Thursday, February 16, 2012

निरामिष ब्लॉग Niraamish.blogspot.in

वेद और शाकाहार के प्रचार में जुटा है ...


इस पर एक अच्छी चर्चा चल रही है, जिसे देखना सभी ब्लॉगर्स के लिए एक सुखद अनुभव रहेगा।
इस पोस्ट पर अब तक 101 कमेंट हो चुके हैं और आपका सहयोग मिल जाए तो 40-50 कमेंट का और भी इज़ाफ़ा मुमकिन है।
आपको जाना होगा इस लिंक पर-
http://niraamish.blogspot.in/2011/12/blog-post.html


इसी के साथ ‘आर्य भोजन‘ ब्लॉग बता रहा है कि ‘

बथुआ तीनों दोषों को शांत करता है

... और इसी ब्लॉग पर डा. अरविंद मिश्रा जी की एक महत्पूर्ण टिप्पणी भी आपको चौंका देगी।
डा. साहब कहते हैं कि-
निरामिष अभियान इसलिए टायं टायं फिस होता गया है कि उसके ज्यादातर अनुयायी
कम अध्येता ,ज्यादा हो हल्ला मचाने वाले लोग होते हैं -
मैं तो मूलतः शकाहारी हूँ मगर ऐसी मूर्खताओं/उदघोष्नाओं के चलते सामिष ही होना चाहूँगा ..
यह कैसा नकारात्मक कैम्पेन है जो निरामिषों को भी सामिष बना रहा है ..

6 comments:

Amit Sharma said...

निकृष्टता की हद से भी आगे है आपका यह प्रयास ऐसे ही आधे अधूरे सन्दर्भ और उद्धरण आप ग्रंथों में मांसाहार के लिए भी देतें है..................... पूरी टिपण्णी क्यों नहीं लिखी आपने जिसमें आपके इसी तरह के प्रयास को मिश्रजी ने अक्षम्य कहा है........................धिक्कार है आपको

@ यह कैसा नकारात्मक कैम्पेन है जो निरामिषों को भी सामिष बना रहा है ..
अक्षम्य है आपकी मूर्खता !

DR. ANWER JAMAL said...

सत्य को कड़वा यों ही तो नहीं कहा जाता
@ प्यारे भाई अमित जी ! आपने हो हल्ला मचाकर यह साबित कर दिया है कि आदरणीय अरविंद मिश्रा जी ने अपनी टिप्पणी में 'निरामिष के ज़्यादातर अनुयायियों को कम अध्येता और ज़्यादा हल्ला मचाने वाला‘ बिल्कुल सही कहा है। उनकी ही मूर्खताओं और उदघोषणाओं के चलते आदरणीय श्री मिश्रा जी निरामिष से सामिष होना पसंद कर रहे हैं।

यहां उनकी टिप्पणी का वह अंश ले लिया है जो निरामिष के हो हल्ला मचाने वालों से संबंधित है। बाक़ी जो उन्होंने कहा है उसका जवाब हमने अपनी टिप्पणी में दिया ही है।
पुश्तैनी शाकाहारी ब्राह्मण निरामिष से सामिष होने का संकल्प जता रहे हैं। असफलता से उत्पन्न आपके आपके क्षोभ को समझा जा सकता है।

आपकी धृष्टता को हम क्षमा करते हैं।
सत्य को कड़वा यों ही तो नहीं कहा जाता।

सुज्ञ said...

