दीन के नाम पर दुकानदारी करने वाले मुल्लाओं की एक कारस्तानी The Sin
इसलाम एक चेतना है, क़ुरआन व सीरत पढ़कर इसे अपने अंदर ख़ुद जगाना पड़ता है। यह चेतना न जागे तो इसलाम महज़ कुछ निर्जीव परम्पराओं का समूह बन कर रह जाता है और जाहिल लोग इसलाम का नाम लेकर अपनी चौधराहट क़ायम कर लेते हैं। लोग इन्हें अपना नेता, पीर और क़ाज़ी समझते हैं। ये लोग उन ग़रीबों से भी धन ऐंठ लेते हैं, जिन्हें कि ज़कात व सदक़ा दिया जाना चाहिए। आम मुसलमान को क़ुरआन, मदरसे और मस्जिद से अक़ीदत (श्रद्धा) होती है। ये मुफ़्तख़ोर चौधरी मुसलमानों की अक़ीदत का फ़ायदा उठाते हैं। इसलाम और मुसलमानों को दुनिया में बदनाम करने वाले यही हैं।
सोहराब अली द्वारा लिखित मुईनुददीन और मरियम का वाक़या ऐसे ही ज़रपरस्तों को बेनक़ाब करता है.
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