शगुन गुप्ता |
शगुन गुप्ता कहती हैं कि
हाल ही में मेरे पड़ोस में रहने वाली आंटी जी की मौत हुई भगवान की दया से मौत देखने और उससे जुड़े रीति रिवाज़ों को समझने का ये मेरा पहला मौका था। अब तक बस ये पता था की दिल की धड़कन रुक जाती है और जान निकल जाती है, अब पता चला कि जान निकलते वक्त बहुत तड़पाती है। आंटी जी के दोनों बच्चे मेरे हमउम्र हैं और हम तीनों को नहीं पता था कि प्राण पलंग पर नहीं ज़मीन पर निकलने चाहियें नहीं तो मुक्ति नहीं मिलेगी हाँ गंगाजल पिला दिया था और हाथ पाँव भी सीधे कर दिये थे (क्योंकि खून का दौरा रुक जाने से शरीर अकड़ जाता है और अंगों को सीधा करने के लिये उन्हें तोड़ना पड़ता है)
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नोट: लिंक ऊपर शीर्षक में पेवस्त है.
18 comments:
कर्म काण्ड |
छूट भी है-
अपने स्नेही के जाने का गम-
ध्यान भटकाने के कई उपाय-
राम जाने-
इस प्रकार की पोस्ट लगाकर वैंनस्यता को मत बढाइए।
कोई भी धर्म छोटा बड़ा नहीं होता।
जिसका जिसमें अकीदा है उसे उस पर आचरण करना चाहिए!
@ आदरणय रूपचंद शास्त्री जी ! शगुन गुप्ता जी ने अपनी पोस्ट में अंतिम संस्कार को निकट से देखने के अपने पहले अनुभव को शेयर किया है। हमने एक अंश के साथ उनकी पोस्ट की सूचना ‘ब्लॉग की ख़बरें‘ पर दी है। आपको पोस्ट पर कोई आपत्ति है तो आप उसे पोस्ट लेखिका ‘शगुन गुप्ता‘ को दे सकते हैं।
आप स्वयं चर्चामंच पर हर तरह की पोस्ट्स के लिंक्स देते हैं। आपके लिंक संकलन पर किसी ने कभी आपत्ति जताई तो आपने सदा यही कहा है कि यह प्रतिक्रिया पोस्ट पर दी जाए। हम भी यही कहेंगे।
आपकी प्रतिक्रिया के बाद हम आपसे यह पूछना चाहेंगे कि आपके चर्चामंच पर आदम हव्वा का नंगा फ़ोटो तक लगाया गया और हमने उस पर आपत्ति जताई थी लेकिन आपने उसे आज तक नहीं हटाया।
क्या आप किसी पैग़म्बर के नंगे फोटो को लगाना वैमनस्य पैदा करने वाला नहीं मानते ?
लिंक यह है-
http://charchamanch.blogspot.in/2012/04/840.html
इसी क्रम में कमल कुमार नारद की वे पोस्ट्स हैं, जिसमें उसने इसलाम, क़ुरआन और पैग़म्बर (स.) का मज़ाक़ उड़ाया है। उनके लिंक्स भी आपके चर्चामंच पर आज तक शोभायमान हैं और आपके चर्चामंच द्वारा नफ़रत फैलाने वाली पोस्ट्स को पाठक भेजे गए।
आपकी राय का आदर करते हुए हमने पोस्ट को एडिट करके आपत्तिजनक लगने वाली बातों को हटा दिया है। आप भी ऐसी सभी पोस्ट्स को एडिट करके आपत्तिजनक लिंक्स को हटा दें।
नापने का पैमाना एक रखना चाहिए।
तो आप विद्वान होकर बदले की भावना से काम कर रहे हो क्या
मैंने तो सुझाव दिया था, आपको बुरा लगा हो तो जाने दीजिए
रही बात चर्चा मंच की तो उसमें किसी की पोस्ट पोस्ट के रूप में नहीं लगाई जाती है।
केवल चर्चा ही की जाती है, मात्र लिंक देकर।
@ मान्यवर रूपचंद शास्त्री जी ! ‘ नापने का पैमाना एक रखना चाहिए‘
यह याद दिलाना बदले की भावना कैसे हो कहलाएगा ?
