दोस्तों, मेरे इस ब्लॉग "शकुन्तला प्रेस का पुस्तकालय" पर बहुत कम कहूँ या बिल्कुल भी पोस्ट प्रकाशित नहीं होगी. आप एक "पुस्तकालय" के रूप में ही प्राथिमकता दें. इस "पुस्तकालय" पर अभी शोध कार्य हो रहे है. इसका अवलोकन करके अपने अनुभवों/सुझाव का मुझे लाभ दें. फ़िलहाल इसमें अपने शोध कार्य में गुण-अवगुणों के आधार पर या यह कहूँ जितनी जानकारी हुई है. उसी आधार इसमें लिंक और ब्लोगों शामिल किया गया/जाएगा. "पुस्तकालय" और पाठकों की आवश्कता को देखते हुए इसमें अन्य ब्लॉग और लिंक शामिल भी करें जायेंगे. आप एक दो या ज्यादा गलतियों की मेरा ध्यान आकर्षित करें और कुछ ब्लॉग और लिंकों के विषय में बताकर योगदान करें. इसमें कुछ ऐसे लिंकों को शामिल करने का मन है. जो आम-आदमी कहूँ या एक गरीब पीड़ित व्यक्ति को अगर वो लिंक मिल जाता है. तब उसका जीवन या उसकी परेशानियां कम हो सकें. जैसे-आज से लगभग एक साल पहले मुझे तीसरा खम्बा ब्लॉग पर जाकर एक अच्छी सलाह और जानकारी प्राप्त हुई थी. धन के लिए जीवन नहीं किन्तु जीवन के लिए धन है. मुझे धन से अधिक मोह भी नहीं है. अगर मैं धन के लिए अपनी पत्रकारिता का प्रयोग करता. तब आज करोड़पति होता, मगर मुझे आज अपनी गरीबी पर संतोष है. मैं देश व समाजहित में अच्छे कार्य करके अपने जीवन की सार्थकता साबित करना चाहता हूँ और शायद कुछ अन्य लोग भी प्रेरणा लेकर देश व समाजहित में अच्छे कार्य करें. अगर आप उपरोक्त "पुस्तकालय" में बैठकर कुछ ज्ञान प्राप्त करलें और जागरूक हो जाए. तब इस "पुस्तकालय" को बनाने का उद्देश्य सार्थक हो जाएगा. इस "पुस्तकालय" में आप अनुसरणकर्त्ता बनकर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाकर मेरा आप समर्थन कर सकते हैं.
आप स्वस्थ मानसिकता से तर्क-वितर्क करें. तब मैं आपसे स्वस्थ बहस करने के लिए तैयार हूँ और मेरी कमियों की निडर होकर आलोचनात्मक टिप्पणी करें. मुझे खुद अपनी कमी (गलती) दिखाई नहीं देंगी. जिस तरह से फूलों के साथ काँटों का होना स्वाभाविक है, ठीक उसी तरह अच्छाइयों के साथ बुराइयों का होना भी स्वाभाविक है. लेकिन हर मनुष्य में योग्यता है कि वो अपनी बुराइयों को जानकर उनको अच्छाइयों में बदलने का प्रयास कर सकता है,क्योंकि संत कबीर दास जी कहते हैं कि "निंदा करने वाले व्यक्ति को शत्रु न समझकर 'सच्चा मित्र' ही मानिए. उसे सदा अपनी समीप रखिए, यहाँ तक कि उसके लिए अपने आंगन में झोंपड़ी बनाकर उसके रहने की व्यवस्था कर दीजिए यानि उसके लिए सब सुविधायें जुड़ा दीजिए" इसका लाभ यह है कि-"निंदा करने वाला व्यक्ति पानी और साबुन के बिना ही आपके स्वभाव और चरित्र को धो-धोकर निर्मल बना देगा" तात्पर्य यह है कि "निंदा के भय से व्यक्ति सज़ग रहेगा, अच्छे काम करेगा और इस प्रकार उसका चरित्र अच्छा बना रहेगा"
सच लिखने हेतु हर पल मौत से लड़ना होता है |
कबीरदास जी अपने एक अन्य दोहे में कहते हैं कि-"ऊँचे कुल में जन्म लेने से ही कोई ऊँचा नहीं हो जाता. इसके लिए हमारे कर्म भी ऊँचे होने चाहिए. यदि हमारा कुल ऊँचा है और हमारे कर्म ऊँचे नहीं है, तब हम सोने के उस घड़े के समान है. जिसमें शराब भरी होती है. श्रेष्ठ धातु के कारण सोने के घड़े की सब सराहना करेंगे.लेकिन यदि उसमें शराब भरी हो तब सभी अच्छे लोग उसकी निंदा करेंगे. इसी तरह से ऊँचे कुल की तो सभी सराहना करेंगे, लेकिन ऊँचे कुल का व्यक्ति गलत कार्य करेगा. तब उसकी निंदा ही करेंगे.
