शहरी क्षेत्र में 28 .65 रुपये और ग्रामीण क्षेत्र में 22 .42 रुपये में क्या-क्या किया जा सकता है उसकी क्रय शक्ति क्या हो सकती है..? कभी सोचा है आपने..? शायद नहीं लेकिन हमारे देश के योजना आयोग ने इसपर विचार किया है और इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि एक परिवार के भरण-पोषण के लिए इतनी राशि काफी है. प्रतिदिन इससे कम खर्च करने वाले ही गरीबी रेखा के अंदर आते है. इससे ज्यादा खर्च करने वाले बीपीएल नहीं माने जा सकते. वे एपीएल की श्रेणी में आयेंगे. इस फार्मूले का निर्धारण करने के साथ ही देश में गरीबों की संख्या 40 .72 करोड़ से घटकर 34 .47 करोड़ पर चली आई. क्यों! है न यह गरीबी मिटाने का अनूठा फार्मूला..?इस रेखा को छोटा करते जाइये गरीबी स्वयं कम होती जाएगी. इस लिहाज़ से जिन्हें न्यूनतम मजदूरी मिल रही है उन्हें अमीरों में गिना जाना चाहिए. उन्हें करदाताओं की श्रेणी में लाया जाना चाहिए. क्योंकि वे तो गरीबी रेखा से काफी ऊपर हैं.
यह भारत ही है जहां शासन तंत्र जनता के साथ इस तरह का भद्दा मजाक कर सकता है और जनता चुप रह सकती है. दूसरा कोई देश होता तो इस अवधारणा के जनकों को उनके परिवार के साथ एक टेंट में कैद कर भरण-पोषण के लिए इतनी ही रकम प्रतिदिन देकर देखती कि वे कैसे अपना परिवार चलाते हैं. अपनी बुनियादी जरूरतों को इतने पैसों में कैसे पूरा करते है. यदि वे कर दिखाते तो तो उनके चरण छूती. नहीं कर पाते तो गला................!
----देवेंद्र गौतम
अरे भई साधो......: गरीबी मिटाने का नायाब फार्मूला
यह भारत ही है जहां शासन तंत्र जनता के साथ इस तरह का भद्दा मजाक कर सकता है और जनता चुप रह सकती है. दूसरा कोई देश होता तो इस अवधारणा के जनकों को उनके परिवार के साथ एक टेंट में कैद कर भरण-पोषण के लिए इतनी ही रकम प्रतिदिन देकर देखती कि वे कैसे अपना परिवार चलाते हैं. अपनी बुनियादी जरूरतों को इतने पैसों में कैसे पूरा करते है. यदि वे कर दिखाते तो तो उनके चरण छूती. नहीं कर पाते तो गला................!
----देवेंद्र गौतम
अरे भई साधो......: गरीबी मिटाने का नायाब फार्मूला
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