Friday, July 29, 2011

दोस्तों आज मेरे बढे भाई समीर लाल जी का जन्म दिन है



दोस्तों आज मेरे बढे भाई समीर लाल जी का जन्म दिन है उनकी उड़न तश्तरी का जबलपुर से कनाडा तक का सफ़र तो आप सभी को पता है ......अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी ब्लोगिग्न और हिंदी भाषा के खुबसूरत रंग भरने वाले भाई समीर लाल जी को उनके जन्म दिन पर हार्दिक बधाई ..भाई  समीर लाल जी  हर छोटे बढे ब्लॉग पर जाकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं खट्टे मीठे अनुभव बांटते है और इसीलियें वोह आज हर दिल अज़ीज़ ब्लोगर बन गए है ..कनाडा की एजेक्स , ओटोरियों कम्पनी में सलाहकार का काम कर रहे भाई समीर ब्लोगर्स को भी बहतर प्रदर्शन की सलाह की ज़िम्मेदार बखूबी निभा रहे है ......भाई समीर की उड़नतश्तरी के अलावा लाल और बवाल जुगलबंदी भी ज़ोरों पर है ऐसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय संस्क्रती और हिंदी भाषा के प्रचारक , साहित्यकार , कवि भाई समीर लाल को एक बार फिर उनके जन्म दिन पर हार्दिक बधाई ..उनके कुछ अलफ़ाज़ उनकी ताज़ी रचना में प्रकाशित है इस रचना में उनके एक मुकम्म्मल और अच्छे इंसान होने का दर्पण है जो हू बहु पेश है ....अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

चलती सांसो का सिलसिला....

