अपनी सारी ख्वाहिशों को दर-ब-दर करता रहा.
हमसफ़र कोई न था फिर भी सफ़र करता रहा.
एक तुम जिसको किसी पर भी नहीं आया यकीं
एक मैं जो हर किसी को मोतबर करता रहा.
बेघरी ने तोड़ डाला था उसे अंदर तलक
इसलिए वो हर किसी के दिल में घर करता रहा .
काश! वो आकर मेरी तहरीर पढ़ लेता कभी
हर वरक जिसके लिए अश्कों से तर करता रहा.
धीरे-धीरे सांस भी उल्टी तरफ चलने लगी
धीरे-धीरे जह्र भी अपना असर करता रहा.
शह्र की सड़कों पे मेरे पांव ठहरे ही नहीं
गांव की पगडंडियों पे मैं गुजर करता रहा.
----देवेंद्र गौतम
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1 comments:
एक तुम जिसको किसी पर भी नहीं आया यकीं
एक मैं जो हर किसी को मोतबर करता रहा.
बहुत बढ़िया ...
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