Monday, May 21, 2012

मेरा आत्म सम्मान अभी ज़िंदा है - Mahendra Shriwastawa

जनाब महेंद्र श्रीवास्तव जी एक पत्रकार हैं, एक ब्लॉगर हैं और उनकी सबसे बड़ी ख़ूबी यह है कि वह सच कह देते हैं। जब लोग मसलहतें और हानि लाभ देखकर सच बोलते हैं। वह तब भी इसलिए सच बोलते हैं कि सच ही बोलना चाहिए और जब आत्म सम्मान से जुड़ा हुआ मुददा हो तो सच ज़रूर ही बोलना चाहिए।

जनाब महेंद्र श्रीवास्तव जी परिकल्पना के दशक का ब्लॉगर चयन पर हुए विवाद पर कहते हैं कि
हर शख्स अपनी तस्वीर को बचाकर निकले,
ना जाने किस मोड़ पर किस हाथ से पत्थर निकले।



दरअसल मैने कहा ना कि जब आदमी ईमानदार ना हो तो वह क्या कह रहा है, क्या कर रहा है, खुद नहीं समझ पाता। अगर ऐसा होता तो जो बातें डा. दिव्या की हमारे भाई को आसानी से समझ में आ गईं वही बातें मैने कहीं थी तो उन्हें समझ में क्यों नहीं आई ? मैने कहा तो मुझसे कुतर्क करते रहे। तब मुझे लगा कि भगवान राम ने ठीक ही कहा था कि "भय बिन होय ना प्रीत"। क्योंकि सभी को पता है कि मैं अपनी बातें बहुत ही संयम तरीके से कहता हूं, आप माने ना माने मेरी बला से। लेकिन डा. दिव्या बहन आयरऩ लेडी है, वो पहले आराम से बात समझाने की कोशिश करतीं है, अच्छा हो कि लोग बात यहीं आसानी से समझ जाएं, वरना फिर तो उसकी खैर नहीं। क्योंकि सब जानते  हैं कि परिकल्पना से कहीं ज्यादा उनकी पाठक संख्या है। वो कुछ कहतीं है तो समझ लेना चाहिए कि ब्लाग का एक बडा तपका ये बात कह रहा है। परिकल्पना से कई गुना उनकी पाठक संख्या भी है। ऐसे में जब उन्होंने ये मु्ददा उठाया तो परिकल्पना परिवार में हडकंप मच गया। उन्हें लगा कि विरोधियों की ताकत बढ़ रही है, बस उन्हें अपने खेमें में करने की साजिश शुरू हो गई। लेकिन उनके आड़ मे जो कुछ किया जा रहा है, उससे बदबू आ रही है।
...नाराज लोगों के मुंह बंद कराने के लिए उनका नाम सम्मान सूची में डाला जा रहा है। ज्यादा नाराजगी हुई तो हो सकता है कि उन्हें दिल्ली आने जाने के लिए हवाई जहाज का टिकट और यहां पांच सितारा होटल का प्रबंध कर दिया जाए। वैसे ये सबके लिए तो संभव नहीं है, गुड लिस्ट वाले ही इसका लाभ उठा पाएंगे। बहरहाल अब कौन समझाए आयोजकों को ? वे कुछ लोगों को तो पांच सितारा होटल और हवाई जहाज का टिकट दे सकते हैं, पर 41 को देना तो मुझे नहीं लगता कि इनके लिए संभव होगा। फिर जिन लोगों का नाम मजबूरी मे रखा गया है, उन्हें तो तारीख बता दी जाएगी और कहा जाएगा कि वो खुद ट्रेन से पहुंचे। खैर डैमेज कंट्रोल का जो तरीका अपनाया जा रहा है उससे तो मुझे लगता है कि ये आयोजक या तो बेचारे बहुत सीधे हैं या फिर 24 कैरेट के मूर्ख। क्योंकि कोई भी ब्लागर दशक के पांच ब्लागर में नहीं चुना जाता है, तो उसे ज्यादा तकलीफ नहीं होगी, उसे लगेगा कि पांच लोगों को ही तो चुनना था, नहीं आया होगा मेरा नाम। पर अब 41 में नाम नही आया तब तो खैर नहीं। उसे लगेगा कि जरूर कुछ गडबड़झाला है।
उनकी पूरी पोस्ट और ब्लॉगर्स की टिप्पणियां देखने के लिए लिंक यह है-

सम्मान से बहुत बड़ा है आत्म सम्मान ...

