ब्लॉगर चुक गए हैं या चुकते जा रहे हैं।
हिंदी ब्लॉगर्स की ताज़ा पोस्ट्स देखकर ऐसा लगता है।
ख़ुद के लिए आज़ादी चाहता है और दूसरों पर ऐतराज़ करता है और ख़ुद पर ऐतराज़ किया जाता है तो बर्दाश्त नहीं कर पाता।
समझ नहीं आता कि जब अपने दिल की कह नहीं सकते और दूसरे के दिल की झेल नहीं सकते तो ब्लॉगर क्यों बन गए ?
क्या सिर्फ़ इसलिए कि ऑफ़िस में मुफ़्त का कम्प्यूटर हाथ आ गया इत्तेफ़ाक़ से ?
या इसलिए कि दिल्ली में पैदा हो गए ?
कोई पत्थर फेंक रहा है और कोई बैठा हुआ गिनती गिन रहा है, उनके लगे सगे वहां बैठे हुए उन्हें राई के पहाड़ पर उगे हुए चने के झाड़ पर चढ़ा रहे हैं।
इन दिल्ली वाले ब्लॉगर्स ने हिंदी ब्लॉगिंग को ऐसा बना दिया है कि अब लोगों ने शर्मो हया लुट जाने पर आत्महत्या करना ही छोड़ दिया है।
वे सोचते हैं कि जब हिंदी ब्लॉगर्स सम्मान से जी सकते हैं तो फिर हम क्यों नहीं ?
हिंदी ब्लॉगर्स की ताज़ा पोस्ट्स देखकर ऐसा लगता है।
ख़ुद के लिए आज़ादी चाहता है और दूसरों पर ऐतराज़ करता है और ख़ुद पर ऐतराज़ किया जाता है तो बर्दाश्त नहीं कर पाता।
समझ नहीं आता कि जब अपने दिल की कह नहीं सकते और दूसरे के दिल की झेल नहीं सकते तो ब्लॉगर क्यों बन गए ?
क्या सिर्फ़ इसलिए कि ऑफ़िस में मुफ़्त का कम्प्यूटर हाथ आ गया इत्तेफ़ाक़ से ?
या इसलिए कि दिल्ली में पैदा हो गए ?
कोई पत्थर फेंक रहा है और कोई बैठा हुआ गिनती गिन रहा है, उनके लगे सगे वहां बैठे हुए उन्हें राई के पहाड़ पर उगे हुए चने के झाड़ पर चढ़ा रहे हैं।
इन दिल्ली वाले ब्लॉगर्स ने हिंदी ब्लॉगिंग को ऐसा बना दिया है कि अब लोगों ने शर्मो हया लुट जाने पर आत्महत्या करना ही छोड़ दिया है।
वे सोचते हैं कि जब हिंदी ब्लॉगर्स सम्मान से जी सकते हैं तो फिर हम क्यों नहीं ?
8 comments:
मुझे लग रहा है कि ब्लॉग जगत में आज से कुछ साल पहले जो आंधी आई थी, वो एक बार फिर से चल रही है। ऐसे में समझदार वह लोग ही होंगे, जो बिगड़े को सुधरने का कार्य करेंगे।
sach likha hai aapne .aabhar
आपकी बातों से असमहत नहीं हुआ जा सकता।
Unfortunately, what ever you have said is true. Everybody must think over it and rectify his/her mistakes.
Unfortunately, what ever you have said is true. Everybody must think over it and rectify his/her mistakes.
apke vicharo se sahamat...
अगर ग़लत बात को चंद संजीदा लोग मिलकर ग़लत कह दें तो ग़लत आदमी का हौसला टूट जायेगा.
सच को सच कहना जितना ज़रूरी है उतना ही ज़रूरी है ग़लत को ग़लत कहना.
जो आदमी किसी से भी बुरा नहीं बनना चाहता वह सच का साथ क्या दे पायेगा ?
इंसाफ करो और ज़ुल्म को बुरा समझो और ज़ालिम की मुखालिफ़त करो.
बुरों को समझाओ और ना मानें तो दुत्कारो.
खुद बुरा करो तो अपने आप को भी मलामत करो तब आपकी रूह आपकी सही रहनुमाई करेगी.
आखिर इस व्यर्थ की ऊल-जुलूल पोस्ट का क्या अर्थ है....एसी पोस्टें ही ब्लोग्गिन्ग को बदनाम कर रही हैं...
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