मीना त्रिवेदी जी का एक अनुभव उनके लेख में
अब मैं आपसे वृंदावन की बात करूंगी। वृंदावन में सैकड़ों विधवाएं हैं जिन्हें उनके बेटे या परिवार वाले कृष्ण दर्शन के नाम पर छोड़ गए और फिर लौटकर कभी उनका हाल पूछने नहीं आए। आज से 25-30 साल पहले की बात है। तब मैं महिला आयोग की अध्यक्ष थी। मैं वृंदावन की विधवाओं का हाल जानने के लिए पहुंची। मैंने सड़क पर एक विधवा का शव देखा। उस शव को चील-कौवे नोंच रहे थे। ये देखकर मेरा दिल दहल गया। मैंने लोगों से कहा कि वे उसका अंतिम संस्कार करें। उन्होंने कहा कि वे विधवा का शव नहीं छू सकते, यह अपशकुन होगा। ऐसी ही तमाम भ्रांतिया और परंपराएं हैं, जिनके नाम पर विधवाओं का शोषण होता रहा है।
अब मैं आपसे वृंदावन की बात करूंगी। वृंदावन में सैकड़ों विधवाएं हैं जिन्हें उनके बेटे या परिवार वाले कृष्ण दर्शन के नाम पर छोड़ गए और फिर लौटकर कभी उनका हाल पूछने नहीं आए। आज से 25-30 साल पहले की बात है। तब मैं महिला आयोग की अध्यक्ष थी। मैं वृंदावन की विधवाओं का हाल जानने के लिए पहुंची। मैंने सड़क पर एक विधवा का शव देखा। उस शव को चील-कौवे नोंच रहे थे। ये देखकर मेरा दिल दहल गया। मैंने लोगों से कहा कि वे उसका अंतिम संस्कार करें। उन्होंने कहा कि वे विधवा का शव नहीं छू सकते, यह अपशकुन होगा। ऐसी ही तमाम भ्रांतिया और परंपराएं हैं, जिनके नाम पर विधवाओं का शोषण होता रहा है।
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