"जैन" कोई जाति नहीं,धर्म है.जैन-धर्म के सिध्दांतों में जो दृढ विश्वास रखता है और उनके अनुसार आचरण करता है, वही सच्चा जैन कहलाता है. जैन का जीवन किस प्रकार से आदर्श होना चाहिए, यह प्रस्तुत प्रकरण में दिखाया गया है.
1. जो सकल विश्व की शान्ति चाहता है, सबको प्रेम और स्नेह की आँखों से देखता है, वही सच्चा जैन है.
2. जो शान्ति का मधुर संगीत सुनाकर सबको ज्ञान का प्रकाश दिखलाता है, कर्त्तव्य-वीरता का डंका बजाकर प्रेम की सुगंध फैलाता है, अज्ञान और मोह की निंदा से सबको बचाता है, वही सच्चा जैन है.
3. ज्ञान, चेतना की गंगा बहाने वाला मधुरता की जीवित मूर्ति कर्त्तव्य-क्षेत्र का अविचल वीर योध्दा है, वही सच्चा जैन है.
4. जैन का अर्थ अजेय है, जो मन और इन्द्रियों के विकारों को जीतने वाला, आत्म-विजय की दिशा में सतत सतर्क रहने वाला है, वही सच्चा जैन है.
5. 'जैनत्व' और कुछ नहीं आत्मा की शुध्द स्थिति है. आत्मा को जितना कसा जाए, उतना ही जैनत्व का विकास. जैन कोई जाति नहीं धर्म है. न किसी भी देश, पन्थ और जाति का है. कोई आत्म-विजय के पथ का यात्री है, वही सच्चा जैन है.
6. जैन बहुत थोडा, परन्तु मधुर बोलता है, मानो झरता हुआ अमृतरस हो! उसकी मृदु वाणी,कठोर-से कठोर ह्रदय को भी पिघला कर मक्खन बना देती है! जैन के जहाँ भी पाँव पड़ें, वहीँ कल्याण फैल जाए! जैन का समागम, जैन का सहचार सबको अपूर्व शांति देता है! इसके गुलाबी हास्य के पुष्प, मानव जीवन को सुगन्धित बना देते हैं! उसकी सब प्रवृत्तियां, जीवन में रस और आनंद भरने वाली है, वही सच्चा जैन है.
7. जैन गहरा है, अत्यंत गहरा है. वह छिछला नहीं, छिलकने वाला नहीं. उसके ह्रदय की गहराई में,शक्ति और शांति का अक्षय भंडार है. धैर्य और शौर्य का प्रबल प्रवाह है.जिसमें श्रध्दा और निर्दोष भक्ति की मधुर झंकार है, वही सच्चा जैन है.
8. धन वैभव से जैन को कौन खरीद सकता है? धमकियों से उसे कौन डरा सकता है? और खुशामद से भी कौन उसे जीत सकता है? कोई नहीं, कोई नहीं. सिध्दांत के लिए काम पड़े तो वह पल-भर में स्वर्ग के साम्राज्य को भी ठोकर मार सकता है.
9. जैन के त्याग में दिव्य-जीवन की सुगंध है. आत्म-कल्याण और विश्व-कल्याण का विलक्षण मेल है. जैन की शक्ति, संहार के लिए नहीं है. वह तो अशक्तों को शक्ति देती है, शुभ की स्थापना करती है और अशुभ का नाश करती है. सच्चा जैन पवित्रता और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए मृत्यु को भी सहर्ष सानन्द निमंत्रण देता है. जैन जीता है, आत्मा के पूर्ण वैभव में और मरता भी है वह आत्मा के पूर्ण वैभव में.
10. जैन की गरीबी में संतोष की छाया है. जैन की अमीरी में गरीबों का हिस्सा है.
11. जैन आत्म-श्रध्दा की नौका पर चढ़ कर निर्भय और निर्द्वन्द्व भाव से जीवन यात्रा करता है.विवेक के उज्जवल झंडे के नीचे अपने व्यक्तित्व को चमकता है. राग और द्वेष से रहित वासनाओं का विजेता 'अरिहंत' उसका उपास्य है. हिमगिरी के समान अचल एवं अडिग जैन दुनिया के प्रवाह में स्वयं न बहकर दुनियां को ही अपनी ओर आकृष्ट करता है. मानव-संसार को अपने उज्जवल चरित्र से प्रभावित करता है.अतएव एक दिन देवगण भी सच्चे जैन की चरण-सेवा में सादर सभक्ति मस्तक झुका देते हैं?
12. जैन बनना साधक के लिए परम सौभाग्य की बात है. जैनत्व का विकास करना, इसी में मानव-जीवन का परम कल्याण है. "राष्ट्र" संत-उपाध्याय कवि श्री अमर मुनि जी महाराज द्वारा लिखित "जैनत्व की झाँकी" से साभार
2 comments:
आदरणीय रमेश कुमार जैन ‘सिरफिरा‘ जी ! आपकी दूसरी पोस्ट का इस मंच पर स्वागत है। इस मंच पर किसी भी विचारधारा का आदमी अपनी पोस्ट का विज्ञापन कर सकता है। आपने भी जैन सिद्धांतों का परिचय यहां दिया है, एक अच्छा काम किया है लेकिन इस पोस्ट के आदि और अंत में आपको कुछ वाक्य ऐसे ज़रूर डालने चाहिएं थे जिनसे यह रिपोर्ट कहलाई जा सके। किस ब्लॉग पर किस विषय की ब्लॉग लगी है या किस ब्लॉग पर किस तरह की धमाचैकड़ी और मान-मनुहार हो रही है ? या किस ब्लॉगर को क्या समस्या पेश आई है या क्या ख़ुशी मिली है या किसे ईमेल से क्या कुछ हाथ लगा है ? इस तरह की घटनाएं जो कि आभासी जगत में होती रहती हैं, उनकी रिपोर्टिंग के लिए ‘ब्लॉग की ख़बरें‘ के पत्रकार काम कर रहे हैं। आप भी ऐसे ही काम करें। आप अपने लेख आदि अपने निजी या किसी भी साझा ब्लॉग पर लगाएं और यहां आकर उसकी रिर्पोटिंग या विज्ञापन करें।
ख़ैर यह तो एक बात थी ताकि आप आगे के लिए भी इस ब्लॉग की नीति को समझ लें लेकिन आपकी पोस्ट उम्दा है और इन सिद्धांतों में एक को छोड़कर बाक़ी पर अन्य लोग भी चल सकते हैं और निश्चय ही उनकी आत्मिक उन्नति होगी।
धन्यवाद !
सुन्दर लेख.
काश! सभी लोग इस लेख के मर्म को समझ पायें और उसका अनुसरण कर पायें.विशेषकर वे लोग भी जो अपने को 'जैन' कहलवाना पसंद करते हैं.
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