-गंगा किनारे बसे मोहल्लों में बीमारियों का बोलबाला
स्टाफ रिपोर्टर
कानपुर। पाप धोने वाली गंगा तो अब हाथ धोने लायक भी नहीं बची है। स्नान और आचमन तो दूर, किनारे पर खड़े रहना भी दूभर है। यह कहना है गंगा किनारे बसे मोहल्लों मैकूपुरवा, पुरानी चुंगी, छबीलेपुर आदि के लोगों का। उनका कहना है कि डबका घाट पर कभी मेला लगता था अब गंदगी और बीमारियों का जमघट है। इन मोहल्लों के परिवार हर महीने हजार-दो हजार रुपये दवाओं पर खर्च करते हैं। क्षेत्र के सरकारी हैंडपंपों के पानी में भी केमिकल की दुर्गंध आती है।
आतिशी नजारे के बीच एक बार फिर शहर के हर बड़े रामलीला मैदान में ‘लंकेश’ जलकर राख हो जाएगा। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के खोखले दावों से निश्चिंत ‘टेनरी वेस्ट लंकेश’ सुबह छह बजे से ही डबका नाले में दरश दिखाएगा। स्थानीय लोगों के अनुसार रात की शिफ्ट के बाद टेनरी सुबह छह बजे पानी छोड़ती हैं। उस वक्त डबका नाले में सर्वाधिक टेनरी वेस्ट होता है। गंगा तट के आस पास गुजरना मुश्किल हो जाता है। डबकेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी बाबा रामकिशन दास के अनुसार गंगा तट का स्वरूप ही बदल गया है। अब न कोई स्नान करने आता है न यहां मेले लगते हैं। पिछले दस वर्षों में हर वर्ष स्थिति बिगड़ती जा रही है। 20 वर्ष पहले लगने वाले मेलों में हजारों लोग जुटते थे। मंदिर के हैंडपंप का पानी दिखाते हुए बोले बदबू मारता पानी किसी काम नहीं आता।
रोटी तो खानी है, क्या करें
‘बीमारी तो बढ़ी ही हैं। देखिए गंगा तट पर मरी हुई मछलियों को। सब टेनरी के पानी की देन है। मैं खुद चमड़े के कारखाने में काम करता हूं। मैं और पत्नी दोनों बीमार रहते हैं। सांस लेने में दिक्कत है घुट-घुट कर रहते हैं। रोटी तो खानी ही है, क्या करें’
सुल्तान, पुरानी चुंगी
कमाई जाती दवा में
‘घर-घर में कई हजार रुपये महीने बीमारी का खर्च है। बेटे के फेफड़ों में दिक्कत हो गई। इलाज चल रहा है। सब गंदे पानी की देन है। मेरी तबियत भी ठीक नहीं रहती। स्टेट बैंक में सिक्योरिटी गार्ड हूं समझ नहीं आता दवाओं के बाद कैसे घर खर्च चलाएं ’
कल्याण सिंह, रिटायर्ड सैन्यकर्मी
निकम्मा है प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड
‘मैकूपुरवा, गोलाघाट, छबीलेपुरवा, पुरानी चुंगी आदि इलाकों में चर्म रोग और पेट के दर्द का बोलबाला है। युवाओं को बीमार देख बहुत तकलीफ होती है। कितने ही विदेशी आते हैं, रिसर्च होती हैं पर नतीजा शून्य। निकम्मा है प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड’
रामचंद्र, रिटायर्ड शिक्षक
‘डबका घाट नाले में छोटी बड़ी करीब 100 टेनरियों का पानी आता है। आप खुद ही देखिए पानी की रंगत और बदबू। सुबह छह बजे तो स्थिति विकराल होती है। सांस लेना तक दूभर होता है।
दुलारेलाल, रिटायर्ड मास्टर वारंट ऑफिसर
नजरिया जनप्रतिनिधि का
‘मेरे वार्ड (वार्ड 66) में टेनरी से कोई दिक्कत नहीं है। वार्ड में डिफेंस कॉलोनी, केडीए कॉलोनी, मोती नगर, गौशाला, छबीलेपुरवा क्षेत्र हैं। वार्ड पूरी तरह रिहाइशी है। इसमें नाममात्र की टेनरी हैं। क्षेत्र की आबादी करीब 50 हजार है। बीमारी टेनरी के पानी से नहीं, सीवर और वाटरलाइन के अगल-बगल होने की वजह से हैं। इंडस्ट्रियल एरिया से गुजर रहीं वाटरलाइन, सीवर लाइन तेज गैस के चलते गल जाती हैं। दोनों का पानी आपस में मिल जाता है। इससे बीमारी फैलती हैं।
शमीम आजाद, पार्षद
Source : http://www.amarujala.com/state/Utter-Pradesh/36987-1.html
स्टाफ रिपोर्टर