डॉ अरविन्द मिश्र जी का अभिमत
आश्चर्य है मुझे कितने गलत तरीके से जनाब अनवर ज़माल साहब उद्धृत कर गए और बहस चलती रही और -मैं बेखबर रहा !
पहले यह स्पष्ट कर दूं कि खान पान को लेकर मेरा कोई पूर्वाग्रह नहीं है ....मगर क्रूरता और बर्बरता के साथ पशु हत्या को मैं घृणित ,जघन्य कृत्य मानता हूँ....हिन्दू धर्म और इस्लाम का जो मौजूदा स्वरुप है उसमें कई विकृतियाँ हैं ,आज जरुरत इस बात की हैं कि हम अपने अपने पूर्वाग्रहों और निरी मूर्खताओं से उबरें और मानव समुदाय की बेहतरी के लिए काम करें ...
निरामिष ब्लॉग का मकसद बिलकुल साफ़ लगता है कि लोगों में निरामिष भोजन के प्रति अभिरुचि जगायी जाय ....और शाकाहार को लेकर एक बड़ा जनमानस आज इकठ्ठा हो रहा है ....कई वैज्ञानिकों का मानना है कि स्वस्थ संतुलित जीवन के लिए यह उचित है -दूसरी और प्रोटीन और कतिपय अमीनो अम्लों के लिए मांसाहार की भी वकालत की जाती है -जो भी पशु हिंसा सभी मनुष्य पर एक दाग है -हमें निसर्ग के प्रति मानवीयता और नैतिक चेतना का उदाहरण देना चाहिए -हम सर्वोपरि हैं और यह हमारा फ़र्ज़ है -चाहे वह देवी को प्रसन्न करने के लिए बलि हो या फिर ईद के अवसर का कत्लेआम मैं इसका पुरजोर विरोध करता हूँ ,अपील करता हूँ कि इसे बंद किया जाय ,,बल्कि मछली/झींगे खाने की सलाह देता हूँ जो अमीनो अम्लों और प्रोटीन की खान हैं ....ओमेगा थ्री फैक्टर से भरपूर !

DR. ANWER JAMAL said...

मछली और झींगा को हमें अपने आहार में ज़रूर शामिल करना चाहिए
@ भाई सुज्ञ जी ! आदरणीय अरविंद मिश्रा जी ने मछली और झींगा आदि खाने की जो सलाह दी है वह बिल्कुल वैज्ञानिक और व्यवहारिक है। वैसे तो हम मांस न के बराबर ही खाते हैं और मछली तो कभी कभार और झींगा तो बिल्कुल नहीं लेकिन अब हम कोशिश करेंगे कि ओमेगा 3 वसा अम्ल की प्राप्ति के लिए इन्हें खाया जाए।

♥ कुछ मछलियां तो बकरे के बराबर होती हैं और कुछ उनसे भी बड़ी।
जब बकरे से बड़ी मछली खाई जा सकती है तो फिर बकरे को भी खाया जा सकता है और जब ये सब रोज़ खाए जा सकते हैं तो फिर बक़रीद के दिन भी क्यों नहीं ?

♥ मूर्ति वाले मंदिरों और मज़ारों पर जहां बलि दी जाती है या बलि के नाम पर बकरे का कान काट कर उसे बेच दिया जाता है, इसका विरोध आपके साथ हम भी करते हैं।

आप अपना विचार बनाने और उसे प्रकट करने में आज़ाद हैं और आपकी आज़ादी का हम सम्मान करते हैं और अपने लिए भी हम ऐसा ही चाहते हैं।
अब तो जीव के साइज़ का विरोध भी नहीं लगता बल्कि केवल परंपरा का विरोध ही लगता है।
धन्यवाद !

बलबीर सिंह (आमिर) said...

बहुत बढिया हमें तो अफसोस होता है उन दिनों पर जब हम इस अतुल्‍य नेमत से महरूम थे

Amit Sharma said...

दुर्बोधों के लिए दुर्लभ ॠषभकंद बोध, सुबोधों के लिए सहज बोध!!


