ।
पुत्रेभ्यां लोकं दत्वा किस्मिस्ते लोक आसते । 10 ।
यदा वे शानस्थिस्वान मांसं मज्जानमाभरत् ।
शरीरं कृत्वा पादवत्कं लोकमनु द्राविशत् । 11 ।
कुतः केशान् कुता स्नाद कुतो अस्थोन्याभरत् ।
अंगा पर्वाणि मज्जानं कोमांसं कुत आभरत् । 12 ।
ससिचो नाम ते देवा ये संभारान्त्समभरन् ।
सर्व ससिच्य मर्त्य दवाः पुरूषमाविशम् । 13 ।
उरू पादावष्टीवन्तौ शिषो हस्तावथो मुखम।
पृष्टी र्वर्जह्यै पार्श्वे कस्तत् समदधादृषिः । 14 ।
शिहो हस्ताचथो मुखं जिहृग्रौवाश्च काकसाः ।
त्वचा प्रावृत्य सर्वा तत् संधा समदधान्महो । 15 ।
तत्तच्चरीरमशयत संधया संहितं महत् ।
येनेदमद्य रोचते को अस्मिन वर्णामाभरत । 16 ।
सर्वे देवा उपाशिक्षन तदजानाद् वधुः सती ।
इशा वशस्य या जाता सास्मिन वर्णामाभरत । 17 ।
यदा त्वष्टा व्युतृणात् पिता त्वष्टर्य उत्तरः
गृह कृत्वा मर्त्यदेवाः पुरूषमाविशन् । 18 ।
स्वप्नो वै तन्द्रर्निर्ऋतिः तिः पाप्मानो नाम देवताः ।
जरा खालित्यं पालित्यं शरीरमन प्राविशन् । 19 ।
स्तेयं दुष्कृत वृजिनं सत्यं यज्ञो यशो वृहत् ।
बलं च क्षत्रोजश्च शरीरमनु प्राविशन् । 20 ।
भूतिश्च वा अभूतिश्च रातवोऽरातयश्च याः ।
क्षुधश्च सर्वास्तृष्णाश्च शरीरमनुः प्राविशन् । 21 ।
निन्दाश्च वा अनिन्दाश्च यच्च हन्तेति तेति च ।
शरीर श्रद्धा दक्षिणाश्रद्धा चानु प्राविशन् । 22 ।
विद्याश्च अविद्याश्च यच्चान्वदुषदेश्यम् ।
शरीरं ब्रह्मा प्राविशदृचः सामाधो यजु. । 23 ।
आनन्दा मोदाः प्रमुदोऽभीमीदमुदश्च ये ।
हसो नरिष्ठा नृत्तानि शरीरमनु प्राविशन् । 24 ।
आलापाश्च प्रलापाश्चाभीलापलश्च ये ।
शरीरं सर्वे प्राविशन्नायुजः प्रयुजो युजः । 25 ।
प्राणापानो चक्षु श्रोत्रमक्षितिश्च क्षितिश्च या ।
व्यानोदानौ वाड्Ûमन शरीरेण त ईयन्ते । 26 ।
धाशि षश्च प्रशिषश्च सांशियो विशषश्च याः ।
चित्तः नि सर्वे संकल्पाः शरीरमनु प्राविशन् । 27 ।
आस्नेयोश्च वास्तेयोश्च त्वरणाः कृपणाश्च याः ।
गृह्या. शुक्रा स्थूला अपस्ता वींमत्सावसादयन् । 28 ।
अस्थि कृत्वा समिधं तदष्टापो असादयन ।
रेतः कृत्वाज्यं देवाः पुरूषयाविशन । 29 ।
या आसो याश्च देवता या विराड् बह्माणा सह।
शरीरं बह्म प्राविशच्छरीरेऽधि प्रजापतिः । 30 ।
सूर्यश्चक्षुर्वातः पुरूषस्य वि भेजिरे।
अथास्येतरमात्मान देवाः प्रायच्छन्नग्नये । 31 ।
तस्माद वै विद्वान पुरूषमिद ब्रह्मेति मन्यते।
सर्वाह्यस्मिन देवता गावो गोष्ठाइवासते । 32 ।
प्रथमेन प्रमारेण त्रेधा विष्वड् वि गच्च्छति ।
अदएकेन गच्छत्यद एकेन गच्छतीहैकेन नि षेवत । 33 ।
अप्सु सोमास वृद्धासु शरीरमन्तरा हितम् ।
तस्मिञ्छवोऽघ्यन्तरा तस्माच्छयोऽध्पुच्यते । 34 ।