अपनी लम्बी यॉर्क, यू के की यात्रा को दौरान जब अपनी नई उपन्यास पर काम कर रहा था तो अक्सर ही घर के सामने बालकनी में कभी चाय का आनन्द लेने तो कभी देर शाम स्कॉच के कुछ घूँट भरने आ बैठता और साथ ही मैं घर के सामने वाले मकान की बालकनी में रोज बैठा देखता था उस बुजुर्ग को.
उसके चेहरे पर उभर आई झुर्रियाँ उसकी ८० पार की उम्र का अंदाजा बखूबी देती. कुर्सी के बाजू में उसे चलने को सहारा देने पूर्ण सजगता से तैनात तीन पाँव वाली छड़ी मगर उसे इन्तजार रहता दो पाँव से चल कर दूर हो चुके उस सहारे का जिसे उसने अपने बुढ़ापे का सहारा जान बड़े जतन से पाल पोस कर बड़ा किया था. जैसे ही वह इस काबिल हुआ कि उसके दो पैर उसका संपूर्ण भार वहन कर सकें, तब से वो ऐसा निकला कि इस बुजुर्ग के हिस्से में बच रहा बस एक इन्तजार. शायद कभी न खत्म होने वाला इन्तजार.
बालकनी में बैठे उसकी नजर हर वक्त उसके घर की तरफ आती सड़क पर ही होती. साथ उसकी पत्नी, शायद उसी की उम्र की, भी रहती है उसी घर में. वो ही सारा कुछ काम संभालते दिखती. कुछ कुछ घंटों में चाय बना कर ले आती, कभी सैण्डविच तो कभी कुछ और. दोनों आजू बाजू में बैठकर चाय पीते, खाना खाते लेकिन आपस मे बात बहुत थोड़ी सी ही करते. शायद दोनों को ही चुप रहने की आदत हो गई थी या इतने साल के साथ के बाद अकेले में एक दूसरे से कहने सुनने के लिए कुछ बचा ही न हो. कुछ नया तो होता नहीं था. वही सुबह उठना, दिन भर बालकनी में बिताना और ज्यादा से ज्यादा फोन पर ग्रासरी वाले को सामान पहुँचाने के लिए कह देना. पत्नी बीच बीच में उठकर गमलों में पानी डाल देती. उनमें भी जिसमें अब कोई पौधा नहीं बचा था. जाने क्या सोच कर वो उसमें पानी डालती थी. शायद वैसे ही, जैसे जानते हुए भी कि अब बेटा अपनी दुनिया में मगन है, वो कभी नहीं आयेगा- फिर भी निगाह घर की ओर आने वाली सड़क पर उसकी राह तकती.
उनके घर से थोड़ा दूर सड़क पार उसकी पत्नी की कोई सहेली भी रहती थी. नितांत अकेली. कई महिनों में दो या तीन बार इसको उसके यहाँ जाते देखा और शायद एक बार उसे इनके घर आते. जिस रोज वो उसके यहाँ जाती या वो इनके यहाँ आती, उस शाम पति पत्नी आपस में काफी बात करते दिखते. शायद कुछ नया कहने को होता.
अक्सर मेरी नजर अपनी बालकनी से उस बुजुर्ग से टकरा जाती. बस, एक दूसरे को देख हाथ हिला देते. शायद उसने मेरे बारे में अपनी पत्नी को बता दिया था. अब वो भी जब बालकनी में होती तो हाथ हिला देती. हमारे बीच एक नजरों का रिश्ता सा स्थापित हो गया था. बिना शब्दों के कहे सुने एक जान पहचान. मैं अक्सर ही उन दोनों के बारे में सोचा करता. सोचता कि ये बालकनी में बैठे क्या सोचते होंगे?  क्या सोच कर रात सोने जाते होंगे और क्या सोच कर नया दिन शुरु करते होंगे?
मुझे यह सब अपनी समझ के परे लगता. कभी सहम भी जाता, जब ख्याल आता कि यदि इस महिला को इस बुजुर्ग के पहले दुनिया से जाना पड़ा तो इस बुजुर्ग का क्या होगा? मैने तो उसे सिर्फ छड़ी टेककर बाथरुम जाते और रात को अपने बिस्तर तक जाने के सिवाय कुछ भी करते नहीं देखा. यहाँ तक की ग्रासरी लाने का फोन भी वही महिला करती. तरह तरह के ख्याल आते. मैं सहमता, घबराता और फिर कुछ पलों में भूल कर सहज हो जाता हूँ.
मैं भरी दुपहरी अपने बंद अँधेरे कमरे में ए सी को अपनी पूरी क्षमता पर चलाये चार्ल्स डी ब्रोवर की पुस्तक ’फिफ्टी ईयर्स बिलो ज़ीरो’ को पढ़ता आर्कटिक अलास्का की ठंड की ठिठुरन अहसासता भूल ही जाता हूँ कि बाहर सूरज अपनी तपिश के तांडव से न जाने कितने राहगीरों को हालाकान किये हुए है. कितना छोटा आसमान बना लिया है हमने अपना. कितनी क्षणभंगुर हो चली है हमारी संवेदनशीलता भी. बहुत ठहरी तो एक आँसूं के ढुलकने तक.
समय के पंख ऐसे कि कतरना भी अपने बस में नहीं तो उड़ चला. कनाडा वापसी को दो तीन दिन बचे. उस शाम बहाना भी अच्छा था कि अब तो वापस जाना है और कुछ मौसम भी ऐसा कि वहीं बालकनी में बैठे बैठे नियमित से एक ज्यादा ही पैग हो गया स्कॉच का. शराब पीकर यूँ भी आदमी ज्यादा संवेदनशील हो जाता है और उस पर से एक्स्ट्रा पी कर तो अल्ट्रा संवेदनशील. कुछ शराब का असर और कुछ कवि होने की वजह से परमानेन्ट भावुकता का कैरियर मैं एकाएक उन बुजुर्गों की हालत पर अपने दिल को भर बैठा याने दिल भर आया उनके हालातों पर. सोचा, आज जा कर मिल ही लूँ और इसी बहाने बता भी आऊँगा कि दो दिन में वापस कनाडा जा रहा हूँ. एक बार को थोड़ा सा अनजान घर जाते असहजता महसूस हुई किन्तु शराब ने मदद की और मैं अपनी सीढ़ी से उतर कर उनकी सीढ़ी चढ़ते हुए उनकी बालकनी में जा पहुँचा.
वो मुझे देखकर जर्मन में हैलो बोले. जर्मन मुझे आती नहीं, मैने अंग्रेजी में हैलो कहा. हिन्दी में भी कहता तो शायद उनके लिए वही बात होती क्यूँकि अंग्रेजी उस बुजुर्ग को आती नहीं थी. इशारे से वो समझे और इशारे से ही मैं समझा. फिर उनका इशारा पा कर उनके बाजू वाली कुर्सी पर मैं बैठ गया. उनकी गहरी ऑखों में झांका. एकदम सुनसान, वीरान. मैने उनके हाथ पर अपना हाथ रखा. भावों ने भावों से बात की. शायद एक लम्बे अन्तराल के बाद किसी तीसरे व्यक्ति का स्पर्श पा दबे भावों का सब्र का बॉध टूटने की कागर पर आ गया हो. उनकी आँखें नम हो आईं. मैं तो यूँ भी अल्ट्रा संवेदनशील अवस्था में था. अति संवेदनशीलता में शराब आँख से आँसू बनकर टप टप टपकने लगी. बुजुर्ग भी रो दिये और मेरा जब पूरा एक्स्ट्रा पैग टपक गया, तो मैं उठा. उन्हें हाथ पर थपकी दे ढाढस बँधाई और उन्हें नमस्ते कर बिना उनकी तरफ देखे सीढ़ी उतर कर लौट आया.
सुबह उठकर जब उनकी बालकनी पर नजर पड़ी तो वह बुजुर्ग हाथ हिलाते नजर आये. एक बार फिर मेरी आँख नम हुई यह सोचकर कि कल से यह मेरा भी इन्तजार करेंगे हाथ हिलाने को. आँख में आई नमी ने अहसास करा दिया कि कल जो बहा था वो शराब नहीं थी. दिल की किसी कोने से कोई टीस उठी थी उस एकाकीपन और नीरसता को देख, जो आज न जाने उस जैसे कितने बुजुर्गों की साथी है....

