राखे बासी त्यागे ताज़ा.
अंधी नगरी चौपट राजा.
वो देखो लब चाट रहा है
खून मिला है ताज़ा-ताज़ा.
फटे बांस के बोल सुनाये
कोई राग न कोई बाजा.
अंदर-अंदर सुलग रही है
इक चिंगारी, आ! भड़का जा.
बूढा बरगद बोल रहा है
धूप कड़ी है छावं में आ जा.
जाने किस हिकमत से खुलेगा
अपनी किस्मत का दरवाज़ा.
हम और उनके शीशमहल में?
पैदल से पिट जाये राजा?
वक़्त से पहले हो जाता है
वक़्त की करवट का अंदाज़ा.
---देवेंद्र गौतम
Read more: http://www.gazalganga.in/2012/09/blog-post_30.html#ixzz28SheNRrv
ग़ज़लगंगा.dg: अंधी नगरी चौपट राजा:
'via Blog this'
बेशक जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और अच्छे अच्छे काम किए और अपने परवरदिगार
के सामने आजज़ी से झुके यही लोग जन्नती हैं कि ये बेहिश्त में हमेशा रहेगें
-
ये वह लोग हैं जिन्होंने कुछ अपना ही घाटा किया और जो इफ़्तेरा परदाजि़याँ
(झूठी बातें) ये लोग करते थे (क़यामत में सब) उन्हें छोड़ के चल होगी (21)
इसमें शक ...
1 comments:
गजब गजल गंगा पढ़ी, गौतम जी आभार |
ऐसी ही उत्कृष्ट नित, मिले गजल हर बार ||
Post a Comment