अर्थात मन्यु ने जाया को संकल्प के घर से विवाहा। उससे पहले सृष्टि न होने से वर पक्ष कौन हुआ और कन्या पक्ष कौन हुआ ? कन्या के चरण कराने वाले बराती कौन थे और उद्वाहक कौन था ? ।1। तप और कर्म ही वर पक्ष और कन्या पक्ष वाले थे, यही बराती थे और उद्वाहक स्वयं ब्रह्म था।2। पहले दश देवता उत्पन्न हुए। जिनसे इन देवताओं को प्रत्यक्ष रूप से जान लिया वही ब्रह्म का उपदेश करने में समर्थ है।3। प्राण, अपान नामक वृत्तियां, चक्षु, कान, अक्षित, क्षिति, व्यान, उदान, वाणी, मन, आकृति-यह सभी कामनाओं को अभिमुख करते हुए उन्हें पूर्ण कराते हैं।4। सृष्टिकाल में ऋतुएं उत्पन्न नहीं हुई थीं। धाता, बृहस्पति, इन्द्र और अश्विनीकुमार भी उत्पन्न नहीं हुए थे। तब इन धाता आदि ने किस बड़े कारणभूत उत्पादक की अभ्यर्चना की ?।5। तप और कर्म ही उपकरण रूप थे। कर्म से तप उत्पन्न हुआ था। इसलिए ये धाता आदि अपने द्वारा किए हुए महान् कर्म को ही अपने उत्पादन के लिए प्रार्थना करते हैं।6। वर्तमान पृथिवी से पूर्व विगत विगत पुत्र की जो पृथिवी थी, उसे तप द्वारा सर्वज्ञ होने वाले महर्षि ही जानते हैं। जो विद्वान विगत युग की पृथिवी में स्थित वस्तुओं के नाम को जानने वाला है, वही इस वर्तमान पृथिवी को जानने में समर्थ है।7। इन्द्र किस कारण से उत्पन्न हुआ ?, सोम, अग्नि, त्वष्टा और धाता किस किस कारण से उत्पन्न हुए ?।8। विगत युग में जैसा इन्द्र था वैसा ही इस युग में हुआ। जैसे सोम, अग्नि, त्वष्टा और धाता पुरातन में थे वैसे ही इस युग में भी हुए।9। जिन अग्नि आदि देवताओं से प्राणपान रूप दश देवता उत्पन्न हुए, वे अपने पुत्रों को अपना स्थान देकर किस लोक में निवास करते हैं ?।10।
सृष्टि के समय जब विधाता ने बाल, अस्थि, नसें, मांस मज्जा को संचित किया तो उनसे शरीर की रचना कर उसने किस लोक में प्रवेश किया ?।11। किन उपादान से केश संग्रहीत किए ? स्नायु कहां से प्रकट हुआ, अस्थियां कहां से आईं ? मज्जा और मांस कहां से मिला ? यह सब अपने में से ही इकठ्ठा किया, ऐसा अन्य कौन कर सकता है ?।12। ससिच् नाम के देवता मरणशील देह को रक्त से भिगोकर उसे पुरूषाकृति में बना, उसी में प्रविष्ट हो गए।13। घुटनों पर वर्तमान जंघाएं घुटनों के नीचे पांव, जांघों, और पांवों के मध्य घुटने, शिर, हाथ, मुख, वर्जह्य, पसलियां और पीठ इन सबको किसने परस्पर मिलाया ?।14। शिर,हाथ,मुख,जीभ,कण्ठ और हड्डियों की चर्म आवृत कर देवताओं ने अपने अपने कर्म में प्रवृत्त किया।15। जधात्री देव के द्वारा जिसके अवयव इस प्रकार जुड़े हैं वह देहों में वर्तमान है, वह देह जिस श्याम-गौर वर्ण से युक्त हैं, उसमें किस देवता ने वर्ण की स्थापना की ?।16। इस शरीर के समीप सब देवता रहना चाहते थे। इस वधू बनने वाली आद्या ने देवताओं की इस इच्छा को जानकर छः कोश देह में नील, पीत गौर आदि रंगों की स्थापना की।17। इस संसार के रचयिता ने जब नेत्र, कान आदि छिद्रों को बनाया, तब त्वष्टा के द्वारा बहुत से छेद वाले पुरूष वाले पुरूष देह को घर बनाकर प्राण, अपान, अपान और इन्द्रिय ने प्रवेश किया।18। स्वप्न, निद्रा, आलस्य, निर्ऋति, पाप इस पुरूष देह में घुस गए और आयु हरण करने वाली जरा, चक्षु, मन, खालित्य, पालित्य आदि के अभिमानी देवता भी उसमें प्रविष्ट हो गए।19। चोरी, दुष्कर्म, पाप, सत्य, यज्ञ, महान, जल क्षात्रधर्म और ओज भी मनुष्य देह में प्रविष्ट हो गए।20।

