'मुशायरा' ब्लॉग पर
अनुवाद: डा. अनवर जमाल
अल्लाह जानता है मुहब्बत हमीं ने की
ग़ालिब के बाद आमों की इज़्ज़त हमीं ने की
जैसे भी आम हम को मिले हम ने खा लिए
आमों का मान रखा मुरव्वत हमीं ने की
खट्टे भी खाए शौक़ से मीठे भी खाए हैं
क़िस्मत के फ़ैसले पे क़नाअत हमीं ने की
ग़ालिब और आम -मनव्वर राना
अल्लाह जानता है मुहब्बत हमीं ने की
ग़ालिब के बाद आमों की इज़्ज़त हमीं ने की
जैसे भी आम हम को मिले हम ने खा लिए
आमों का मान रखा मुरव्वत हमीं ने की
खट्टे भी खाए शौक़ से मीठे भी खाए हैं
क़िस्मत के फ़ैसले पे क़नाअत हमीं ने की
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