जरूरत पड़ने पर अखबार भी स्वयं बेचना होता है, क्योंकि सच बिकता नहीं, छुपा या दबा दिया जाता है |
क्या पत्रकार केवल समाचार बेचने वाला है? नहीं. वह सिर भी बेचता है और संघर्ष भी करता है. उसके जिम्मे कर्त्तव्य लगाया गया है कि-वह अत्याचारी के अत्याचारों के विरुध्द आवाज उठाये. एक सच्चे और ईमानदार पत्रकार का कर्त्तव्य हैं, प्रजा के दुःख दूर करना, सरकार के अन्याय के विरुध्द आवाज उठाना, उसे सही परामर्श देना और वह न माने तो उसके विरुध्द संघर्ष करना. वह यह कर्त्तव्य नहीं निभाता है तो वह भी आम दुकानों की तरह एक दुकान है किसी ने सब्जी बेच ली और किसी ने खबर.
मेरा नाम "सिरफिरा" है. मेरे ब्लॉग "सिरफिरा-आजाद पंछी" और "रमेश कुमार सिरफिरा" मेरे अन्य ब्लॉग सच्चा दोस्त, आपकी शायरी, मुबारकबाद, आपको मुबारक हो, शकुन्तला प्रेस ऑफ इंडिया प्रकाशन, सच का सामना(आत्मकथा), तीर्थंकर महावीर स्वामी जी, शकुन्तला प्रेस का पुस्तकालय और(जिनपर कार्य चल रहा है>>>शकुन्तला महिला कल्याण कोष, मानव सेवा एकता मंच एवं चुनाव चिन्ह पर आधरित कैमरा-तीसरी आँख हैं)
कैमरा-तीसरी आँख वाला ब्लॉग एक-आध महीना लेट हो सकता लेकिन उस पर अपने लड़े दोनों चुनाव की प्रक्रिया और अनुभव डालने का प्रयास कर रहा हूँ.जिससे मार्च 2012 में दिल्ली नगर निगम के चुनाव होने है और मेरी दिली इच्छा है कि इस बार पहले से ज्यादा निर्दलीय लोगों को चुनाव में खड़ा होने के लिए प्रेरित कर सकूँ. पिछली बार 11 लोगों की मदद की थी. जब आम-आदमी और अच्छे लोग राजनीती में नहीं आयेंगे. तब तक देश के बारें में अच्छा सोचना बेकार है. मेरे ब्लॉग से अगर लोगों को जानकारी मिल गई. तब शायद कुछ अन्य भी हौंसला दिखा सकें. मेरे अनुभव और संपत्ति की जानकारी देने से लोगों में एक नया संदेश भी जाएगा.
दोस्तों आप पूरा लेख यहाँ "शकुन्तला प्रेस" का व्यक्तिगत "पुस्तकालय" क्यों? पढ़ सकते हैं.
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5 comments:
ramesh ji aapki sabhi baten satya se ot prot hain .
@शालिनी कौशिक जी, आपका धन्यवाद. एक बात कहूँ बुरा ना माने. मैं आप जितना पढ़ा-लिखा नहीं हूँ. कृपया अपनी टिप्पणी कम से कम मुझे हिंदी में दिया करें.अगर ऐसा ही रहा तब पढ़े-लिखे लोगों बातें और हाई-फाई अंग्रेजी समझने के कोंचिंग लेनी पड़ेंगी. फिर टिप्पणी समझ में आएगी. तब किसी गरीब की जान निकल जाएगी.
धन्यवाद ||
ramesh ji ,
isme padhe likhe hone ya n hone ki koi bat nahi hai aur dekha jaye to hame blogging ka aapki apeksha kuchh bhi gyan nahi hai ye to bas thode se samay ka abhav hai jo hamse aisee galti kara deta hai.aage se ham jab samay theek hoga tabhi aapki post par tippani denge taki aapko hamse koi shikayat n rahe .aur aainda aap ye n kahen ki aap hamse kam padhe likhe hain kyonki vyavharik gyan digree se prapt gyan se bahut upar hai.ab dekhiye ye aapke blog par laga hindi typing tool hai jo hamare likhe hue ko hindi nahi kar pa raha hai.isliye ek bar aur aapse mafi chahoongi.