यहां स्वयंभू मनु के विवाह को सृष्टि का सबसे पहला विवाह बताया गया है और उनकी पत्नी को जाया और आद्या कहा गया है। ‘आद्या‘ का अर्थ ही पहली होता है और ‘आद्य‘ का अर्थ होता है पहला। ‘आद्य‘ धातु से ही ‘आदिम्‘ शब्द बना जो कि अरबी और हिब्रू भाषा में जाकर ‘आदम‘ हो गया।
स्वयंभू मनु का ही एक नाम आदम है। अब यह बिल्कुल स्पष्ट है। अब इसमें किसी को कोई शक न होना चाहिए कि मनु और जाया को ही आदम और हव्वा कहा जाता है और सारी मानव जाति के माता पिता यही हैं।
ख़ुशदीप सहगल के माता पिता भी यही हैं।
अपने मां बाप के नंगे फ़ोटो ब्लॉग पर लगाकर सहगल साहब ख़ुश हो रहे हैं कि देखो मैंने कितनी अच्छी पोस्ट लिखी है।
अपनी मां की नंगी फ़ोटो लगा नहीं सकते और जो उनकी मां की भी मां है और सबकी मां है उसका नंगा फ़ोटो लगाकर बैठ गए हैं और किसी ने उन्हें टोका तक नहीं ?
ये है हिंदी ब्लॉग जगत !
कहते हैं कि हम पढ़े लिखे और सभ्य हैं।
हम इंसान के जज़्बात को आदर देते हैं।
अपने मां बाप आदम और हव्वा अलैहिस्सलाम पर मनघड़न्त चुटकुले बनाना और उनका काल्पनिक व नंगा फ़ोटो लगाना क्या उन सबकी इंसानियत पर ही सवालिया निशान नहीं लगा रहा है जो कि यह सब देख रहे हैं और फिर भी मुस्कुरा रहे हैं ?



  •  

    रात हमने पोस्ट पब्लिश करने के साथ ही उनकी पोस्ट पर टिप्पणी भी की और इस पोस्ट की सूचना देने के लिए अपना लिंक भी छोड़ा लेकिन उन्होंने गलती को मिटने के बजाय हमारी टिप्पणी ही मिटा डाली.
    उनकी गलती दिलबाग जी ने भी दोहरा डाली. उनकी पोस्ट से फोटो लेकर उन्होंने भी चर्चा मंच की पोस्ट   (चर्चा - 840 ) में लगा दिया है.
    एक टिप्पणी हमने चर्चा मंच की पोस्ट पर भी कर दी है.
    यह मुद्दा तो सबके माता पिता की इज्ज़त से जुडा है. सभी को इसपर अपना ऐतराज़ दर्ज कराना चाहिए.

