Sunday, March 11, 2012

सूफ़ियों की प्रेमोपासना - Manoj Kumar


हज़रत अली हिज्वेरी रह. का कहना है कि ईश्वर के प्रति साधक के मन में जो प्रेम उत्पन्न होता है, वह इतना व्यापक हो जाता है कि प्रेमी साधक सांसारिक विषयों की ओर से अनासक्त बन जाता है और केवल प्रेम ही के नियमों का पालन कर ईश्वर से तादातम्य स्थापित करता है।
रहा प्रेम का साधन होना, तो इसमें कोई संदेह नहीं कि सूफ़ियों के लिए प्रेम ही वह सीढ़ी है जो उसे ईश्वर तक पहुंचा सकता है। प्रेम ही वह माध्यम है, जो उसे प्रियतम की प्रसन्नता प्राप्त करने पर उभरता है। प्रेम ही वह रास्ता है जो प्रभु से निकलता है। प्रेम ही वह पथ है जो उसके जीवन को प्रियतम के कहे अनुसार चलने पर उभरता है। इस प्रकार वह प्रियतम का हो जाता है और प्रियतम उसका। हज़रत राबिया बसरी मानती हैं कि अल्लाह के प्रेमी की चाह को उस समय तक चैन नहीं, जब तक वह अपने प्रियतम के पास न पहुंच जाए। हज़रत अबू अब्दुल्लाह अल-क़ुरैशीरह. फ़रमाते हैं कि प्रेम की वास्तविकता यह है कि तुम अपने प्रियतम पर अपनी हर चीज़ क़ुरबान कर दो और तुम्हारे पास कोई चीज़ बाक़ी न रहे।
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इस पोस्ट पर हमने कहा कि 
  1. आपने सूफ़ी सिद्धांतों को बहुत ख़ूबरसूरती से पेश किया है।
    आपने इश्क़े मजाज़ी और इश्क़े हक़ीक़ी पर जो उम्दा कलाम पेश किया है। उसे पढ़कर हमें इस धरती पर पहला प्रेम याद हो आया। यही प्रेम तो था जो आदम ने सबसे पहले अपने रब से किया जिसे इश्क़े हक़ीक़ी कहा गया और फिर आदम ने अपनी पत्नी हव्वा से प्रेम करके भी दिखा दिया कि हमरी पत्नी का प्रेम हमें रब तक पहुंचाता है, उससे दूर नहीं करता।
    यह नर नारी का पहला जोड़ा था, जो स्वर्ग में बना था। इसीलिए कहा जाता है कि जोड़े तो स्वर्ग में बनते हैं।
    अथर्ववेद के 11वें कांड के 8वें सूक्त में स्वयंभू मनु के जन्म का बहुत सुंदर वर्णन आया है। यहां उन्हें मन्यु कहा गया है और उनकी पत्नी को ‘आद्या‘ कहा गया है आद्या का अर्थ है पहली। आद्या शब्द ‘आद्य‘ से बना है और आद्य कहते हैं पहले को और ‘आद्य‘ धातु से ही आदिम् शब्द बना है और यही शब्द अरबी में पहुंचकर आदम बन गया है।
    दरअस्ल जो इलाक़ा आज भारत कहलाता है और जो इलाक़ा आज अरब कहलाता है, यह सारा इलाक़ा हमारे शोध के अनुसार एक साथ ही आबाद हुआ था।
    हदीस के अनुसार आदम और हव्वा इस धरती पर पैदा नहीं हुए थे बल्कि वह दूसरी जगह से यहां अवतरित हुए थे।
    अथर्ववेद 11,8,7 में भी यही बताया गया है कि मन्यु और आद्या का विवाह वर्तमान पृथ्वी पर नहीं हुआ था बल्कि विगत पृथ्वी पर हुआ था।
    पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब स. की हदीसों में यह बयान मिलता है कि परमेश्वर ने आदम और हव्वा की रचना स्वर्ग में की और फिर आदम को हिंद में और हव्वा को जददा में उतारा। इसके बाद हव्वा को ढूंढते हुए आदम जददा पहुंचे और फिर वे पृथ्वी की नाभि पर यानि काबा की जगह पहुंचे जहां आदम ने परमेश्वर की भक्ति-उपासना के लिए एक घर बनाया।
    इसके बाद भी आदम अलैहिस्सलाम हिंद आ गये और उन्होंने हिंदुस्तान से पैदल चलकर 40 बार हज किया। इस तरह वर्तमान भारत से लेकर वर्तमान मक्का तक जो तीर्थ यात्रा आदम अलैहिस्सलाम अर्थात स्वयंभू मनु ने की, उसकी वजह से यह पूरा मार्ग आबाद होता चला गया। उनके बाद भी उनकी संतान मक्का की तीर्थ यात्रा करती रही और इस मार्ग के आस पास उनकी औलाद के आबाद होने से यह मार्ग आबाद होता चला गया। फिर यहां से लोग विभिन्न कारणों से धरती के दूसरे हिस्सों में भी फैलते चले गए।
    लोग यह जान लें कि हम सब एक ही माता पिता की संतान हैं तो हमारे बीच में स्वाभाविक रूप से ही प्रेम उत्पन्न हो जाता है और इससे यह भी पता चलता है कि वास्तव में वसुधैव कुटुंबकम् क्यों कहा गया है ?
    सभ्यता के शुरू में सारी मानव जाति एक ही परिवार थी।