अगर गिलास भर कर शराब पीना बुरा है तो अंगुलि भर पीना भी वर्जित ही है।
पैग़म्बर के नंगे फ़ोटो लगाने पर आपको अभी भी शर्मिंदगी महसूस नहीं हो रही है। अफ़सोस की बात है।
इस प्रकार की पोस्ट लगाकर वैंनस्यता को मत बढाइए।
कोई भी धर्म छोटा बड़ा नहीं होता।
जिसका जिसमें अकीदा है उसे उस पर आचरण करना चाहिए!
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इस कमेंट में बुरी लगने वाली क्या बात है?
मान्यवर असली पोस्ट उड़ चुकी है , उस पर कमेंट कैसे करें
बहुत कुछ नहीं कहना बस इतनी इल्तिजा है कि दूसरे के घर में झांकना कभी अच्छा नहीं होता
रिवाज सबके अपने अपने है
रही कुरीतियों की बात तो यह कहाँ नहीं
आपने एक लिंक दिया है-
http://charchamanch.blogspot.in/2012/04/840.html
क्या है इस लिंक में?
किसी भी धर्म के रीति रिवाज पर ऐसी पोस्ट लिखना बहुत ही बुरा है,सभ्य व्यक्ति को ऐसे करने से बचना चाहिए.
मुझे कुछ भी घुमा फिर कर कहने की आदत नहीं है सही बात कहने में न तो संकोच है और न ही हिचक सही बात सदैव कड़वी लगती है और इंसान तिलमिला उठता है. मैं इस पोस्ट की कड़ी शब्दों में निंदा करता हूँ 'Best Blogger' का ख़िताब और ईनाम पाने वालों से इस तरह की पोस्ट की अपेक्षा कदापि नहीं की जा सकती है.
@ मान्यवर शास्त्री जी !
http://charchamanch.blogspot.in/2012/04/840.html
इस लिंक में जो बात क़ाबिले ऐतराज़ है, उसे इस लिंक की पोस्ट पर विस्तृत कौमेंट देकर समझाया गया है.
खुशदीप सहगल जी ने भी अपनी पोस्ट में फोटो बदल दिया है और आपकी चर्चामंच पर यह चित्र आज भी लगा हुआ है और कमल कुमार की पोस्ट्स के लिंक भी.
@ अरूण कुमार शर्मा ‘अनंत‘ जी ! ‘ब्लॉग की ख़बरें‘ आपको यह सूचना देता है कि किस ब्लॉगर ने अपने ताज़ा लेख में किस विषय पर अपने विचार व्यक्त किए हैं ?
आपको सूचना मिल गई और आपने इसका संज्ञान लिया। इसके लिए धन्यवाद !
यह मंच आपत्ति जताने के लिए नहीं है।
आपत्ति जताने के लिए आपको शगुन गुप्ता जी मूल पोस्ट पर जाना होगा। जिसका लिंक पोस्ट में उपलब्ध कराया गया है।
उन्होंने यह पोस्ट दूसरे के धर्म पर नहीं लिखी है बल्कि अपने धर्म पर लिखी है।
@ दिलबाग विर्क जी ! भेदबुद्धि छोड़ दीजिए। सारी धरती के वासी एक परिवार हैं। भारतीय संस्कृति यह सिखाती है। यहां कोई दूसरा घर नहीं है। यहां कोई पराया नहीं है। सब अपने हैं। अच्छी बात सबकी है। भेदभाव अच्छी बात नहीं है।
खुद ऐसे लिंक प्रस्तुत करो तो सेवा और दूसरा करे तो ऐतराज़ ?
DR. ANWER JAMAL मैं आपके मंच या आपके निजी जीवन में कोई हस्तक्षेप नहीं कर हूँ. यह पोस्ट आदरेया शगुन गुप्ता की है परन्तु लिंक्स तो आपके ब्लॉग पर है और आपत्ति वहीँ की जाती हैं जहाँ ब्लॉग के लिंक्स का दुर्रउपयोग होता है. चर्चा मंच आपके धर्म विशेष की खिलाफत नहीं कर करता है तो आपका भी कोई हक़ नहीं बनता की आप किसी धर्मं का प्रस्तुति इस प्रकार से करें.