    21 comments:

    मनोज कुमार said...

    हर बार की तरह यह भी एक शोधपूर्ण तथ्यपरक आलेख है।
    आलेख में उठाया गया विषय बहुत ही चिंता की बात है। हमें सबका सम्मान करना चाहिए।

    Gyan Darpan said...

    उठाया गया विषय चिंताजनक व दुखद है किसी को दूसरों की भावनाओं से खिलवाड़ करने का कोई हक नहीं|
    फिर भारतीय संस्कृति में तो बचपन से ही हर एक का सम्मान करना सिखाया जाता है| फिर भी ऐसी घटनाएँ घट जाती है जो दुखद है !!

    naresh said...

    साभार

    रविकर said...

    पुरखों के सम्मान से, जुडी हुई हर चीज ।

    अति-पावन है पूज्य है, मानवता का बीज ।

    मानवता का बीज, उड़ाना हँसी ना पगले ।

    करे अगर यह कर्म, हँसेंगे मानव अगले ।

    पढो लिखो इतिहास, पाँच शतकों के पहले ।

    आदम-मनु हैं एक, बाप अपना भी कह ले ।।

    Ayaz ahmad said...

    Hamen bhi is harkat par sakht aitraaz hai .
    ek post bhi is vishay par hamne abhi abhi likhi hai.

    http://drayazahmad.blogspot.in/2012/04/blog-post_05.html

    vandana gupta said...

    पूर्ण जानकारी के अभाव मे ही ऐसी गल्तियाँ होती हैं बाकी मनोज कुमार जी से सहमत ।

    vandana gupta said...

    पूर्ण जानकारी के अभाव मे ही ऐसी गल्तियाँ होती हैं बाकी मनोज कुमार जी से सहमत ।

    सुनीता शानू said...

    अनवर भाई आपने सही लिखा है माँ बाप का हमे आदर करना ही चाहिये।

    खुशदीप भाई ने महज़ एक पोस्ट की है।
    वंदना ने भी महज अपने विचार प्रस्तुत किये हैं। सभी को स्वतंत्र लेखन का अधिकार है सभी कर रहे हैं।

    लेकिन बस इतनी सी बात कहना चाहूँगी जो मुझे समझ आ रही है यह तस्वीर आदम और हव्वा की नही है।
    किसने देखा था उन्हे? यह मात्र एक तस्वीर है गौर से देखिये...हव्वा के आजकल के स्टाइल के सिल्की बाल और आदम के कटे हुए सैट बाल? कहाँ नज़र आ रहा है यह आदि युग के आदम हव्वा है जनाब।
    व्यर्थ बवाल मचाने से क्या फायदा?
    बाकि आप समझदार हैं
    सादर

    virendra sharma said...

    डॉ .अनवर ज़माल साहब !अभिव्यक्ति के नाम पर हम किसी भी प्रकार की नंगई दैहिक या मानसिक के हामी नहीं है .एम् ऍफ़ हुसैन साहब ने भी यही गलती की थी .बाद में निर्वासन भोगा ,बेशक उनके पक्ष में लेफ्टिए खड़े हुए थे कला के नाम पर वह कला कला के लिए पोश रहे थे .लेकिन इनकी तो आस्था के केंद्र ही देश से बाहर रहें हैं .आदम हो या हव्वा , ईव हो या वह अफ़्रीकी महिला हमारी 'आदि माँ' हैं और उस नाते स्तुत्य हैं .हमें नहीं मालूम किस सन्दर्भ में खुशदीप जी ने क्या किया है हम देखतें हैं 'चर्चा 'पर जा कर .शुक्रिया ज़नाब का इस सूचना के लिए .

