चर्चित ब्लौगर अविनाश वाचस्पति बता रहे हैं उभार के प्रकार।
जिस पर कुछ ब्लॉगर्स आपत्ति जता रहे हैं .
देखिये
उभार, भार, प्रभार : नहीं कुछ है बेकार
>> सोमवार, 30 अप्रैल 2012
इस पर
शिवम् मिश्रा की टिप्पणी
विजय जी इतनी बड़ी गलतफहमी साथ ले कर मत चलिए जो हिन्दी साहित्य अगर इन जैसे के भरोसा रहा तो फिर हो लिया उसका भी कल्याण ! कल तक यह बड़ी बड़ी बाते कर रहे थे और देख लीजिये आज ...
"मुझ पर आप सारे कानून और नीति नियम थोपना चाहते हैं परंतु चिकनी चमेलियों पर नहीं।"
अच्छा तो अब हिन्दी ब्लॉग जगत की महिलाएं इस नाम से जानी जाएंगी ... वाह वाह ... क्या बात है ... सच मे केवल यह ही रह गया था ... यह करेंगे भला हिन्दी साहित्य और हिन्दी ब्लोगिंग का ... थू है ऐसे विचार पर ... गेट वेल सून !
अच्छा तो अब हिन्दी ब्लॉग जगत की महिलाएं इस नाम से जानी जाएंगी ... वाह वाह ... क्या बात है ... सच मे केवल यह ही रह गया था ... यह करेंगे भला हिन्दी साहित्य और हिन्दी ब्लोगिंग का ... थू है ऐसे विचार पर ... गेट वेल सून !
5 comments:
http://indianwomanhasarrived.blogspot.in/2012/05/ncw.html
यह लेख दिख नहीं रहा.
शायद हटा लिया गया हैं.महिलाओं के लिए ऐसे संबोधन कोई जुतखोर ही दे सकता हैं लेकिन पीठ पीछे ही.वास्तविक जगत में ये भी ये ऐसा कुछ नहीं कह पाएँगे क्योंकि पता हैं बहुत पिटेंगें.
शिवम् जी और रचना जी ने विरोध कर अच्छा किया.आपके यहाँ पोस्ट लगाने से ये तो पता चला कि ये गली के शोहदे वाली हरकत किसकी हैं वर्ना हमें तो पता ही नहीं चलता.धन्यवाद!
मैं भी आपत्ति दर्ज़ करता हूं।
वैशाख मास में वैशाखनंदन ने ऐसा क्या लिख दिया कि मारे शरम के मिटाना पड़ा ! ऐसा किसी को नहीं लिखना चाहिए जो मिटाना पड़े। सेम..सेम।
शीर्षक अजीब है.
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