ज़ुबां से कहूं तो है तौहीन उनकी
वो ख़ुद जानते हैं मैं क्या चाहता हूं-अफ़ज़ल मंगलौरी
जब से छुआ है तुझको महकने लगा बदन
फ़ुरक़त ने तेरी मुझको संदल बना दिया
-अलीम वाजिद
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4 comments:
behtreen...
क्या बात है.....
छुपाया भी,बताया भी!
gagar me sagar
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