    DR. ANWER JAMAL said...

    @ सुनीता शानू जी ! ख़ुशदीप सहगल जी ने बिना माफ़ी मांगे चुपके से तस्वीर बदल दी है और यह समझ लिया है कि इस तरह वह हिंदी ब्लॉगर्स को गुमराह करने में कामयाब हो जाएंगे।
    ज़रा ध्यान दीजिए कि हमने जिस तस्वीर पर ऐतराज़ जताया है वह नंगी तस्वीर थी जबकि इसमें दोनों ने कपड़े पहन रखे हैं।
    डा. अयाज़ अहमद साहब के कमेंट के बाद हमारा कमेंट मौजूद है। तब तक भी वह नंगी तस्वीर यहां मौजूद थी जैसे कि यह बेहूदा चुटकुला यहां मौजूद है।

    देवी देवताओं के और ऋषि मुनियों के चित्र, कार्टून और हास्य व्यंग्य चुटकुले रचने की परंपरा हिंदू समाज में है मुसलमानों में नहीं है।

    आदम अलैहिस्सलाम और हव्वा अलैहिस्सलाम दोनों ही मुक़ददस पवित्र धार्मिक हस्तियां हैं।
    इनके बारे में चुटकुले बनाने का क्या सेंस है ?

    ... और अगर इस पर हम आपत्ति जता रहे हैं तो यह आपको व्यर्थ का बवाल क्यों नज़र आ रहा है ?

    ख़ुशदीप सहगल जी को तस्वीर बदलने के बजाय अपनी ग़लती का इक़रार करके यह पूरा चुटकुला ही हटा लेना चाहिए था।
    ऐसा तो उन्होंने किया नहीं लेकिन जब हमारी वाणी पर डा. अयाज़ अहमद साहब की पोस्ट इस बेहूदा हरकत के ऐतराज़ में पब्लिश हुई तो भाई साहब ने आज हमारी वाणी ही ऑफ़ करवा दी।
    यह कैसी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है ?
    हमारी यारी सच से है। सच कहने में हम किसी की यारी दोस्ती का लिहाज़ नहीं करते। हिंदी ब्लॉग जगत यह बात अच्छी तरह जानता है।

    $#$ ख़ुशदीप सहगल जी की इस पोस्ट का चर्चा पुराने फ़ोटो के साथ आज चर्चामंच पर भी है। लिहाज़ा सच अपना गवाह ख़ुद है। जिसे निम्न लिंक पर देखा जा सकता है-​​
    आओ याद करें अज्ञेय और माखनलाल चतुर्वेदी जी को (चर्चा - 840 )
    Thursday, April 5, 2012
    Link :
    http://charchamanch.blogspot.in/2012/04/840.html

    रविकर said...

    यह उत्कृष्ट प्रस्तुति
    चर्चा-मंच भी है |
    आइये कुछ अन्य लिंकों पर भी नजर डालिए |
    अग्रिम आभार |

    charchamanch.blogspot.com

    श्यामल सुमन said...

    अनवर भाई - नमस्कार - सबसे पहले तो आपको बधाई दूँ कि आपने इतना विस्तार से, वो भी संस्कृत में अर्थ सहित जो आलेख प्रस्तुत किया है, सचमुच हृदय से आपके मेहनत और साधना की प्रशंसा करता हूँ। आप मेरी इस बात को अपने हृदय में स्थान देंगे, ऐसी आशा है। वैसे भी आदतन मैं औपचारिकताओं से प्रयः दूर ही रहता हूँ।

    आपने जिस तथ्य को प्रकाश में लाया है, वस्तुतः पूरी तरह से अवगत नहीं हूँ। लेकिन जो भी जान पाया उसके अनुसार यह कहना चाहूँगा कि -

    १ - एक सच्चे रचनाकार के लेखन से अगर किसी का अपमान हो तो वह रचनाकार सच्चा हो नहीं सकता, चाहे वो कोई भी हो। अगर भूलवश या भावातिरेक में ऐसा हो भी जाय और कोई ध्यान दिला दे तो एक सच्चा रचनाकार अपनी गलती मानते हुए अपेक्षित सुधार भी कर लेते हैं।

