स्वराज करूँ अपने ब्लॉग दिल की बात पर
कृष्ण कन्हैया की धरती पर यह कैसा कलंक ?
ह्रदय को झकझोरनेवाली खबर दी है आपने.सत्य को परखने की बात मत कीजिये बात सत्य ही होगी. इस निर्मूल्य होते मानवीय संबंधों के लिए कुछ करने के लिए अन्ना जैसे आन्दोलन की जरूरत है और उससे पहले अपने हृदयों को स्वक्छ करने की भी
आपकी खबर से तो मैं कांप गई हूँ ...क्या ऐसा भी कहीं हो सकता है ?
बहुत ही मार्मिक और हृदयविदारक प्रसंग
ह्रदय को झकझोरनेवाली खबर दी है आपने.सत्य को परखने की बात मत कीजिये बात सत्य ही होगी. इस निर्मूल्य होते मानवीय संबंधों के लिए कुछ करने के लिए अन्ना जैसे आन्दोलन की जरूरत है और उससे पहले अपने हृदयों को स्वक्छ करने की भी
आपकी खबर से तो मैं कांप गई हूँ ...क्या ऐसा भी कहीं हो सकता है ?
बहुत ही मार्मिक और हृदयविदारक प्रसंग
11 comments:
बहुत अफ़सोस की बात है कि श्री कृष्ण जी की धरती पर महिलाओं की दुर्दशा हो रही है .
विधवा समस्या का हल केवल पुनर्विवाह है .
इस्लाम यही व्यवस्था देता है.
विधवाओं की समस्या हल करना किसी सरकार या किसी संस्था के बस की बात नहीं है. इसे तो बस ऊपर वाला ही हल कर सकता है और यह तब हल होगी जब आप उसकी व्यवस्था का पालन करेंगे .
uFF--
अमानवीयता की पराकाष्ठा है।
ये खबर कहां छपी है ..यह तो बताये....
---वैसे इस से धर्म का कोई लेना देना नहीं है अपितु मानव -अनाचार/ अनाचरण की बात है..जो आये दिन इस्लामी करते रह्ते हैं.....आप बीच में अपना इस्लाम क्यों घुसेडने लगे....
@ डा. श्याम गुप्ता जी ! अगर आप झल्लाने के बजाय लिंक पर चले जाते तो आपको पता चल जाता की यह खबर किस अखबार में छपी है ?
जो हल हमें पता था हमने बता दिया . अगर आपको उससे अच्छा कोई दूसरा हल नज़र आता है तो आप बता दीजिये . इसमें बदतमीजी करने की क्या बात है ?
मक़सद तो समस्या को हल करना होना चाहिए .
डॉ अनवर जमाल जी और डा. श्याम गुप्त जी ये तो मानवीय रूप से जघन्य अपराध है लेकिन इसे किसी धर्म विसेस से जोड़कर पब्लिसिटी करना और आपस में लड़ना उससे भी बड़ा अपराध है |
@ आकाश जी ! आपका कहना सही है कि इस मुददे पर लड़ना बेकार बात है। इससे भी ज़्यादा बेकार बात यह है कि सही बात को सही न कहा जाए।
हिंदू रीति से अंतिम संस्कार बहुत महंगा पड़ता है। महंगा होने की वजह से ही ग़रीब विधवाएं अंतिम संस्कार से वंचित रह जाती हैं। महंगा होने की वजह से ही समाज के लोग उनके साथ ग़ैर इंसानी बर्ताव न चाहते भी करते हैं।
दफ़नाने की विधि अमीर ग़रीब सब अपना सकते हैं। इसमें लगभग न के बराबर ही ख़र्च है और अगर बिल्कुल ग़रीब है तो फिर वह ख़र्च भी नहीं होता। दफ़नाने की विधि हिंदुओं में भी प्रचलित है लेकिन इसे केवल मासूम बच्चों के लिए और सन्यासियों के लिए ही प्रयोग किया जाता है।
अगर सभी के लिए यही एक विधि लागू कर दी जाए तो यह समस्या ही समाप्त हो जाएगी कि ग़रीब के अंतिम संस्कार के लिए पैसे नहीं थे लिहाज़ा उसका अंतिम संस्कार नहीं हो पाया।
विधवा विवाह की व्यवस्था होनी चाहिए। समाज में इसे प्रोत्साहन देना चाहिए।
आजकल वैसे भी समाज में स्त्री लिंग का अनुपात पुरूषों के मुक़ाबले कम है।
ऐसे में अगर ढंग से कोशिश की जाए तो कामयाबी मिलने में कोई शक नहीं है।
आप भी समस्या का समाधान बताकर इसे हल करने में मदद दें।
kanha hai daya??
kanha hai prem?
ishwar krur hai :(
पुनीत जी ! ईश्वर ने आपको पैदा किया और ज्ञान दिया और कहा कि न्याय और दया करो, परोपकार करो।
अगर आप अपना काम न करें तो क्रूर आप हुए।
यदि ऐसा है तो बहुत चिन्तनीय है!
KACRE MEN USE PHEKA JATA HAI JISKI IZZAT QADAR SAMMAN HAMARE DIL SE KHATAM HO JATA HAI.
GHAR KA PALTU JANWAR BHI MARNE KE BAAD PHEKA NAHI JATA BALKI DABAYA JATA HAI.
KYA IN WIDHWAON KI AUQAT GHAR KE PALTU JANWAR SE BHI GUZAR GAYI?
BEHAD AFSOS AUR SHARM KI BAAT HAI SABHI KELIYE AUR KHASKAR DUSRON PAR KICHAD UCHHALNE WALON KE LIYE.
KUL BRHAMAND KA MALIK HUM SABKO INSAN AUR KHASKAR AURATZAT KI IZZAT KARNEKI TOUFEEQ ATA FARMAYE.
AAMEEN.
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