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किसी मसले पर जहाँ पर किसी मुसलमान की समझ में कुछ नहीं आता है कि कहीं उसके द्वारा किया जाने वाला कोई काम इस्लामिक मूल्यों पर ग़लत न हो तो वह मुफ्ती और उलेमा की राय मांगने के लिए स्वतंत्र है पर साथ ही यह भी देखना चाहिए कि उस व्यक्ति की परिस्थितियां क्या थीं और किस तरह से उसने काम किया है ? हर स्थान पर परिस्थितयां भिन्न हो सकती है और किसी एक फतवे को सभी पर बाध्यकारी नहीं बनाया जा सकता है तभी इस्लाम में फतवे को बाध्यकारी बनाने की जगह स्वैच्छिक बनाया गया है. यह इस्लाम की राह पर चलने का सही रास्ता तो बताता ही है साथ ही यह भी स्पष्ट करता है कि इस्लाम के अनुयायी किस तरह से अपने जीवन को सही ढंग से जी पाएं. आज जिस तरह से पत्रकारिता की जाती है उसमें भी किसी भी फतवे को लेकर बहुत कुछ कहा जाता है जबकि उसके पूरे सन्दर्भ का ज़िक्र भी नहीं किया जाता है. किसी भी फतवे को लेकर जब भी कुछ छपता है तो लोग उसके असली पहलू को समझने के स्थान पर अपने ढंग से उसकी भी व्याख्या करना शुरू कर देते हैं. अब सही समय है कि इस्लामिक शिक्षा केन्द्रों को केवल मुसलमानों के लिए ही नहीं बल्कि इस्लाम के मूल्यों की सही जानकारी सभी तक पहुँचाने के लिए सही दिशा में प्रयास करने चाहिए जिससे इस तरह के किसी फतवे को लेकर अनावश्यक रूप से सनसनी फ़ैलाने का काम न किया जा सके.
फतवा ज़रूरी या स्वैच्छिक ?
किसी मसले पर जहाँ पर किसी मुसलमान की समझ में कुछ नहीं आता है कि कहीं उसके द्वारा किया जाने वाला कोई काम इस्लामिक मूल्यों पर ग़लत न हो तो वह मुफ्ती और उलेमा की राय मांगने के लिए स्वतंत्र है पर साथ ही यह भी देखना चाहिए कि उस व्यक्ति की परिस्थितियां क्या थीं और किस तरह से उसने काम किया है ? हर स्थान पर परिस्थितयां भिन्न हो सकती है और किसी एक फतवे को सभी पर बाध्यकारी नहीं बनाया जा सकता है तभी इस्लाम में फतवे को बाध्यकारी बनाने की जगह स्वैच्छिक बनाया गया है. यह इस्लाम की राह पर चलने का सही रास्ता तो बताता ही है साथ ही यह भी स्पष्ट करता है कि इस्लाम के अनुयायी किस तरह से अपने जीवन को सही ढंग से जी पाएं. आज जिस तरह से पत्रकारिता की जाती है उसमें भी किसी भी फतवे को लेकर बहुत कुछ कहा जाता है जबकि उसके पूरे सन्दर्भ का ज़िक्र भी नहीं किया जाता है. किसी भी फतवे को लेकर जब भी कुछ छपता है तो लोग उसके असली पहलू को समझने के स्थान पर अपने ढंग से उसकी भी व्याख्या करना शुरू कर देते हैं. अब सही समय है कि इस्लामिक शिक्षा केन्द्रों को केवल मुसलमानों के लिए ही नहीं बल्कि इस्लाम के मूल्यों की सही जानकारी सभी तक पहुँचाने के लिए सही दिशा में प्रयास करने चाहिए जिससे इस तरह के किसी फतवे को लेकर अनावश्यक रूप से सनसनी फ़ैलाने का काम न किया जा सके.
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