कानपुर। पाप धोने वाली गंगा तो अब हाथ धोने लायक भी नहीं बची है। स्नान और आचमन तो दूर, किनारे पर खड़े रहना भी दूभर है। यह कहना है गंगा किनारे बसे मोहल्लों मैकूपुरवा, पुरानी चुंगी, छबीलेपुर आदि के लोगों का। उनका कहना है कि डबका घाट पर कभी मेला लगता था अब गंदगी और बीमारियों का जमघट है। इन मोहल्लों के परिवार हर महीने हजार-दो हजार रुपये दवाओं पर खर्च करते हैं। क्षेत्र के सरकारी हैंडपंपों के पानी में भी केमिकल की दुर्गंध आती है।
आतिशी नजारे के बीच एक बार फिर शहर के हर बड़े रामलीला मैदान में ‘लंकेश’ जलकर राख हो जाएगा। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के खोखले दावों से निश्चिंत ‘टेनरी वेस्ट लंकेश’ सुबह छह बजे से ही डबका नाले में दरश दिखाएगा। स्थानीय लोगों के अनुसार रात की शिफ्ट के बाद टेनरी सुबह छह बजे पानी छोड़ती हैं। उस वक्त डबका नाले में सर्वाधिक टेनरी वेस्ट होता है। गंगा तट के आस पास गुजरना मुश्किल हो जाता है। डबकेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी बाबा रामकिशन दास के अनुसार गंगा तट का स्वरूप ही बदल गया है। अब न कोई स्नान करने आता है न यहां मेले लगते हैं। पिछले दस वर्षों में हर वर्ष स्थिति बिगड़ती जा रही है। 20 वर्ष पहले लगने वाले मेलों में हजारों लोग जुटते थे। मंदिर के हैंडपंप का पानी दिखाते हुए बोले बदबू मारता पानी किसी काम नहीं आता।
रोटी तो खानी है, क्या करें
‘बीमारी तो बढ़ी ही हैं। देखिए गंगा तट पर मरी हुई मछलियों को। सब टेनरी के पानी की देन है। मैं खुद चमड़े के कारखाने में काम करता हूं। मैं और पत्नी दोनों बीमार रहते हैं। सांस लेने में दिक्कत है घुट-घुट कर रहते हैं। रोटी तो खानी ही है, क्या करें’
सुल्तान, पुरानी चुंगी
कमाई जाती दवा में
‘घर-घर में कई हजार रुपये महीने बीमारी का खर्च है। बेटे के फेफड़ों में दिक्कत हो गई। इलाज चल रहा है। सब गंदे पानी की देन है। मेरी तबियत भी ठीक नहीं रहती। स्टेट बैंक में सिक्योरिटी गार्ड हूं समझ नहीं आता दवाओं के बाद कैसे घर खर्च चलाएं ’
कल्याण सिंह, रिटायर्ड सैन्यकर्मी
निकम्मा है प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड
‘मैकूपुरवा, गोलाघाट, छबीलेपुरवा, पुरानी चुंगी आदि इलाकों में चर्म रोग और पेट के दर्द का बोलबाला है। युवाओं को बीमार देख बहुत तकलीफ होती है। कितने ही विदेशी आते हैं, रिसर्च होती हैं पर नतीजा शून्य। निकम्मा है प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड’
रामचंद्र, रिटायर्ड शिक्षक
‘डबका घाट नाले में छोटी बड़ी करीब 100 टेनरियों का पानी आता है। आप खुद ही देखिए पानी की रंगत और बदबू। सुबह छह बजे तो स्थिति विकराल होती है। सांस लेना तक दूभर होता है।
दुलारेलाल, रिटायर्ड मास्टर वारंट ऑफिसर
नजरिया जनप्रतिनिधि का
‘मेरे वार्ड (वार्ड 66) में टेनरी से कोई दिक्कत नहीं है। वार्ड में डिफेंस कॉलोनी, केडीए कॉलोनी, मोती नगर, गौशाला, छबीलेपुरवा क्षेत्र हैं। वार्ड पूरी तरह रिहाइशी है। इसमें नाममात्र की टेनरी हैं। क्षेत्र की आबादी करीब 50 हजार है। बीमारी टेनरी के पानी से नहीं, सीवर और वाटरलाइन के अगल-बगल होने की वजह से हैं। इंडस्ट्रियल एरिया से गुजर रहीं वाटरलाइन, सीवर लाइन तेज गैस के चलते गल जाती हैं। दोनों का पानी आपस में मिल जाता है। इससे बीमारी फैलती हैं।
शमीम आजाद, पार्षद
Source : http://www.amarujala.com/state/Utter-Pradesh/36987-1.html
1 comments:
गंगा का गंदा पानी अब सेहत खराब करके लोगो को उनके पापों का फल दे रहा है.
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