जनाब रूपचंद शास्त्री मयंक जी पिछले 8-10 दिनों से पोस्ट तो डाल रहे थे लेकिन गूगल चैट में उनके नाम के सामने हरी रौशनी दिखाई नहीं दे रही थी। रोज़ नज़र आने वाला साथी नज़र न आए तो थोड़ी फ़िक्र सी हो जाती है। हमें फ़िक्र थोड़ी ही हुई क्योंकि ईमेल से उनकी तरफ़ से जवाब लगातार मिल रहे थे। ‘हिंदी ब्लॉगिंग गाइड‘ के लिए उनकी तरफ़ से लेख भी मिल गया लेकिन उनसे हम एक कविता की आशा लिए हुए थे और यह मज़मून था गद्य में। ईमेल करना हमने मुनासिब न जाना, सो फ़ोन पर उनसे बातचीत की तो पता चला कि पिछले 8-10 दिनों से वह अपनी दो किताबें तैयार कर रहे थे।
इसी बातचीत में हमें उनके जीवन के बारे में कुछ और जानकारी भी मिली जो कि बिन्दुवार इस प्रकार है
1- शास्त्री जी पेज मेकर की अच्छी जानकारी रखते हैं। सो अपनी किताब की कम्पोज़िंग ख़ुद ही करते हैं।
2- पहले उनकी जो किताबें प्रकाशित हुई हैं, उनकी कम्पोज़िंग भी उन्होंने ख़ुद ही की है।
3- प्रेस वाले को तो किताब और टाइटिल तैयार करके दिया जाता है। उसे बस छापनी भर होती है।
4- रोज़ाना 8-10 घंटे कम्प्यूटर पर बैठने के बाद भी किसी तरह की थकन या कोई परेशानी वह महसूस नहीं करते हैं।
5- तक़रीबन 10 ब्लॉगर वह तैयार कर देते हैं हर महीने।
इसी के साथ उनकी ख़ूबी यह है कि उनमें तास्सुब और तंगनज़री नहीं पाई जाती। तास्सुब कहते हैं सांप्रदायिकता को और तंगनज़री कहते हैं संकीर्णता को।
इन दो बातों से बचना निहायत मुश्किल है।
आपको ब्लॉग जगत में बहुत से ऐसे लोग मिलेंगे जो कहेंगे कि
‘भाई, हम आपका साथ तभी देंगे जबकि आप कुछ सकारात्मक और रचनात्मक काम करेंगे।‘
इसी बातचीत में हमें उनके जीवन के बारे में कुछ और जानकारी भी मिली जो कि बिन्दुवार इस प्रकार है
1- शास्त्री जी पेज मेकर की अच्छी जानकारी रखते हैं। सो अपनी किताब की कम्पोज़िंग ख़ुद ही करते हैं।
2- पहले उनकी जो किताबें प्रकाशित हुई हैं, उनकी कम्पोज़िंग भी उन्होंने ख़ुद ही की है।
3- प्रेस वाले को तो किताब और टाइटिल तैयार करके दिया जाता है। उसे बस छापनी भर होती है।
4- रोज़ाना 8-10 घंटे कम्प्यूटर पर बैठने के बाद भी किसी तरह की थकन या कोई परेशानी वह महसूस नहीं करते हैं।
5- तक़रीबन 10 ब्लॉगर वह तैयार कर देते हैं हर महीने।
इसी के साथ उनकी ख़ूबी यह है कि उनमें तास्सुब और तंगनज़री नहीं पाई जाती। तास्सुब कहते हैं सांप्रदायिकता को और तंगनज़री कहते हैं संकीर्णता को।
इन दो बातों से बचना निहायत मुश्किल है।
आपको ब्लॉग जगत में बहुत से ऐसे लोग मिलेंगे जो कहेंगे कि
‘भाई, हम आपका साथ तभी देंगे जबकि आप कुछ सकारात्मक और रचनात्मक काम करेंगे।‘
लेकिन जब आप सकारात्मक और रचनात्मक काम करेंगे तो ये पर उपदेश कुशल व्यक्ति आपको कहीं भी नज़र नहीं आएंगे।
हमारा व्यक्तिगत अनुभव है कि शास्त्री जी ने हमसे कभी कुछ भी मदद आदि करने के लिए नहीं कहा और न ही कभी शर्त रखी लेकिन हमने जब भी उन्हें आवाज़ दी तो अपने साथ खड़े पाया।
‘हिंदी ब्लॉगिंग गाइड‘ एक रचनात्मक काम है। इसमें किसी को कोई भी शक नहीं है और इसमें सहयोग के लिए चंद ब्लॉगर्स आगे भी आए हैं लेकिन वे कहां हैं जो हमसे हमेशा कहते रहे हैं कि कुछ रचनात्मक काम कीजिए, हम आपका सहयोग करेंगे ?