मांस लोलुप आसुरी वृतियों के स्वामी अपने जड़-विहीन आग्रहों से ग्रसित हो मांसाहार का पक्ष लेने के लिए बालू की भींत सरीखे तर्क-वितर्क करते फिरते है । इसी क्रम में निरामिष के एक लेख जिसमें यज्ञ के वैदिक शब्दों के संगत अर्थ बताते हुये इनके प्रचार का भंडाफोड़ किया गया था । वहाँ इसी दुराग्रह का परिचय देते हुये ऋग्वेद का यह मंत्र ----------

अद्रिणा ते मन्दिन इन्द्र तूयान्त्सुन्वन्ति सोमान् पिबसि त्वमेषाम्.
पचन्ति ते वृषभां अत्सि तेषां पृक्षेण यन्मघवन् हूयमानः . -ऋग्वेद, 10, 28, 3


लिखते हुये इसमें प्रयुक्त "वृषभां" का अर्थ बैल करते हुये कुअर्थी कहते हैं की इसमें बैल पकाने की बात कही गयी है । जिसका उचित निराकरण करते हुये बताया गया की नहीं ये बैल नहीं है ; इसका अर्थ है ------
हे इंद्रदेव! आपके लिये जब यजमान जल्दी जल्दी पत्थर के टुकड़ों पर आनन्दप्रद सोमरस तैयार करते हैं तब आप उसे पीते हैं।
हे ऐश्वर्य-सम्पन्न इन्द्रदेव! जब यजमान हविष्य के अन्न से यज्ञ करते हुए शक्तिसम्पन्न हव्य को अग्नि में डालते हैं तब आप उसका सेवन करते हैं।

इसमे शक्तिसंपन्न हव्य को स्पष्ट करते हुये बताया गया की वह शक्तिसम्पन्न हव्य "वृषभां" - "बैल" नहीं बल्कि बलकारक "ऋषभक" (ऋषभ कंद) नामक औषधि है ।

लेकिन दुर्बुद्धियों को यहाँ भी संतुष्टि नहीं और अपने अज्ञान का प्रदर्शन करते हुये पूछते है की ऋषभ कंद का "मार्केट रेट" क्या चल रहा है आजकल ?????

अब दुर्भावना प्रेरित कुप्रश्नों के उत्तर उनको तो क्या दिये जाये, लेकिन भारतीय संस्कृति में आस्था व निरामिष के मत को पुष्ठ करने के लिए ऋषभ कंद -ऋषभक का थोड़ा सा प्राथमिक परिचय यहाँ दिया जा रहा है ----

दुर्लभ वैदिक औषधि ॠषभकंद का "निरामिष" पर सहज बोध……

‘ब्लॉग की ख़बरें‘

1- क्या है ब्लॉगर्स मीट वीकली ?
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2- किसने की हैं कौन करेगा उनसे मोहब्बत हम से ज़्यादा ?
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3- क्या है प्यार का आवश्यक उपकरण ?
http://blogkikhabren.blogspot.com/2011/07/blog-post_18.html

4- एक दूसरे के अपराध क्षमा करो
http://biblesmysteries.blogspot.com/2011/07/blog-post.html

5- इंसान का परिचय Introduction
http://ahsaskiparten.blogspot.com/2011/07/introduction.html

6- दर्शनों की रचना से पूर्व मूल धर्म
http://kuranved.blogspot.com/2011/07/blog-post.html

7- क्या भारतीय नारी भी नहीं भटक गई है ?
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8- बेवफा छोड़ के जाता है चला जा
http://kunwarkusumesh.blogspot.com/2011/07/blog-post_11.html#comments

9- इस्लाम और पर्यावरण: एक झलक
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10- दुआ की ताक़त The spiritual power
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19- दुनिया में सबसे ज्यादा शादियाँ करने वाला कौन है?
इसका श्रेय भारत के ज़ियोना चाना को जाता है। मिजोरम के निवासी 64 वर्षीय जियोना चाना का परिवार 180 सदस्यों का है। उन्होंने 39 शादियाँ की हैं। इनके 94 बच्चे हैं, 14 पुत्रवधुएं और 33 नाती हैं। जियोना के पिता ने 50 शादियाँ की थीं। उसके घर में 100 से ज्यादा कमरे है और हर रोज भोजन में 30 मुर्गियाँ खर्च होती हैं।
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20 - ब्लॉगर्स मीट अब ब्लॉग पर आयोजित हुआ करेगी और वह भी वीकली Bloggers' Meet Weekly
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