चिश्ती ख़ानक़ाह |
चिश्तियों के ख़ानक़ाह या दरगाह को जमात ख़ानक़ाह कहा जाता था। यह एक लम्बा हॉल होता है। इसकी छत कई खम्भों पर टिकी होती है। हरेक खम्भे के आधार-स्थल पर एक मुरीद (शिष्य) अपने सारे सामान के साथ रहते थे। एक वरिष्ठ सदस्य को पूरे ख़ानक़ाह की व्यवस्था की देखभाल की जिम्मेदारी सौंपी जाती थी। प्रत्येक ख़ानक़ाह में एक खुला हुआ किचन होता है, जिसे लंगर भी कह सकते हैं। एक चिश्ती ख़ानक़ाह में भोज्य पदार्थ पर्याप्त मात्रा में नहीं हुआ करते थे। जो भी वहां आते, जो कुछ भी होता, मिलकर बनाते, परोसते और मिल-बांट कर खाते। बाक़ी के समय में वे या तो प्रार्थना-ध्यान में समय व्यतीत करते या शेख़, जो वहां का प्रमुख होता, की सेवा करते। प्रार्थना और ध्यान के अलावे शेख़ को रोज़ सैंकड़ों आगन्तुकों से भी मिलना होता था। अपनी आध्यात्मिक या सांसारिक समस्याओं के समाधान के उद्देश्य से आगन्तुकों के रूप में दरवेश, रईस, विद्वान, राजनीतिज्ञ, आदि आया करते थे। उन्हें यहां आकर आत्मिक शांति मिलती थी। कई बार तो ऐसा भी देखा गया कि चिश्ती संत राजाओं से लोगों की शिकायतों का निपटारा करने का निवेदन भी करते थे।
1 comments:
आभार हमारे इस लेख को यहां सम्मान देने के लिए।
Post a Comment