    २ - मेरी दृष्टि में साहित्य-सृजन का एकमात्र उद्येश्य है कि हमेशा बेहतर से बेहतर इन्सान बनाना ताकि एक बेहतर समाज की संरचना हो सके और मानव, मानव को कम से कम मानव तो समझे।

    ३ - मैं प्रायः सोचता हूँ कि आज के समाज में कितनी विद्रूपताएं हैं। हर जगह उत्पीड़न-शोषण का एक भयंकर चक्र चल रहा अनवरत धर्म (हर धर्म में) और राजनीति ( सभी राजनैतिक दल) की आड़ में। जिस पर कई तरीके से लिखे जाने की जरूरत है ताकि समाज में अतिम पायदान खड़े लोगों में भी आशा की किरण जगे। क्या इन मुद्दों पर विषयों की कमी हो गई है? क्या हम साहित्य-सृजन के मूल उद्येश्य से भटक गए हैं? अगर नहीं तो इन विवादास्पद मुद्दों को चुनने का औचित्य क्या है?

    ४ - सभी धर्म, सभी संस्कृतियाँ, सभी भाषाएं मेरी दृष्टि में प्रणम्य है और प्रणम्य है हर इन्सान की सकारात्मक भावनाएं। फिर क्यों न ऐसा कहा जाए कि कुछ लोग साहित्य-सृजन के नाम पर साहित्य की ही आत्मा को निरन्तर घायल कर रहे हैं।

    ५ - और अन्त में - आज आपने बहुत लिखवा लिया अनवर भाई (कम लिखने के कारण ही तो कवि बना - हा -हा -हा) - मूलतः कवि हूँ - बिना अपनी कुछ पंक्तियाँ कहे बात खत्म कैसे करूँ? कुछ फुटकर शेर जो मेरी अलग अलग गज़लों के हैं, से अपनी बात समाप्त करना चाहूँगा --

    मन्दिर को जोड़ते जो, मस्जिद वही बनाते
    मालिक है एक फिर भी जारी लहू बहाना

    मजहब का नाम लेकर चलती यहाँ सियासत
    रोटी बडी या मजहब हमको जरा बताना

    और विज्ञान में पढाए गए "आक्सीजन-चक्र" की तरह एक आम आदमी की जिन्दगी-

    खा कर के सूखी रोटी लहू बूँद भर बना
    फिर से लहू जला के रोटी जुटाते हैं

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    http://www.manoramsuman.blogspot.com
    http://meraayeena.blogspot.com/
    http://maithilbhooshan.blogspot.com/

    manu said...

    तशरीफ़ लाने का शुक्रिया डॉक्टर साहिब ...आपके आने से कम-स-कम ये तो याद आया कि अपना कोई ब्लॉग भी है..मनु-उवाच करके..

    जानकर अच्छा लगा कि किसी धर्म में हव्वा को ऊँचा दर्ज़ा दिया गया है...वरना हमने ना तो सब किताबें ही पढ़ीं हैं और ना ही हर इन्सां से मिल कर बातें कहीं-सुनी हैं....हमारी इस आधी-अधूरी सी पोस्ट में हमने कहीं भी हव्वा को गलत नहीं ठहराया है..शे,र बेहद साफ़ बात कहता है...

    ईश्वर ने औरत को बेहद चाव से बनाया..संसार की सबसे खूबसूरत चीज...अब हल्ला तो 'चीज' कहने पर भी मच जाएगा...पर ये हमें सच लगता है कि औरत दुनिया की सबसे जरूरी शै है.. सुना था कि शैतान ने हव्वा को फुसला कर एक वर्जित फल खिलाया ...जिस के कारण आदम और हव्वा ने 'कथित' गुनाह या पाप किया...और ईश्वर ने इस पर क्रोधित हो कर उन दोनों को स्वर्ग से नीचे पटक दिया...

