रस बरसाते रंगों के संग, फिर से आई होली,
फागुन का उपहार निराला लेकर भर लो झोली!
रविकरजी की रचना
तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्.
अर्थात हम परमेश्वर के सूर्य के उस वरणीय प्रकाश का ध्यान करें जो हमारी बुद्धियों को प्रेरित करे।गायत्री मंत्र के व्याकरण पर आपत्ति उचित नहीं है.
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