@शालिनी कौशिक जी ने जो कहा और मैंने जो समझा.वो नीचे है:-रमेश जी, इसमें पढ़े-लिखे होने या न होने की कोई बात नहीं है और देखा जाये तो हमें ब्लॉग्गिंग का आपकी अपेक्षा कुछ भी ज्ञान नहीं है ये तो बस थोड़े से समय का आभाव है जो हमसे ऐसी गलती करा देता है.आगे से हम जब समय ठीक होगा तभी आपकी पोस्ट पर टिपण्णी देंगे ताकि आपको हमसे कोई शिकायत न रहे और आइन्दा आप ये न कहें कि-आप हमसे कम पढ़े-लिखे हैं क्योंकि व्यावहारिक ज्ञान डिग्री से प्राप्त ज्ञान से बहुत ऊपर है. अब देखिये ये आपके ब्लॉग पर लगा हिंदी टाइपिंग टूल है जो हमारे लिखे हुए को हिंदी नहीं कर पा रहा है.इसलिए एक बार और आपसे माफ़ी चाहूंगी.
@शालिनी कौशिक जी, मुझे ब्लॉग्गिंग का इतना ज्ञान नहीं है.इस संदर्भ में मेरी पोस्टों बयान दर्ज भी है. बाकी "समुन्द्र की गहराई में जाने पर मोती मिलता है" इसलिए परिश्रम करें. कोई चीज़ असंभव नहीं है.जहाँ तक बात टिप्पणी की है-वो आप दस दिन बाद भी करें.मेरे ब्लॉग पर कभी भी करें.मुझे आपकी ही किसी भी की मिल जायेगी,क्योंकि वहाँ मैंने समय सीमा को खत्म किया हुआ है.शिकायत-विचारों और सुझाव को समझने के बाद उत्तर के प्रति नैतिकता के आधार पर है. वैसे कोई शिकायत नहीं है. आपकी इस बात का समर्थन भी करता हूँ कि-व्यावहारिक ज्ञान डिग्री से प्राप्त ज्ञान से बहुत ऊपर है. आज समाज और स्कूलों में इसकी सबसे ज्यादा जरूरत भी है.अब आपकी शिकायत का प्रति उत्तर-मैंने आपका सारा मैटर पहले यहाँ से कॉपी किया और फिर अपने ब्लॉग पर लगे हिंदी के टूल में पेस्ट करके हर शब्द के बाद स्पेश दे दिया और उसका अनुवाद हो गया. कहीं-कहीं पर उसका उच्चारण सही नहीं दिखा तब मैंने बेकस्पेश लगाकर देख लिया और सही उच्चारण को सलेक्ट कर लिया. यह थी मेरी बात, अब आपकी बात पर आना चाहूँगा कि-आपको किस प्रकार और कैसे समस्या आई थी. अगर आप विस्तार से मुझे ईमेल या ब्लॉग पर बता दें. तब इस समस्या के निदान हेतु कुछ कार्य करूँ. हो सकता किसी अन्य और को भी यह समस्या आ रही हो. आप विस्तार से बताकर पूरे हिंदी ब्लॉग जगत के पाठकों और मेरा भला करेंगी. मुझे एक छोटी-सी खुशी भी होगी.क्या आप मुझे वो खुशी देना चाहेंगी? अगर आपको कभी भी यह महसूस हो कि इस नाचीज़ को इस विषय पर जानकारी है/होगी और मुझे उसमें जानकारी हुई. तब आपको उस विषय में जानकारी प्रदान करना चाहूँगा.मुझे बहुत खुशी होगी.जब ऊपर वाले के घर जाऊँगा तब आपकी दुआएं मेरे साथ होगी और यह ही मेरी सबसे बड़ी पूंजी होगी.जहाँ तक क्षमा आपको नहीं इस नाचीज़ सेवक को मांगनी चाहिए.उसके पाठक को हिंदी टूल पर परेशानी के लिए.अगर कोई व्यक्ति तर्क पूवर्क अपनी बात रख रहा है. तब एक सेवक का नैतिक फर्ज बनाता है कि-अपनी गलती को आगे बढ़कर स्वीकार करें. अब यहाँ टिप्पणी या अपनी बात ना रखकर ईमेल या मेरे ब्लॉग पर रखे. यहाँ पर टिप्पणी आने की सूचना नहीं मिलती है. आप इसको अन्थाया न लें.या आप यहाँ टिप्पणी करके मुझे सूचित करें. आपकी किसी शिकायत या बात का उत्तर देना मेरा पहला नैतिक फर्ज है. हो सकता मेरी बात का आप मतलब समझ गई होंगी. अनजाने में हुई किसी गलती के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ.
सभी पाठक देखें और विचार व्यक्त करें. जरुर देखे "सच लिखने का ब्लॉग जगत में सबसे बड़ा ढोंग-सबसे बड़ी और सबसे खतनाक पोस्ट" http://shakuntalapress.blogspot.com/2011/07/blog-post.html
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