@ आदरणीय रूपचंद शास्त्री जी ! कोई हमें बुरा कहे। हम पर इसका असर नहीं पड़ता। कोई हमसे रूठ जाए, हमें परवाह नहीं लेकिन अगर कोई अपना प्यारा आदमी हमें ग़लत समझे तो हमें ज़रूर दुख होता है।
आप हमारे आदरणीय हैं। हमने आपसे हमेशा कहा है कि हम आदमी हैं। हमसे ग़लती स्वाभाविक है। आपको जब कभी लगे कि हमसे ग़लती हो रही है तो आप हमें एक फ़ोन कर दीजिए। हम अपनी ग़लती सुधार लेंगे। कई बार ग़लती नहीं होती लेकिन बात ग़लत लगती है। ‘ब्लॉग की ख़बरें‘ पर शगुन गुप्ता की ताज़ा पोस्ट पर भी यही स्थिति है। हम समझते हैं कि हमने कोई ग़लती नहीं की है लेकिन फिर भी हमने आपके आदरवश पोस्ट को एडिट कर दिया है। फ़ोन करके आप पोस्ट हटाने के लिए कहते तो हम उसे हटा ही देते।
आज चर्चामंच पर आपका यह कहना ग़लत है कि हमारे दिल में हिन्दू धर्म के प्रति वैमनस्य है। ‘ब्लॉग की ख़बरें‘ पर हमने अपने लेख ‘अवाम को लूटने वाले पीरों की हक़ीक़त‘ का लिंक भी दिया है जिसमें मुसलिम मुफ़ितयों और पीरों के पाखंड को उजागर किया गया है।
(देखें यह लिंक -
http://blogkikhabren.blogspot.in/2012/12/blog-post.html)
क्या मुसलिम मुफ़ितयों और पीरों के पाखंड को उजागर करने के कारण हमारे दिल में इसलाम से नफ़रत मानी जाएगी ?
‘ब्लॉग की ख़बरें‘ एक निष्पक्ष मंच है। यहां हरेक विचारधारा की पोस्ट्स के लिंक बिना किसी पक्षपात के दिए जाते हैं।
कहते अपने पक्ष की, पंडित मुल्ला शेख |
लोटपोट होते रहे, शगुन अपशगुन देख |
शगुन अपशगुन देख, बुराई करते खंडित |
अच्छाई इक पाय, करे हैं महिमा मंडित |
अपना अपना धर्म, मर्म में लेकर रहते |
करते किन्तु कुकर्म, पक्ष एकल ही कहते ||
जमाल जी , हमने क्या मजाक उदय है , तर्क और तःटी देते , नहीं तो लिंक ही दे देते ... खैरेक कहावत है , भैंस के आगे बीन बजाओ , भैंस कड़ी पगुराय .. मजाक उड़ना अलग है , कुरीतिय अलग ... अच्छा है की राम इस्लाम में नहीं हुते , नहीं तो हर मुल्ला जीवन में एक बार अपनी बीवी को छोड़ता , अब आज के ज़माने में जमीं फटने से तो रही , तो खुदे फरसा से खन कर घुसा देता , फिर , नेक्स्ट .
शगुन गुप्ता जैसे कम समझ लोगों के लिए:
‘धर्म से शिकायत’
क्या खाने को चखा
खाने की शिकायत करने से पहले?
क्या परखा उसके गुण दोषों को या
यूँ हीं चाँद टेढ़ा कर लिया ?
ये आदत है तुम्हारी,
अबाध स्वतंत्रता से उपजी
एक बुरी आदत .
लंबी गुलामी का असर हो गया है
तुम्हारे मस्तिष्क पर.
तुम किनारे पर बैठ
समुन्दर को छिछला बताते हो .
किनारे पर जमा गन्दगी को देख
सागर की प्रकृति बताते हो.
ये गन्दगी सागर का दोष नहीं
यह दोष है तुम्हारा.
जो समझते हैं स्वयं को ज्ञानी
अपने सीमित ज्ञान के साथ.
क्या पन्ने पलटे उपनिषद , गीता के कभी
कभी कोशिश की तत्व जानने की.
चार पन्ने की कोई किताब पढ़ी और
सबको झूठा कह दिया.
तुम क्यों नहीं तलाशते कोई और सागर,
लेकिन नहीं
वहाँ आज़ादी नहीं
बुरा कहने की .
ये तुम्हारे संस्कारों का ही दोष है .
तुम नंगा होना चाहते हो,
तुम्हे सत्य और झूठ से मतलब नहीं है.
तुम्हे नंगा होना अच्छा लगता है .
खासकर गैरों के सामने .
... नीरज कुमार ‘नीर’
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