तेजेन्द्र शर्मा ब्रिटेन में हिदी के महत्वपूर्ण रचनाकार हैं। बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी तेजेन्द्र शर्मा का प्रीत अरोड़ा द्वारा लिया साक्षात्कार-
प्रश्न–क्या आप विदेश में रहकर वहाँ की संस्कृति,सभ्यता,रीति-रिवाज और भाषा से स्वयं को जुड़ा हुआ महसूस कर पाते हैं ?
उत्तर–पहली पीढ़ी के प्रवासी के लिये यह आसान नहीं होता कि वह अपने अपनाए हुए देश की संस्कृति, सभ्यता और रीति-रिवाज से पूरी तरह जुड़ पाए। उसकी जड़ें अपनी मातृभूमि, संस्कारों एवं भाषा से जुड़ी होती हैं। उससे इस बात की अपेक्षा भी नहीं की जानी चाहिये। हां यह आवश्यक है कि उसे इन सब बातों के प्रति कोई रिज़र्वेशन भी नहीं होनी चाहिये। सौभाग्यवश मैं जिस देश में रहता हूं वहां की भाषा मुझे स्थानीय लोगों से बेहतर आती है। दिल्ली विश्वविद्यालय से एम।ए. अंग्रेज़ी में की है। शायद वही मेरे काम भी आ रही है। सच तो यह है कि स्थानीय लोग कभी कभी मेरे अंग्रेज़ी ज्ञान के प्रति ईर्ष्या व्यक्त कर चुके हैं। लंदन में विविधता इतनी है कि कोई एक सभ्यता ना तो दिखाई देती है और ना ही सुनाई। यदि हमें इंगलैण्ड की पुरानी परंपराओं को समझना है तो हमें बड़े शहरों से बाहर जाना होगा। मैं ब्रिटेन की कुछ बातों का क़ायल हूं। यहां आम आदमी की बहुत क़दर है। यहां इन्सान को इन्सान समझा जाता है। यहां टुच्चा भ्रष्टाचार नहीं है। एक हज़ार पाउण्ड के घोटाले के लिये भी सांसदों को त्यागपत्र देना पड़ता है बल्कि जेल तक भी हो गई है। विकलांगों के लिये जो सुविधाएं यहां मौजूद हैं उनको देख कर लगता है कि ना जाने हम किस ग्रह पर रह रहे हैं। हम जिस भारतीय संस्कृति की डींगें मारते हैं, वो संस्कृति यहां प्रेक्टिकल रूप में दिखाई दे जाती है। सच्चा समाजवाद अगर कहीं देखा है तो सामंतवाद के इस गढ़ में देखा है।
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