जुनूं की बिसातें उलटकर रहेंगे.
हम अहले-खिरद से निपटकर रहेंगे.
पता है कि खुद में सिमटकर रहेंगे.
हम अपनी जड़ों से भी कटकर रहेंगे.
ये पंजे बड़े तेज़ हैं इनसे बचना
ये दुनिया की हर शै झपटकर रहेंगे.
भले आग लग जाये सारे नगर में
हम अपने घरों में सिमटकर रहेंगे.
लिखेंगे कहानी नयी मंजिलों की
वरक़ जिंदगी का पलटकर रहेंगे.
कभी तो हमारी ज़रूरत पड़ेगी
वो कितने दिनों हमसे कटकर रहेंगे.
भुला देंगे यादें गये मौसमों की
हवाओं से कितना लिपटकर रहेंगे.
वतन पर बढ़ेंगे अभी और खतरे
अगर हम कबीलों में बंटकर रहेंगे.
ख़ुशी के बहाने तलाशेंगे गौतम
गमे -जिंदगी से सलटकर रहेंगे.
---देवेंद्र गौतम
ग़ज़लगंगा.dg: वरक़ जिंदगी का पलटकर रहेंगे:
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