Best Blogger of the Week
जागरण जंक्शन ब्लॉग मंच परमहिला अस्मिता और उनका आत्मसम्मान
अस्मिता पहचान के बारे में यह बात याद रखनी होगी कि वह कोई निजी या व्यक्तिगत चीज नहीं है। वह हमेशा सामाजिक परिपे्रक्ष्य में परिभाषित होती है यदि समाज में आपकी इज्जत नहीं है, तो स्वयः की नजरों में आपकी कोई इज्जत नहीं होगी। इस आलोच्य में कहा जाए तो समाज के हर स्तर पर महिलाओं को पुरूष जैसा आत्मसम्मान या पहचान नहीं मिल सकी है। उन्हें प्राकृतिक स्त्रियोचित गुण होने के कारण तथा उनके अपने मनोविज्ञान के कारण हमेशा ही पुरूष से नीचा माना जाता है। इससे महिलाओं के मनोस्थिति, चेतना के साथ-साथ उनके शरीर पर भी बुरा असर पड़ता है। उनकी देहभाषा ही बदल जाती है। एक तरफ मर्द सीना तानकर चलता है, तो दूसरी तरफ औरत झुककर। एक अध्ययन के अनुसार महिलाओं की रीढ़ की हड्डी मर्दों की रीढ़ की हड्डी की तरह सीधी नहीं होती, बल्कि झुकी हुई होती है, क्योंकि उन्हें झुककर चलना पड़ता है। इसका मतलब है कि अस्मिता कोई अर्मूत या हवाई चीज नहीं है। उसके न होने का असर महिलाओं के जिस्म पर और उनके हड्डियों के ढांचे पर भी पड़ता है। इस तरह अस्मिता को प्रश्न आत्मसम्मान के प्रश्न से अलग नहीं है और आत्मसम्मान का संबंध केवल मनोविज्ञान से ही नहीं बल्कि दोनों चीजें सामाजिक, सांस्कृतिक और इन दोनों का संबंध समाज की अर्थव्यवस्था और राजनीति से है। वहीं अक्सर यह देखा जाता है कि समाज की वास्तविकता को न देखते हुए उनकी स्थिति की बात हमारे समाज में खूब होती है। मसलन, किसी पंडित से पूछिए कि भारतीय समाज में स्त्री की स्थिति क्या है, तो वह वेदों और पुराणों में से उदाहरण दे-देकर बतायेगा कि हमारे यहां तो स्त्रियों का बड़ा मान-सम्मान होता है, उनकी पूजा की जाती है, वगैरह। यानी भारतीय स्त्रियों बराबरी से ऊपर की जिंदगी जी रही हैं। लेकिन हकीकत क्या है, सब जानते हैं।
लिंक : महिला अस्मिता और उनका आत्मसम्मान
लिंक : महिला अस्मिता और उनका आत्मसम्मान
0 comments:
Post a Comment