कुछ पोस्ट ख़ास आपके लिए
१- सीमा सिंह जी को
ठाकरे के सुझाव पर हंसी आती है
२- प्रमोद जोशी जी बता रहे हैं
एक ज़माना था अखबारों के दफ्तरों में एक अदृश्य दीवार होती थी। यह दीवार सम्पादकीय और बिजनेस विभागों के बीच थी। बर्लिन की दीवार के बाद गिरी यह सबसे महत्वपूर्ण दीवार है, गोकि उसकी आवाज सुनाई नहीं पड़ी। नरेगा के मजदूर से भी कम पैसा देने वाली व्यवस्था हिन्दी पत्रकार को कितना सम्मानित मानती है वह जाहिर है। पत्र मालिकों को साख चाहिए भी नहीं। धंधा चाहिए। अंग्रेजी पत्रकारिता का भी यही हाल है। अलबत्ता वहाँ का पत्रकार अपर-लोअर केस में कॉपी बनाने के बदले हिन्दी पत्रकार से कई गुना ज्यादा पैसा लेता है। और उससे कई गुना ज्यादा पैसा सेल्स और मार्केटिंग का सद्यः नियुक्त एक्जीक्यूटिव लेता है।
इसके बारे में कौन, कब और कैसे सोचेगा पता नहीं। मीडिया का मौजूदा कारोबारी मॉडल उसकी साख को बहुत जल्द रसातल पर ले जाएगा। बेशक इस दौरान अखबारों का प्रसार बढ़ेगा। पर धीरे-धीरे अखबार वैसे ही बेजान हो जाएंगे जैसे आजकल सुबह अखबार के साथ रखे रंगीन विज्ञापनी पर्चे होते हैं।
क्या मीडिया का कारोबारी नज़रिया उसे जन-पक्षधरता से दूर तो नहीं करता?
३- K. D. Sharma का नुस्ख़ा ज़ुकाम के लिए
४- सारा सच का आह्वान
आज ज़रुरत है जागने की, भ्रष्टाचार को मिटाने की....
६- कहानियाँ जो सोचने को विवश करती हैं ..अमृतसर आ गया
from Samkalin Katha Yatra by Dr (Miss) Sharad सिंह
from Samkalin Katha Yatra by Dr (Miss) Sharad सिंह
७- अगहन में
from मनोज by मनोज कुमारअगहन में।
चुटकी भर धूप की तमाखू,
बीड़े भर दुपहर का पान,
दोहरे भर तीसरा प्रहर,
दाँतों में दाबे दिनमान;
from Sudhinama by Sadhana Vaid
अहिंसा में कितनी ताकत होती है और शान्ति और प्रेम का कवच कितना कारगर होता है अन्ना के आंदोलन ने इस बात को सिद्ध कर दिया है !
९- अभिलाषा
१०- बढ़े चलो
2 comments:
ब्लॉग की ख़बरों में देख अच्छा लगा ..शुक्रिया
ब्लॉग की ख़बरों को बहुत ही सही चयन से आपने यहाँ प्रस्तुत किया है.शानदार प्रस्तुति.बधाई
न छोड़ते हैं साथ कभी सच्चे मददगार
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