जो यह कहता है कि जैसे औरत अधूरी है जब तक कि वह ‘मां‘ न बन जाए ऐसे ही साहित्यकार भी अधूरा है जब तक कि उसकी रचनाओं को सम्मानित न किया जाए।
क्या कहा कि आप नहीं जानते ?
अरे भाई यह वही ब्लॉगर कवि हैं जिन्होंने बाप के बारे में एक सुन्दर सी कविता लिखी है। देखिए उनकी कविता :
पितृ महिमा
माता कौ वह पूत है, पत्नी कौ भरतार।बच्चन कौ वो बाप है, घर में वो सरदार।।1।।
पालन पोषण वो करै, घर रक्खे खुशहाल।
देवे हाथ बढ़ाय कै, सुख-दु:ख में हर हाल।।2।।
मैया कौ अभिमान है, माँग भरे सिन्दूर।
दादा दादी हम सभी, उनसे रहें न दूर।।3।।
अपनौ अपनौ काम कर, देवें जो सहयोग।
पिता न पीछे कूँ हटे, कैसो हु हो संजोग।।4।।
कंधे सौं कंधा मिला, जा घर में हो काज।
पिता कमाये न्यून भी, रूके न कोई काज।।5।।
प्रतिनिधित्व घर कौ करै, जग या होय समाज।
बंधु बांधवों में रहे, बन के वो सरताज।।6।।
वंश चले वा से बढ़ै, कुल कुटुम्ब कौ नाम।
मात पिता कौ यश बढ़ै, करें सपूत प्रणाम।।7।।
परमपिता परमात्मा, जग कौ पालनहार।
घर में पिता प्रमान है, घर कौ तारनहार।।8।।
बेटी खींचे जनक हिय, बेटा माँ की जान।
बने सखा जब पूत के, भिड़ें कान सौं कान।।9।।
मातृ-पितृ-गुरु-राष्ट्र ऋण, कोउ न सक्यो उतार।
जीवन मे इन चार की, चरणधूलि सिर धार।।10।।
‘आकुल’ महिमा जनक की, जिससे जग अंजान।
मनुस्मृति में लेख है, सौ आचार्य समान।।11।।
उनकी दीगर रचनाएं देखने के लिए आपको जाना होगा लिंक पर :
http://saannidhya.blogspot.com/
1 comments:
vah vah
Post a Comment