बिंदास बहन जी के नाम से लिखने वाली शगुन गुप्ता जी अपने ब्लॉग पर बता रही हैं कि
सोमवार से उलट बाकी दिनों में भीड़ थोड़ी कम ही होती है मंदिर में. मुझे शिवंलिंग को करीब से देखने का मौका मिला, वरना अब तक तो मैं फूल मालाओं से ढके शिवलिंग पर ही जल चढा रही थी, करीब से देखने पर पाया कि शिवलिंग काफी बड़ा है और पत्थर वाकई प्राचीन है किन्तु र्सिफ लिंग और नीचे की सतह, बाकी का शिव परिवार तो नया ही है। आगे बढ़ कर कर शिवलिंग को छुआ तो पीछे से जोरदार आवाज आई ‘‘ए लड़की शिवलिंग को हाथ नहीं लगाते, पाप चढेगा‘‘ मैंने घबरा के हाथ पीछे खींच लिया. मुड़ के देखा तो पीछे पंडित जी खडे़ थे, मैंने विनम्रता से कहा ‘‘पंडित जी, ये मेरे भगवान हैं, मुझे वरदान दें या श्राप, मुझे सब मंजूर है,आप फिक्र ना करें‘‘
फिर मैंने कहा ‘‘पंडित जी लिंग के नीचे का भाग जो योनिरूप में पार्वती जी को दर्शाता है, उस पर कितने ही पुरुष भक्ति में लीन अपना माथा रगड़ रगड़ के जाने कौन सी लकीरें मिटा रहे होते हैं, उन्हें कोई कुछ नहीं कहता, क्या उन्हें पाप नहीं चढ़ता?''
इसपर पंडित जी गुस्से में बोले, ‘‘वो कोई योनि नहीं होती है, शिवलिंग को पूरा ऐसे ही बनाया जाता है , पार्वती जी तो यहां अलग से परिवार के साथ बैठी हैं.‘‘ पंडित ने यहां तक भी कह दिया कि ‘‘आजकल के बच्चे तो भगवान को भी गंदा करने पर तुले हैं.‘‘
आजतक यही सुना था कि जो भगवान के जितना करीब होता है उसकी सभ्यता उतनी ही नर्म होती है. खैर बात को ओर ना बढ़ाते हुए मैं मंदिर से बाहर आ गई। हिंदु धर्म में शिव और पार्वती जी का स्थान श्रेष्ठतम है,यही वजह है कि उन्हें उनके यौगिक और सांसारिक रुपों में दर्शाया जाता है. इसका उदाहरण है खजुराहो में स्थित कंदरिया- महादेव का मंदिर जिसकी जंघा; दिवार पर ‘लावन्यमय‘ मिथुन मूर्ति के रुप में शिव और पार्वती को दर्शाया गया है,और सिर्फ यही नहीं, इस प्रकार की मूर्तियां कई और शिव मंदिरों की जंघा पर भी देखी जा सकती हैं।
पूरा लेख , यहाँ देख :
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/my-thinking/entry/%E0%A4%B2%E0%A4%A1-%E0%A4%95-%E0%A4%AF-%E0%A4%95-%E0%A4%AF-%E0%A4%A8-%E0%A4%B9-%E0%A4%A5-%E0%A4%B2%E0%A4%97-%E0%A4%8F-%E0%A4%B6-%E0%A4%B5%E0%A4%B2-%E0%A4%97-%E0%A4%95
5 comments:
sarthak prastuti .
क्या कहें इस पोस्ट पर!
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इस सुन्दर रचना पर टिप्पणी में देखिए मेरे चार दोहे-
अपना भारतवर्ष है, गाँधी जी का देश।
सत्य-अहिंसा का यहाँ, बना रहे परिवेश।१।
शासन में जब बढ़ गया, ज्यादा भ्रष्टाचार।
तब अन्ना ने ले लिया, गाँधी का अवतार।२।
गांधी टोपी देखकर, सहम गये सरदार।
अन्ना के आगे झुकी, अभिमानी सरकार।३।
साम-दाम औ’ दण्ड की, हुई करारी हार।
सत्याग्रह के सामने, डाल दिये हथियार।४।
सही बात है..क्या कहें इस पोस्ट पर और पोस्टिंग के मंतव्य पर...क्या कहना चाहती हैं वे....
--सत्य तो यही है कि वह लिंग व योनि ही है ...आदि लिंग-योनि स्वरुप जिससे संसार में मैथुन द्वारा स्वयंचालित जीव उत्पत्ति की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई ...रूद्र ( शिव, अर्धनारीश्वर) थे अतः उसे शिव-लिंग नाम से पूजा जाता है....यह नर-नारी युग्म रूप की सर्वप्रथम पूजा भाव है|
--लोक-व्यवहार रूप में वास्तव में पुराने समय में, अभी कुछ दशकों तक भी, कुंवारी कन्याओं को शिव पूजन वर्जित था... पंडित जी सिर्फ लौकिक ज्ञान का ही पिष्ट-पेषण कर रहे हैं...वे तात्विक ज्ञानी नहीं हैं ..
बहुत सही कहा आपने...
वो पोंगा पंडित जरूर पाखंडी होगा...
न जाने अपने आप को क्या समझते हैं ये लोग, खुद को तो धर्म और विज्ञान नहीं पता होता और दूसरों को शिक्षा देने के लिए मंदिरों मे चले जाते हैं...
बहुत बढ़िया लिखा आपने | वैसे हमारे यहाँ ऐसी कोई रोक नहीं है | लड़कियां या स्त्रियाँ भी यहाँ निर्विरोध शिवलिंग को हाथ लगाती हैं और पूजा करती है बाकि सब की तरह |
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