    प्रेम ऐच्छिक और वैकल्पिक नहीं है कि कोई चाहे तो कर ले और न चाहे तो न करे और न ही ऐसा है कि किसी को यह होता है और किसी को यह नहीं होता।
    प्रेम मनुष्य का स्वभाव है। मनुष्य बिना नफ़रत किए रह सकता है लेकिन बिना प्रेम किए वह नहीं रह सकता।
    जो आदमी प्रेम नहीं कर पा रहा है, वह अपने स्वभाव से हट चुका है।
    वास्तव में प्रेम एक ही है, इसका विषय हक़ीक़ी यानि कि सत्यस्वरूप परमेश्वर तो यह इश्क़े हक़ीक़ी है और अगर इसका विषय उसके अलावा हो तो वह इश्क़े मजाज़ी है, यह इश्क़ चाहे अपनी पत्नी से हो या अपने गुरू से या अपने खेत और अपने देश से।

    इश्क़ कैसे और किससे होता है ?
    जब भी आप की नज़र किसी के कमाल पर उसे गुणों पर जाएगी तो आप उससे प्रभावित हुए बिना न रहेंगे और जब आप उस पर विचार करेंगे तो यह प्रभाव गहरा होता चला जाएगा और जब आपको उसके गुणों से लाभ भी मिलने लगे तो आपको महसूस होगा कि इसके बिना तो मेरा जीवन ही संभव नहीं है। अब आप उसे पाने की कोशिश करेंगे और जब आप उसे पा लेंगे तो उसकी ख़ुशी को अपने जीवन का एकमात्र मक़सद समझेंगे।
    यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है।
    अगर आपको अपनी पत्नी या अपने पति से प्रेम नहीं है तो अभी आपने यह महसूस ही नहीं किया है उसने आपको लाभ पहुंचाने के लिए अपना सारा जीवन खपा दिया है।
    अगर आपको ईश्वर से प्रेम नहीं है तो अभी आपने यह जाना ही नहीं है कि सृष्टि के अणु से लेकर सूर्य तक हर चीज़ को उसने आपकी सेवा में लगा दिया है।
    आपकी पत्नी को, आपके पति को तो आपसे प्रेम है लेकिन आपने जाना ही नहीं और न ही उसका प्रतिउत्तर ही दिया जैसा कि उसका हक़ है।
    आपके ईश्वर को तो आपसे प्रेम है लेकिन आपने जाना ही नहीं और न ही उसके प्रेम का जवाब आपने कभी दिया है।
    ऐसा उन लोगों के साथ होता है जो विचार नहीं करते।
    कुछ दम्पत्तियों में कलह है।
    उसका कारण यही है कि वे विचार नहीं करते।
    कलह वहीं होती है जहां प्रेम का प्रवाह अवरूद्ध हो जाए,
    विचार इस अवरोध को दूर कर देता है।
    सूफ़ियों के मुराक़बे यही काम करते हैं।
    जिन्हें यह सब समझ नहीं आता, उन्हें यह सब रहस्यवाद लगता है और जो जानते हैं उनके लिए यह ज्ञान है।
    जानने का नाम ज्ञान है और जिसे नहीं जानते वह रहस्य कहलाता है।
    अच्छा है कि हम रहस्य को ज्ञान में परिवर्तित कर लें।
 

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