    और..अजल से खेल बस औरत की जां थी...


    सो हमारा पंगा ईश्वर से और शैतान से है..न कि बेचारी हव्वा से ...

    DR. ANWER JAMAL said...

    @ श्यामल सुमन जी ! समाज के सरोकार के प्रति आपकी चिंता देखकर अच्छा लगा।
    समाज में बहुत से विकार हैं।
    ये विकार क्यों हैं ?
    और इन्हें कैसे दूर किया जा सकता है ?
    अव्वल रोज़ से ही यह हमारी ब्लॉगिंग का केन्द्रीय विषय है।

    आज का इंसान नकारात्मकता में जी रहा है। वह भूल गया है हम सब एक ही मां बाप की औलाद है और वह यह भी भूल गया है कि हम जो कुछ कर रहे हैं, उसे ईश्वर देख रहा है।
    ये दो तत्व हम जान लें कि हम सब एक मां बाप की औलाद हैं तो हमारे अंदर आपस में प्यार पैदा होगा और जब हम यह जानेंगे कि हम अपने पैदा करने वाले के प्रति अपने कर्मों के लिए जवाबदेह हैं तो हम सत्कर्मी बनेंगे।
    हमसे पूर्व जो सत्कर्मी हुए हैं। वे यह दोनों बातें जानते थे।
    यह जानकारी आम होनी चाहिए। वेद क़ुरआन और बाइबिल, हरेक धर्मग्रंथ की शिक्षा यही है।
    जब तक हम समान सूत्र पर सहमत होकर अपनी सोच को सकारात्मक नहीं बनाएंगे तब तक न तो हमारे चरित्र का विकास होगा और न ही हम अपने साहित्य से समाज को कोई मार्ग और दिशा ही दे पाएंगे।
    अपने शोध से हमने यह जाना है।
    अपनी ग़लती छोड़ने के लिए हम सदैव ही तत्पर हैं। परिष्कार का मार्ग यही है।
    आपकी विस्तृत टिप्पणी के लिए हम आपके शुक्रगुज़ार हैं।

    manu said...

    तशरीफ़ लाने का शुक्रिया डॉक्टर साहिब ...आपके आने से कम-स-कम ये तो याद आया कि अपना कोई ब्लॉग भी है..मनु-उवाच करके..

    जानकर अच्छा लगा कि किसी धर्म में हव्वा को ऊँचा दर्ज़ा दिया गया है...वरना हमने ना तो सब किताबें ही पढ़ीं हैं और ना ही हर इन्सां से मिल कर बातें कहीं-सुनी हैं....हमारी इस आधी-अधूरी सी पोस्ट में हमने कहीं भी हव्वा को गलत नहीं ठहराया है..शे,र बेहद साफ़ बात कहता है...

    ईश्वर ने औरत को बेहद चाव से बनाया..संसार की सबसे खूबसूरत चीज...अब हल्ला तो 'चीज' कहने पर भी मच जाएगा...पर ये हमें सच लगता है कि औरत दुनिया की सबसे जरूरी शै है.. सुना था कि शैतान ने हव्वा को फुसला कर एक वर्जित फल खिलाया ...जिस के कारण आदम और हव्वा ने 'कथित' गुनाह या पाप किया...और ईश्वर ने इस पर क्रोधित हो कर उन दोनों को स्वर्ग से नीचे पटक दिया...

    और..अजल से खेल बस औरत की जां थी...


    सो हमारा पंगा ईश्वर से और शैतान से है..न कि बेचारी हव्वा से ...

    manu said...

    pahle waalaa comment mit gayaa thaa shaayad...

    :)
    :)

    manu said...

    तशरीफ़ लाने का शुक्रिया डॉक्टर साहिब ...आपके आने से कम-स-कम ये तो याद आया कि अपना कोई ब्लॉग भी है..मनु-उवाच करके..