15 comments:

रविकर said...

JANM-DIN KI BADHAAI ||

DR. ANWER JAMAL said...

मुबारक हो समीर लाल जी को बहुत बहुत बहुत .

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

समीर लाल "समीर" को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ!

amrendra "amar" said...

Sameer Sahab Aapko janm din ki hardik shubkamnaye.................

सदा said...

जन्‍मदिन की बहुत-बहुत शुभकामनाएं .... ।

संजय भास्‍कर said...

समीर लाल जी को बहुत बहुत शुभकामनाएं .... ।

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

समीर भाई को जन्म दिन की बहुत बहुत शुभ कामनाएँ| आप ने सही लिखा - समीर भाई हर छोटे से छोटे ब्लॉग पर भी न सिर्फ़ जाते हैं, बल्कि पर्याप्त उत्साह वर्धन भी करते हैं| मैं इस का प्रत्यक्ष उदाहरण हूँ|

ईश्वर से यही कामना है कि, समीर भाई को दीर्घायु प्रदान करें|

POOJA... said...

Happy Birthday Uncle...
sach kabhi-kabhi neerasta yunhi bah jaati hai... aur bhavnaon ko bhasha ya shabdon ki zaroorat nahi hoti... wo sirf mahsoos ki jaa sakti hain...

Mahesh Barmate "Maahi" said...

जन्मदिन मुबारक हो समीर जी !

अख्तर जी, आपकी लेखनी का तो कोई जवाब ही नहीं... :)

रज़िया "राज़" said...

जन्मदिन मुबारक हो बहोत बहोत बधाई समीरभाई को।

Sadhana Vaid said...

समीर जी को जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनायें ! उनका यश दिन दूना रात चौगुना बढ़ता रहे और वे सफलता के सर्वोच्च शिखर पर कदम रख अपनी कीर्ति पताका फहरायें और यथेष्ट यश अर्जित करें यही कामना है ! नये ब्लॉगर्स का वे सदैव उत्साहवर्धन करते हैं और उनकी रचनाओं पर उनकी प्रतिक्रियाएं नियमित रूप से आती हैं यह उनकी उदारता एवं बड़प्पन का परिचायक है ! ईश्वर उन्हें सारी खुशियाँ दे यही मंगलकामना है !

creative channel said...

samir lal g

Tum jio hajaro sal har saal ke din ho 50 hajar

जन्मदिन मुबारक हो समीर जी !

वीना श्रीवास्तव said...

बहुत-बहुत बधाई....

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

अखतर भाई आप अकेले ही नहीं हैं हम भी साथ हैं बधाई देने में समीर जी को :)

Kunwar Kusumesh said...

समीर लाल जी को जन्म दिन की बहुत बहुत शुभकामनाएं

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