ख़ैर अच्छा काम तो होकर रहता ही है और ज़्यादा नहीं तो कम ही सही, उसमें सहयोग करने वाले भी आ ही जाते हैं।
जनाब रूपचंद शास्त्री जी हमारी नज़र में ऐसे ही लोगों में हैं, जो काम की प्रकृति देखते हैं आदमी का लिंग, धर्म और इलाक़ा नहीं। यही बात उनके बेहतर इंसान और बेहतर ब्लॉगर होने का सुबूत है।
इसके बावजूद भी वे मानते हैं कि ग़लतियां उनसे भी हो सकती हैं और बताए जाने पर वे उसे सुधार लेंगे।
आजकल ‘क़हतुर्-रिजाल‘ का दौर है।
‘क़हत‘ कहते हैं अकाल को और ‘रिजाल‘ कहते हैं इंसानों को अर्थात आज मानवीय गुणों से युक्त कोई आदमी कम ही दिखाई देता है। ऐसे में हमारे दरम्यान जनाब रूपचंद शास्त्री की मौजूदगी फ़ेवीकोल की मानिंद है। उनका काम जुड़ने और जोड़ने का काम है। उनके निजी और साझा सभी ब्लॉग इसी नीति पर काम कर रहे हैं।
उनके प्रयास सराहनीय हैं और उनकी मेहनत और ताक़त को देखकर हमें ‘च्यवन ऋषि‘ की याद बरबस ही हो आती है। आयुर्वेद के अच्छे जानकार तो वह हैं ही न !
‘हिंदी ब्लॉगिंग गाइड‘ एक रचनात्मक काम है। इसमें किसी को कोई भी शक नहीं है और इसमें सहयोग के लिए चंद ब्लॉगर्स आगे भी आए हैं लेकिन वे कहां हैं जो हमसे हमेशा कहते रहे हैं कि कुछ रचनात्मक काम कीजिए, हम आपका सहयोग करेंगे ?
ख़ैर अच्छा काम तो होकर रहता ही है और ज़्यादा नहीं तो कम ही सही, उसमें सहयोग करने वाले भी आ ही जाते हैं।
जनाब रूपचंद शास्त्री जी हमारी नज़र में ऐसे ही लोगों में हैं, जो काम की प्रकृति देखते हैं आदमी का लिंग, धर्म और इलाक़ा नहीं। यही बात उनके बेहतर इंसान और बेहतर ब्लॉगर होने का सुबूत है।
इसके बावजूद भी वे मानते हैं कि ग़लतियां उनसे भी हो सकती हैं और बताए जाने पर वे उसे सुधार लेंगे।
आजकल ‘क़हतुर्-रिजाल‘ का दौर है।
‘क़हत‘ कहते हैं अकाल को और ‘रिजाल‘ कहते हैं इंसानों को अर्थात आज मानवीय गुणों से युक्त कोई आदमी कम ही दिखाई देता है। ऐसे में हमारे दरम्यान जनाब रूपचंद शास्त्री की मौजूदगी फ़ेवीकोल की मानिंद है। उनका काम जुड़ने और जोड़ने का काम है। उनके निजी और साझा सभी ब्लॉग इसी नीति पर काम कर रहे हैं।
उनके प्रयास सराहनीय हैं और उनकी मेहनत और ताक़त को देखकर हमें ‘च्यवन ऋषि‘ की याद बरबस ही हो आती है। आयुर्वेद के अच्छे जानकार तो वह हैं ही न !
कभी समय मिला तो हम उनसे उनकी जवानी का राज़ भी पूछेंगे और जब पूछ लेंगे तो आपको बताएंगे भी। आपको पहले पता चल जाए तो आप हमें बता दीजिएगा।
देखिये उनका लेख : ब्लॉगिंग के बुनियादी उसूल Hindi Blogging Guide (4)
देखिये उनका लेख : ब्लॉगिंग के बुनियादी उसूल Hindi Blogging Guide (4)
9 comments:
bilkul sahi vishleshan kiya hai aapne shastri ji ka.aabhar.
शास्त्री जी के बारे में जानकारी पा कर मन प्रसन्न हो गया...
धन्यवाद
मुझे इतना मान देने के लिए आपका शुक्रिया ज़नाब!
Achhe log
Achha blaog
इतिहास गवाह है हक के साथी हमेशा कम ही हुआ करते हैं.
आपका शुक्रिया ज़नाब!
कमाल के हैं शास्त्री जी. ख़ुशी हुई इनके बारे मैं जान कर.
Shastri ji ke vishya me jaankari dene ke liye bahut bahut dhanyavaad.bahut achcha laga padhkar.
शास्त्री जी के बारे में जानकारी पा कर मन प्रसन्न हो गया...
धन्यवाद
कमाल के हैं शास्त्री जी. ख़ुशी हुई इनके बारे मैं जान कर.
आप बहुत सही कर रहे हैं जनाब! शास्त्री जी बल्किुल वैसे ही हैं जैसा आप कह रहे हैं
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