एक तबका यह नहीं चाहता कि नेट इस्लाम की जानकारी आम हो . यही तबका एक अरसे से इस्लाम का सन्देश देने वालों को अलग थलग डालने कि तिकड़में करता आ रहा है . साझा ब्लॉग के खिलाफ हंगामा भी इसी रणनीति का एक हिस्सा है क्योंकि सलीम खान , अनवर जमाल और मासूम साहब , इन तीनों के ब्लॉग्स में साफ़ दिल हिन्दुओं ने शरीक होकर नफरत की उस खाई को पाट दिया है जो कि इन इस्लाम मुखालिफों ने खोदी थी. ये तत्व नहीं चाहते कि फासले कम हों और प्यार कि फ़ज़ा बने , मुसलमान मुख्यधारा में अपनी पहचान खोये बिना शामिल हों .रेडियो , टी.वी. और प्रिंट मीडिया की तरह ये तत्व नेट की खुली दुनिया में मुसलमानों की आवाज़ को दबाने में खुद को बेबस पा रहे हैं . यही शर्मा , मिश्रा और द्विवेदी के दुःख का मूल शूल है.
हमारी वाणी पर साझा ब्लॉग्स के लिए नियम बनाने की आड़ में यही राजनीति और कूटनीति खेली जा रही है. हमारी वाणी के मालिकान देर सवेर इस गेम को और इसके खिलाडियों को पहचान ही जायेंगे. हमारे ब्लॉग तो शुरू से ही हमारी वाणी पर हैं और जो तंगदिल आज हमारी वाणी के चौधरी बने बैठे हैं इन्होने हमारी वाणी पर तब तक खाता नहीं खोला जब तक कि इनके घुटने नहीं टूट गए और इन्होने वहां अपना आदमी देखकर इत्मीनान नहीं कर लिया . जैसे ही ये सांप्रदायिक तत्व हमारी वाणी में दाखिल हुए इन्होने मुस्लिम ब्लॉगर्स के लिए नित नई परेशानियां खडी करनी शुरू कर दीं . मुस्लिम ब्लॉगर्स ने हमारी वाणी को संघर्ष के दिनों में सहारा दिया और उसे यहाँ तक लाये , अब उनकी मौजूदगी से हमारी वाणी का सौन्दर्य बिगड़ने लगा और कहा जाने लगा कि 'कुछ तो इन्हें भी आत्मावलोकन करना चाहिए .'
होता है , यह सब होता है . जब काम निकल जाता है और गाड़ी चल पड़ती है तो ऐसा ही होता है .
यह सब इतना ज्यादा गलत है कि सलीम साहब को मजबूरन हमारी वाणी छोड़ देनी पड़ी.
उनके कट्टर आलोचक भाई प्रवीण शाह साहब ने इस प्रवृत्ति का विरोध किया
http://praveenshah.blogspot.com/2011/04/blog-post_05.htmlविरोधियों के बाद उनके समर्थकों ने भी इस पर क्षोभ जताया .
माफियाओं के चंगुल में ब्लागिंग
'ब्लॉग कि ख़बरें' भी समय समय पर ताज़ा हालात से ब्लॉगर्स को आगाह करता रहा . इसकी कई पोस्ट्स पर यह जानकारी उपलब्ध है .
खैर यह सब तो चलता ही रहेगा . अब आप के लिए एक खबर यह है कि प्रियंका राठौर जी भी 'प्यारी माँ' के खिदमतगारों में शामिल हो गयी हैं. आप देखिये उनकी सुन्दर सी रचना -
http://pyarimaan.blogspot.com/2011/04/blog-post_05.htmlप्यार तो कारण हैउन लम्हों काजो बीतें है साथबचपन मेंवो ममता ,वो दुलारऔर वो गोदीतभी -लम्हों में सिमटा है प्यारजो कारण है अपनेपन काभावों का और अहसासों का .........!!
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