बेचारा पुरूष ब्लॉगर अच्छी और सार्थक पोस्ट को बैठा हुआ ख़ुद ही पढ़ता रहेगा और बार बार स्टैट्स चेक करके देखता रहेगा कि मेरे अलावा कितनों ने और पढ़ी है मेरी पोस्ट ?
जबकि दूसरी तरफ़ वैसे ही बस चुहल करने के लिए भी कोई लिख देगी तो उसे पढ़ने के लिए पुरूष ब्लॉगर्स की भीड़ लग जाएगी बिल्कुल ऐसे ही जैसे कि पान वाली की दुकान पर लग जाती है।
जब भी कोई आवाज़ हिंदी ब्लॉग जगत में लगाई गई कि सार्थक लिखो, मार्ग पर चलो और मार्ग दिखाओ तो यह आवाज़ सबसे ज़्यादा नागवार ब्लॉग जगत की इन पान वालियों को और इनके टिप्पणीकारों को ही लगी।
ऐसा क्यों है ?
बताने के लिए देखिये यह पोस्ट :
1 comments:
जब कालजयी साहित्यकारों की पूरी की पूरी लाइनें ज्यों की त्यों प्रयोग में लाई जाएँगी तो ब्लॉगिंग तो पाताल में जरूर पहुँचेगी!
Post a Comment