सत्यम शिवम जी के लेख
चार शादियाँ और इस्लामी तर्क
पर हमने कहा -
4 औरतों से विवाह अनिवार्य नहीं है . पैगंबर साहब स. के ज़माने में जब युद्ध में मुसलमान मारे गये तो विधवा औरतों और उनकी बेसहारा लड़कियों को सहारा देने के लिए यह व्यवस्था दी गयी थी.
जो लोग यह इल्ज़ाम लगाते हैं कि मुसलमान चार चार शादियां करते हैं. वे भी देख सकते हैं कि हमारे न तो 4 बीवियां हैं, न 3 और न ही 2 और यही हाल हमारे दोस्तों का है. हमारा ही नहीं बल्कि यही हाल इस्लाम के आलिमों का है. हिंदुस्तान भर के छोटे-बड़े सभी आलिमों को देख लीजिए और आप बताईये कि किसके 4 बीवियां हैं और किसके 25 बच्चे हैं ?
झूठे इल्ज़ाम लगाना सिर्फ़ नफ़रत फैलाना है और आज राष्ट्रवाद का अर्थ बस यही नफ़रत फैलाना भर रह गया है. इसका असर उल्टा हो रहा है. इस्लाम के बारे में जितना भ्रम फैलाया जा रहा है, लोग उसके बारे में जानने के लिए उतने ही ज़्यादा उत्सुक हो रहे हैं और जब वे सच जानते हैं तो उनकी सारी ग़लतफ़हमियां पल भर में काफ़ूर हो जाती हैं.
जिस समाज में एक से ज़्यादा विवाह को बुराई घोषित कर दिया जाता है वहाँ विधवाओं की दुर्दशा होती है . वृन्दावन में विधवाओं की दुर्दशा सबके सामने है .
एक ताज़ा घटना देखिए -
यूपी के महोबा जिले के टपरन गाँव में एक महिला को पंचायत के फैसले के अनुपालन में ज़बरिया सफ़ेद साड़ी पहनने की शर्मनाक घटना सामने आई है. महिला का कसूर केवल इतना है कि विधवा हो जाने के बाद अपनी ससुराल से निकाले जाने के बाद अपने दो बच्चों को पालने के साथ उसने अपने भविष्य के लिए पुनर्विवाह कर लिया था. क्या विधवा को इतना भी हक़ नहीं है कि ससुराल से तिरस्कृत कर निकाले जाने के बाद वह अपनी औ अपने बच्चों की सुरक्षा और भविष्य के लिए फिर से विवाह कर सके ? भारतीय कानून इस बात की पूरी इजाज़त देता है क्योंकि कानून में इस तरह की रुढ़िवादी सामाजिक कुरीतियों के लिए कोई स्थान नहीं है फिर भी खुले आम पंचायतें इस तरह के फ़रमान जारी करती रहती हैं और उनके अनुपालन में गाँव वाले सामजिक मर्यादा को भी भूल जाते हैं. इस घटना में पुलिस के हरक़त में आ जाने के बाद मामला तूल पकड़ गया है वरना कोई भी इस घटना को जान भी नहीं पाता और इस महिला के साथ दुर्व्यवहार चलता ही रहता और गाँव में पंचायत के फ़ैसले के ख़िलाफ़ उसके साथ कोई भी खड़ा नहीं होता ?
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शादीशुदा मर्द एक एक विधवा को भी सहारा दे दें तो विधवाओं को भी जीवन की खुशियाँ मिल सकती हैं।
3 comments:
युवतियों को बहन और वृद्धाओं को माता स्वीकार कर लीजिए।
SAHI BAT....
युवतियों को बहन मान लिया जाए तब भी उनके विवाह की ज़िम्मेदारी तो भाई पर ज़रूर ही आएगी .
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