    जानकर अच्छा लगा कि किसी धर्म में हव्वा को ऊँचा दर्ज़ा दिया गया है...वरना हमने ना तो सब किताबें ही पढ़ीं हैं और ना ही हर इन्सां से मिल कर बातें कहीं-सुनी हैं....हमारी इस आधी-अधूरी सी पोस्ट में हमने कहीं भी हव्वा को गलत नहीं ठहराया है..शे,र बेहद साफ़ बात कहता है...

    ईश्वर ने औरत को बेहद चाव से बनाया..संसार की सबसे खूबसूरत चीज...अब हल्ला तो 'चीज' कहने पर भी मच जाएगा...पर ये हमें सच लगता है कि औरत दुनिया की सबसे जरूरी शै है.. सुना था कि शैतान ने हव्वा को फुसला कर एक वर्जित फल खिलाया ...जिस के कारण आदम और हव्वा ने 'कथित' गुनाह या पाप किया...और ईश्वर ने इस पर क्रोधित हो कर उन दोनों को स्वर्ग से नीचे पटक दिया...

    और..अजल से खेल बस औरत की जां थी...


    सो हमारा पंगा ईश्वर से और शैतान से है..न कि बेचारी हव्वा से ...

    manu said...

    आस पास के उजाड़ ग्रहों को देखो तो यह हरी भरी धरती भी आपको स्वर्ग ही लगेगी

    hum bhi to yahi kah rahe hain apne dhang se....

    DR. ANWER JAMAL said...

    @ मनु जी ! आप शैतान से पंगा लें, अच्छी बात है लेकिन नारी जैसी सुंदर हस्ती की रचना करने वाले ईश्वर से पंगा लेने का कोई जायज़ कारण नहीं है।
    अम्मा हव्वा ने वर्जित फल आदम को खिलाया था। इस तरह की बातें क़ुरआन से पूर्व की किताबों में क्षेपक के तौर पर हैं। इनकी बुनियाद पर नारी को नर्क का द्वार वग़ैरह बता दिया गया जो कि ग़लत है।
    ईश्वर ने हमारे माता पिता को स्वर्ग में रचा और फिर प्रशिक्षण और परीक्षण के लिए धरती पर भेज दिया। उन्हें ईश्वर से कोई शिकायत न थी तो हमें क्यों हो ?
    आस पास के उजाड़ ग्रहों को देखो तो यह हरी भरी धरती भी आपको स्वर्ग ही लगेगी और जब आप अपने जीवन साथी के साथ मुस्कुराएंगे तो स्वर्गिक आनंद का द्वार मानों आप सामने ही पाएंगे।
    वरदानों को गिनेंगे तो ख़ुदा के शुक्र के लिए उम्र थोड़ी पड़ जाएगी, भाई ।

    Zafar said...

    हर बार की तरह यह भी एक शोधपूर्ण तथ्यपरक आलेख है।
    आलेख में उठाया गया विषय बहुत ही चिंता की बात है। हमें सबका सम्मान करना चाहिए।
    If we honestly study the "Dharam" and history of human civilisation,then a lot of misconceptions will be removed from our hearts and we will reach the ultimate and only truth.

    राजन said...

    आपने एक जरूरी विषय को उठाया हैं और ये एक जानकारीपरक पोस्ट बन गई है.हमें किसीकी भी आस्था का मजाक उडाने का कोई हक नहीं हैं.
    लेकिन एक बात जरूर कहना चाहूँगा जैसा कि आपने कहा कि हिंदुओं में देवी देवताओं ऋषि मुनियों आदि पर चुटकुले बनाने की परंपरा रही है,तो तकनीकी तौर पर आपका कथन सही हो सकता हैं लेकिन हिंदु धर्म में भी इसे सही नहीं माना गया है और करने वाले इसका भी विरोध करते हैं.यदि धर्मग्रंथों में इसका विरोध नहीं किया गया हैं तो इसकी छूट भी तो नहीं दी गई है.

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    7- क्या भारतीय नारी भी नहीं भटक गई है ?
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