हमारी राय इस पोस्ट पर यह है कि
बुराई तब राज करती है जबकि अच्छे लोग चुप रहते हैं।
बुरे लोग हमारे बीच में ही होते हैं। उनके सींग नहीं होते कि उन्हें शक्लों से पहचाना जा सके।
उनके कामों से उनकी पहचान होती है।
सम्मानित करना अच्छी बात है लेकिन इस काम को ईमानदारी और पारदर्शिता से किया जाए और बात जब दशक के ब्लॉगर का चुनाव करने की बात हो तो यह बात सबकी प्रतिष्ठा से अनायास ही जुड़ जाती है।
जब बात 30-40 हज़ार से ज़्यादा ब्लॉगर्स से जुड़ी हो तो उनकी राय को अहमियत देना ज़रूरी है।
‘ब्लॉग की ख़बरें‘ ने उनके हरेक सम्मान आयोजन की समीक्षा की और ब्लॉगर्स को समय रहते चेताया। इसके बावजूद भी ब्लॉगर्स सम्मान पाने के लिए दिक्कतें झेलकर दूर दराज़ तक से दिल्ली आए और पूंजीपति स्पांसर के कार्यक्रम में एक शोपीस की तरह ठगे से बैठे रहे।
अपनी ज़ाती रंजिश के चलते ईनाम की सूची ही बदल डाली। जिन ब्लॉगर्स को ईनाम देना घोषित किया था, उनमें से किसी को छोड़ दिया और किसी का नाम जोड़ दिया।
एक पत्रकार ब्लॉगर की तो ऐसी फ़ज़ीहत हुई कि वह अपना ईनाम वहीं ठुकराकर लौटे और ऐलान कर दिया कि अब हिंदी में ब्लॉगिंग नहीं करूंगा, केवल अंग्रेज़ी में ही किया करूंगा।
मज़े की बात यह है कि वापसी में उनके साथ 2 ब्लॉगर और भी थे। दोनों उनके दोस्त थे। उन्हें कुढ़ते-कलपते हुए देखकर भी वे दोनों अपने अपने ईनाम और शाल-दुशाले कसकर पकड़े बैठे रहे और उन्हें दिलासे देते रहे।
‘भड़ास‘ ब्लॉग ने उस कार्यक्रम की पूरी रिपोर्ट देते हुए बताया कि कैसे इस कार्यक्रम की भदद पिटी ?
सम्मान पाकर लौटे कुछ ब्लॉगर्स ने भी इसकी तस्दीक़ की और आइन्दा इस तरह के सम्मान के लिए दौड़ने से भी तौबा कर ली।
पिछली ग़लतियों से कुछ सीखा होता तो रवींद्र प्रभात जी फिर अपने फ़ैसले ज़बर्दस्ती न थोपते।
इस बार तो उनका आयोजन शुरू से ही विवादित और संदिग्ध हो गया है।

सुझाव केवल डा. दिव्या ने ही नहीं दिए हैं बल्कि उनसे पहले हमने दिए हैं और रचना जी, एस.एम. मासूम साहब और बहुत से दूसरे ब्लॉगर्स ने भी दिए हैं। अलबेला खत्री जी और कुछ दूसरे ब्लॉगर्स ने उनसे कुछ सवाल भी पूछे हैं। ऐतराज़ जताने वाले भी बहुत से हैं।
दिव्या जी के अलावा भी कुछ नाम आपने और दिए होते तो तस्वीर और ज़्यादा क्लियर हो जाती कि एक ब्लॉगर का विरोध दो ब्लॉगर ने किया है, ऐसा नहीं है।
आत्म सम्मान के प्रति सचेत ब्लॉगर अभी मौजूद हैं।

आपने अपनी टिप्पणियों के माध्यम से उन्हें सही राह दिखाई। आपने ‘पूरा सच‘ कहा है, यह सराहनीय है।
‘ब्लॉग की ख़बरें‘ ने 2 पोस्ट्स के माध्यम से उसे प्रकाशित किया है। दोनों ही लोकप्रिय पोस्ट्स के कॉलम में देखी जा सकती हैं।

1 comments:

Anonymous said...

ladai ladai maaf kero

gandhi ji ko yad kero

http://blondmedia.blogspot.in/

‘ब्लॉग की ख़बरें‘

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http://blogkikhabren.blogspot.com/2011/07/blog-post_3391.html

2- किसने की हैं कौन करेगा उनसे मोहब्बत हम से ज़्यादा ?
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3- क्या है प्यार का आवश्यक उपकरण ?
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4- एक दूसरे के अपराध क्षमा करो
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5- इंसान का परिचय Introduction
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6- दर्शनों की रचना से पूर्व मूल धर्म
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7- क्या भारतीय नारी भी नहीं भटक गई है ?
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8- बेवफा छोड़ के जाता है चला जा
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9- इस्लाम और पर्यावरण: एक झलक
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10- दुआ की ताक़त The spiritual power
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17- आपकी तस्वीर कहीं पॉर्न वेबसाइट पे तो नहीं है?
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18- खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम अब तक लागू नहीं
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19- दुनिया में सबसे ज्यादा शादियाँ करने वाला कौन है?
इसका श्रेय भारत के ज़ियोना चाना को जाता है। मिजोरम के निवासी 64 वर्षीय जियोना चाना का परिवार 180 सदस्यों का है। उन्होंने 39 शादियाँ की हैं। इनके 94 बच्चे हैं, 14 पुत्रवधुएं और 33 नाती हैं। जियोना के पिता ने 50 शादियाँ की थीं। उसके घर में 100 से ज्यादा कमरे है और हर रोज भोजन में 30 मुर्गियाँ खर्च होती हैं।
http://gyaankosh.blogspot.com/2011/07/blog-post_14.html

20 - ब्लॉगर्स मीट अब ब्लॉग पर आयोजित हुआ करेगी और वह भी वीकली Bloggers' Meet Weekly
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