डा. दिव्या श्रीवास्तव जी अपने ब्लॉग ‘ज़ील‘ पर शायद अब और न लिखेंगी,
कारण उन्होंने यह बताया है कि किन्हीं अनुराग शर्मा जी ने एक पोस्ट लिखकर उनका अपमान कर दिया है और मर्धन्य से ब्लॉगर्स ने उनकी हां में हां मिलाई है।
यहां तक कि पाबला जी ने भी लिख डाला
‘छील कर रख दिया‘
बस यही बातें उन्हें खा गईं और वे हौसला हार बैठीं।
औरत ख़ुद को कितना ही ‘आयरन लेडी‘ लिख ले , लेकिन वास्तव में उसका दिल होता है मोम जैसा ही, जो एक आंच से ही पिघल जाता है और औरत का ही क्या ख़ुद मर्द का दिल भी ऐसा ही होता है चाहे वह कितना कह ले कि मर्द को दर्द नहीं होता।
दर्द भी होता है और टीस भी उठती है।
जो आदमी अपने रब की रज़ा की ख़ातिर उसका पैग़ाम आम करता है, सिर्फ़ वही इस दुख दर्द को ख़ातिर में नहीं लाता, वर्ना तो हरेक आदमी इसके सामने आखि़रकार घुटने टेक ही देता है।
समाज सुधारक बनना कोई हंसी खेल नहीं है।
जो इस राह पर चले वह चलने से पहले ही सोच ले कि
‘इक आग का दरिया है और डूब कर जाना है‘
यहां तक कि पाबला जी ने भी लिख डाला
‘छील कर रख दिया‘
बस यही बातें उन्हें खा गईं और वे हौसला हार बैठीं।
औरत ख़ुद को कितना ही ‘आयरन लेडी‘ लिख ले , लेकिन वास्तव में उसका दिल होता है मोम जैसा ही, जो एक आंच से ही पिघल जाता है और औरत का ही क्या ख़ुद मर्द का दिल भी ऐसा ही होता है चाहे वह कितना कह ले कि मर्द को दर्द नहीं होता।
दर्द भी होता है और टीस भी उठती है।
जो आदमी अपने रब की रज़ा की ख़ातिर उसका पैग़ाम आम करता है, सिर्फ़ वही इस दुख दर्द को ख़ातिर में नहीं लाता, वर्ना तो हरेक आदमी इसके सामने आखि़रकार घुटने टेक ही देता है।
समाज सुधारक बनना कोई हंसी खेल नहीं है।
जो इस राह पर चले वह चलने से पहले ही सोच ले कि
‘इक आग का दरिया है और डूब कर जाना है‘
9 comments:
ब्लॉगरों को मर्यादा तोड़ते देखा है और संयम खोते भी देखा है. मेरा विचार है कि दिव्या मज़बूत हैं और वे ब्लॉगिंग जारी रखेंगी.
कलम, कभी भी आलोचकों और आलोचनाओं
के सामने झुकी नहीं है.सफल नाविक तो वही
होता है , जो प्रवाह के विपरीत दिशा में नाव
चलाये. ऐसे झंझावात, मुश्किलें और विरोध
तो जीवन में आयेंगे ही. और कलम को उसका
सामना करना ही होगा.
' जब अति होगी तो इति भी होगी '
आनन्द विश्वास
अहमदाबाद
हिम्मत हारने से काम नहीं चलता। ऐसे अवरोध तो आयेंगे ही, इससे तो इस बात को बल मिलता है, कि नारी आज भी कमज़ोर है, मुझे पूरा विश्वास है, एक तूफ़ान आया है, जज़्बात की रौ में बह कर उन्होंने कह दिया होगा, जिसने भी ऐसा लिखा है, कि उनको चोट पहुँची, तो यह उसकी क्रूरता है, नारी को समझने की उसमें फितरत ही नहीं,उफ़ कैसे रहता होगा वह इस बोझ को सहता हुआ उनके बीच वह, खै़र मैं तो बस इतना कहूँगा-
वक़्त के घावों पे वक़्त ही मरहम लगायेगा।
वक़्त ही अपने परायों की पहचान करायेगा।
वक़्त की हर शै का चश्मदीद है आईना 'आकुल'
पीछे मुड़ के देखा तो वक़्त निकल जायेगा।।
दिव्या जी संभवतः ठन्डे दिमाग से पुनर्विचार करेंगी और करना भी चाहिए.जीवन में तमाम तरह के उतार-चढाव तो आते-जाते रहते ही हैं.सभी के दोस्त और दुश्मन दोनों ही हैं इस दुनियां में.इनसे हार क्या मानना.
smaj sudhark hona ek bat hai pr bina tthyon ko jane kuchh bhi kh dena shdyntr kari hona hai n ki smaj sudhark lkir ke fkir bn kr doosro ke dosh dekhna apni khat bhitr rkhna khan ka sudhar vd hai is blog pr kb aatnkiyon ki ninda ki gai hai kb afjl ko fansi ke liye kha gya hai kb kasmir ke pnditon ke punrvas pr jor diya hai kya ye jroori mudde nhi hain
baat to apki ekdum theek hai ji
kripaya hamare blog par padarpan karne ki kripa kare-
tanhaayaadein.blogspot.com
@ वेद व्यथित जी ! आपको ब्लॉग जगत में विचरण करते हुए इतना अर्सा हो गया लेकिन कमेंट करने की तमीज़ आज तक न आ सकी।
यह ब्लॉग जगत के समाचार देने वाला एक ब्लॉग है।
दिव्या जी के जाने के संबंध में है यह पोस्ट।
सभी आदरणीय महानुभावों ने इसी विषय में अपने विचार प्रकट किए हैं।
आप को भी इसी विषय पर विचार देने थे लेकिन आप बात कर रहे हैं अफजल गुरू और कश्मीरी पंडितों की।
थोड़ा सलीका सीख लीजिए पोस्ट पर कमेंट करने का।
फिलहाल आपके लिए यही धिक्कार बहुत है।
मै तो डाक्टर दिव्या की ताजा पोस्ट की प्रतीक्षा में हूँ।
लगता है व्यथित जी ने कमेंट व्यथित होकर लिखा है!
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