डॉ टी एस दराल said...
ये मन ये पागल मन मेरा ---
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हमारी मान्यता, हमारे कर्म और हमारी प्रार्थना में समन्वय होना अनिवार्य है , तभी हमारा कल्याण होगा और ऐसा सामूहिक रूप से होना ज़रूरी है . लोग निष्पक्ष हो कर तथ्यों पर विचार करें तो वे सत्य को पा सकते हैं.सत्य के सूत्र और संकेत हरेक शास्त्र में मौजूद है.
जो लोग किसी शास्त्र में विश्वास रखते हैं और फिर उसके विरुद्ध चलते हैं वे अपनी आत्मा का हनन करते हैं . ऐसे लोग कभी अच्छे लोग नहीं कहलाये जा सकते ., शास्त्रों को आदर देना ही पर्याप्त नहीं है , उनके अनुसार आचरण करना भी ज़रूरी है ., यही वह बात है जिसकी अनदेखी आज सबसे ज्यादा की जा रही है ., विश्व साहित्य में गीता एक अलग और विशिष्ट स्थान रखती है.
निष्पक्ष हो कर तथ्यों पर विचार करें तो सत्य को पा सकते हैं
ब्लॉगर्स मीट वीकली (9) में डॉ. दराल जी का आना अच्छा रहा .,
2 comments:
शुक्रिया डॉ अनवर ज़माल जी ।
आपने इतना सम्मान बख्शा ।
शास्त्रों को आदर देना ही पर्याप्त नहीं है , उनके अनुसार आचरण करना भी ज़रूरी है ॥
बेहद ज़रूरी बात । सही आचरण से ही अपना व्यक्तित्त्व बदला जा सकता है ।
आज ब्लॉगजगत में भी इसकी बहुत ज़रुरत महसूस हो रही है ।
आपकी नेक बातों से सहमत .
आदमी कुछ न कुछ अच्छी बातों को जानता ज़रूर है और वह अपने बच्चों को उनकी ताकीद भी करता है। अगर हरेक आदमी अपने मालूम इल्म पर अमल करे तो वह एक अच्छा आदमी बनना शुरू हो जाएगा।
शुक्रिया ।
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