एक पुकार हिंदी ब्लॉगर्स के लिए
ब्लॉगिंग के मक़सद, उसकी दशा और दिशा को लेकर चिंतन करने वाले लेखों में नवीनतम लेख है आदरणीय महेंद्र श्रीवास्तव जी का, जो कि दिल्ली में एक वरिष्ठ ब्लॉगर हैं लेकिन सामाजिक सरोकारों को लेकर उनके अंदर एक छटपटाहट भी है। जिसका ज़मीर ज़िंदा है, जिसकी चेतना जागृत है और जो एक सोचने वाला दिमाग़ रखता है। उसके अंदर यह छटपटाहट होती ही है।
उनकी पोस्ट पढ़कर अहसास होता है कि शर्म-ग़ैरत और इंसानियत अभी ज़िंदा है। उनकी पोस्ट यह है-
हां ब्लागर होने पर मैं हूं शर्मिंदा ...
भाई महेंद्र श्रीवास्तव जी ! आपने इस अगुवाई के लायक़ ब्लॉगर्स की सूची में हमारा नाम शामिल किया, इसके लिए हम आपके शुक्रगुज़ार हैं।
हम अपने दिल पर हाथ रखकर कह सकते हैं कि जो काम हम यहां करने आए थे वही कर रहे हैं।
पत्रकारिता की शुरूआत एक मिशन के तौर पर हुई थी लेकिन बाद में यह मिशन के बजाय प्रोफ़ेशन बन गया। आप इस प्रोफ़ेशन में हैं और इसकी हक़ीक़त को रोज़ देखते ही हैं। इसके बावजूद कुछ साप्ताहिक-मासिक पत्र पत्रिकाएं आज भी मिशन की भावना के साथ मौजूद हैं, चाहे उनकी रीडरशिप कम और आर्थिक स्थिति कमज़ोर ही क्यों न हो ।हिंदी ब्लॉगिंग में भी ऐसे ब्लॉग मौजूद हैं जो मिशन की भावना से काम कर रहे हैं।
लोगों के बिखराव का एक लाभ यह होता है कि सच को सामने आने से रोकना असंभव हो जाता है।
यही बिखराव ब्लॉगिंग की ताक़त है।
जब भी ब्लॉगर्स एक होंगे तो उनकी नकेल किसी एक के हाथ में या एक ग्रुप के हाथ में आ जाएगी और सत्ता द्वारा उसे ख़रीद लेना ठीक वैसे ही आसान हो जाएगा जैसे कि अख़बार और टी. वी. चैनलों के संपादकों को ख़रीद लेना। एकता में जितनी ताक़त है, यह उतनी ही बड़ी कमज़ोरी भी बन जाती है।
इस समय यह संभव नहीं है कि किसी एक ब्लॉगर या किसी एक ग्रुप से बात करके कोई ‘डील‘ की जा सके।
आस्तिक-नास्तिक, वामपंथी-दक्षिणपंथी, हिंदू-मुस्लिम, सवर्ण-दलित, दिल्ली-बिहारी, अमीर-ग़रीब, औरत-मर्द और इसी तरह की बहुत सी बुनियादों पर लोग बंटे-छंटे और जमे हुए हैं।
इस बंटवारे के बावजूद सामाजिक सुरक्षा, रोज़गार, शिक्षा, चिकित्सा, भ्रूण रक्षा, वृद्ध सेवा, भ्रष्टाचार उन्मूलन और महंगाई ऐसे मुद्दे हैं जिन पर सभी लोग अपना रचनात्मक सहयोग देने के लिए एकमत हो सकते हैं।
‘हिंदी ब्लॉगर्स फ़ोरम इंटरनेशनल‘ की ब्लॉगर्स मीट वीकली की शुरूआत इसी मक़सद को लेकर की गई थी जिसे गुटबंदी के कारण अपेक्षित सहयोग नहीं मिला और वह इस लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाई।
हम यहां उन भ्रष्टाचारी राजनीतिक दलों से एक सीख ले सकते हैं जो कि अपनी विचारधारा में आकाश-पाताल का अंतर होने के बावजूद सत्ता का सुख लेने के लिए न्यूनतम साझा कार्यक्रम बना लेते हैं और कामयाबी के साथ जनता पर राज करते हैं पूरे 5 वर्ष।
जब बेईमान लोग सत्ता के लिए एक हो सकते हैं तो क्या ईमानदार ब्लॉगर सत्य के लिए एक नहीं हो सकते ?
आपने अच्छा मुद्दा उठाया है।
जितने भी मुद्दों पर एकता क़ायम हो सके, अच्छा है वर्ना तो सारी ऊर्जा आपस के टकराव में ही निकल जाएगी और जीनियस लोगों का यह मंच जनसामान्य को उल्लेखनीय कुछ भी न दे पाएगा।
धन्यवाद !
3 comments:
आपके विचारों से सहमत हूँ
दर्द जब हद से गुजर जाएगा
खुदबखुद दवा हो जाएगा
" देश मेरे आज तू देश भक्तो को देखने के लिए तरसता है "
" और देखा कैसा दिन आ गया है, एक कपूत अपने को सपूत कहता है "
" जो सपूतो की तुलना सरवन कुमार से करू, तो भारत माँ का बोज आज कौन उठाता है ?? "
" यहाँ तो हर कोई अपना बिल पास करना चाहता है "
" राजनीति इतनी बड़ी मंडी है, की इसमें देश भक्ति भी बिकती है "
" देश भक्तो को मंद बुध्दी कहा जाता है "
" यहाँ तो हर कोई देश भक्ति का ढोग करता है और अपना फंड बनाता है "
" फंड बैठकर खाने वाला और देश को सिर्फ बिल दिखाने वाला देश भक्त बन जाता है "
" क्या बदलोगे देश को जब तुम्हारा मन हर-बार बदल जाता है "
" कुछ नहीं दोगे तुम देश को, तुम्हे तो सिर्फ शहीदों के नामो का इस्तमाल करने आता है "
" जो अगर चाहत है , तुमे अब भी बाकि तो तुमेसे कोई एक देश बदलो की आवाज क्यों नहीं लगता है " ??
" जो बिल -बिल का रट्टा तुमने लगा रखा है , देखना उसमे एक दिन कोई सांप घुस जायेगा "
" डसेगा देश को और छोटे शिकारों को निगल जायेगा "
" फिर भी उम्मीद नहीं छोड़ी है मैंने मेरा दिल सच्चे देश भक्तो को अब भी आवाज लगता है "
" जय -हिंद ...जय भारत माँ "
badiya chitansheel prastuti..
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