यदि मैं निर्मल बाबा की जगह होता तो इस वक़्त सुल्तान अख्तर का यह शेर पढता-
'अपने दामन की स्याही तो मिटा लो पहले
मेरी पेशानी पे रुसवाइयां जड़ने वालो!'
स्टार न्यूज़ पर निर्मल बाबा की अग्नि-परीक्षा कार्यक्रम देख रहा था. उसमें निर्मल बाबा का विरोध करते हुए एक सज्जन ने कहा की गाय को रोटी खिलाना तो ठीक है लेकिन गधे को घास मत खिलाइए. सवाल उठता है कि क्या गधा जीव नहीं है. उसे आहार देना गलत है. कुत्ते की पूंछ पर भी उन्हें आपत्ति थी. जीव-जंतुओं के प्रति दो भाव रखने वाले लोग जब धर्म और अध्यात्म की बातें करें तो इसे क्या कहा जाये. एक बच्चा जब निर्मल बाबा के पक्ष में कुछ बोलना चाहता था तो उसे यह कहकर चुप करा दिया कि उन जैसे बुद्धिजीवियों के होते हुए बच्चे से क्या पूछते हैं. यानी वे स्वयं को आध्यामिक और बुद्धिजीवी दोनों मान रहे थे. दूसरे पक्ष को वे कुछ बोलने ही नहीं दे रहे थे. यह गैरलोकतांत्रिक आचरण था. मेरे ख्याल में तो वे न आध्यात्मिक हो सकते थे, न बुद्धिजीवी और न ही लोकतान्त्रिक. बुद्धिजीवी सभी पक्षों की बातें ध्यान से सुनते और अपने तर्कों के जरिये अपनी बात मनवाते हैं. वे तो पूरी तरह पूर्वाग्रह से ग्रसित और ईष्यालु किस्म के व्यक्ति लग रहे थे. एक और आपत्तिजनक बात यह कही गई कि समस्याओं से घिरे कमजोर बुद्धि के लोग ही निर्मल बाबा के पास जाते हैं. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि लाखों लोग निर्मल बाबा को मानते हैं और किसी न किसी रूप में उनसे जुड़े हुए हैं. तो क्या सभी कमजोर बुद्धि के लोग हैं. यदि यह विचार व्यक्त करने वाले कुशाग्र बुद्धि के हैं तो उनके पीछे कोई जमात क्यों नहीं है. कुल मिलाकर तीन घंटे के इस कार्यक्रम का कुछ फलाफल नहीं निकला. एक तरफ यह स्वीकार किया गया कि तीसरी आंख अथवा छठी इन्द्रिय का अस्तित्व होता है. महाभारत के ध्रितराष्ट और संजय का उदाहरण दिया गया. यह हर व्यक्ति के अन्दर किसी न किसी मात्रा में मौजूद रहता है. उसे कभी-कभी घटनाओं का पूर्वाभास होता है. पशु-पक्षियों में यह और अधिक विकसित होता है. तभी तो वे प्राकृतिक आपदाओं के समय विचित्र हरकतें करने लगते हैं. योग साधना के जरिये इसे और जागरूक किया जा सकता है. लेकिन निर्मल बाबा के पास इसके जागरूक होने पर सवाल उठाया गया. समस्याओं के निदान के उनके बताये गए उपायों की खिल्ली उड़ाई गई. सवाल उठता है कि क्या अन्धविश्वास की शुरूआत निर्मल बाबा से हुई और इसका अंत भी उन्हीं से होगा. यहां तो हर कदम पर अन्धविश्वास के प्रतिमान भरे हैं जनाब. और भक्तों से मिली रकम का किस बाबा ने निजी इस्तेमाल नहीं किया. बाबा रामदेव आज यदि 11 सौ करोड़ के मालिक हैं तो कोई खेत बेचकर संपत्ति नहीं बनाई है. आसाराम बापू या उन जैसे बाबाओं का पूरा कुनबा अपने भक्तों के सहयोग से ही करोडो-करोड़ में खेलते हैं. क्या ऐसा कोई बाबा अभी मौजूद है जिसे भारतीय अध्यात्म का आदर्श पुरुष कहा जा सके. अध्यात्म की गहराइयों में उतरे हुए महात्माओं का यहां क्या काम. वे अपने आप में मस्त किसी गुफा किसी कन्दरा में पड़े मिलेंगे. निर्मल बाबा सिर्फ समस्याओं से घिरे लोगों को उससे निजात पाने के उपाय बताते हैं. बहुत ही आसन उपाय. यहां तो ज्योतिषाचार्य लाखों के रत्न पहनने की सलाह दे डालते हैं. मान्त्रिक सवा लाख जाप करने के नाम पर हजारों रूपये ले लेते हैं. तांत्रिक भरी-भरकम रकम लेकर अपनी सेवाएं प्रदान करते हैं. फिर निर्मल बाबा ही क्यों. और लोग क्यों नहीं.
fact n figure: निर्मल बाबा ही क्यों......!:
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2 comments:
तो क्या सिर्फ इसलिए निर्मल बाबा को छोड दिया जाए क्योंकि और भी बाबा लोग धर्मभीरू जनता को ठग रहे है?ये तो कोई तर्क नहीं हुआ.और करने वाले बाबा रामदेव और आसाराम बापू जैसे ढोंगियों का भी विरोध कर रहे हैं.आप जो तर्क कर रहे हैं उसके हिसाब से तो यदि हमारे मोहल्ले में कोई मनचला किसी लडकी को छेड रहा हैं तो उसे केवल इसलिए चुपचाप देखते रहना चाहिए कि कई बलात्कारी कानून में खामियों की वजह से खुलेआम घूम रहे है?
क्त के संग चल सके तो, जिन्दगी श्रृंगार है वक्त से मिलती खुशी भी, वक्त ही दीवार है वक्त कितना वक्त देता, वक्त की पहचान हो वक्त मरहम जो समय पर, वक्त ही अंगार है वक्त से आगे निकलकर, सोचते जो वक्त पर वक्त के इस रास्ते पर, हर जगह तलवार है क्या है कीमत वक्त की, जो चूकते, वो जानते वक्त उलझन जिन्दगी की, वक्त से उद्धार है वक्त होता क्या किसी का, चाल अपनी वक्त की उस रिदम में चल सुमन तो, खार में भी प्यार है
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