सूफ़ीमत के इतिहास में चिश्तिया सिलसिले का योगदान
सूफ़ीमत के इतिहास में
चिश्तिया सिलसिले का योगदान
भारत में सूफ़ीमत का इतिहास बिना चिश्तियों की उपलब्धि की चर्चा के अधूरा ही कहा जाएगा। बल्कि यह कहें कि भारत में सूफ़ीमत का इतिहास ही चिश्तिया सूफ़ियों का इतिहास है, तो ज़्यादा तर्क संगत होगा। यह बात ज़ोर देकर कही जा सकती है कि सूफ़ीमत को चिश्तियों के कारण भारत में काफ़ी प्रसिद्धि मिली। न सिर्फ़ धार्मिक क्षेत्र में बल्कि जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में चिश्तिया सम्प्रदाय का प्रभाव देखने को मिलता है।
सामाजिक जीवन
चिश्ती सूफ़ी संत सादा और पवित्र जीवन जीते थे। वे धन का संचय नहीं करते थे। धन को वे व्यक्ति के आध्यत्मिक विकास में बाधा मानते थे। शेख़ निज़ामुद्दीन औलिया र.अ. को छोड़कर सभी चिश्ती संत वैवाहिक जीवन जिए और उनकी संताने भी हुईं। उन्होंने राज्य से कभी दान नहीं लिया और शिष्यों के द्वारा दिए गए उपहार पर ही अपना जीवन-बसर करते रहे।
चिश्ती सूफ़ी संत सांसारिक इच्छाओं के दमन के लिए उपवास में विश्वास रखते थे। वे कम से कम वस्त्र पहनते थे, जो कि किसी तरह उनका तन ढंक सके। वे फटे-पुराने कपड़ों में ही अपना तन ढंक लेते थे। उन्होंने अपने शिष्यों से भी दरिद्रता और त्याग का जीवन जीने के लिए कहा। उन्होंने अपने मुरीदों को पास-ए-अन्फ़ास(सांसों पर नियंत्रण, प्राणायाम), ध्यान, चिल्ला (40 दिनों का कठोर त्यागपूर्ण एकांतवास) और चिल्ला-ए-माकूस (40 दिनों का त्यागपूर्ण जीवन जिसमें सिर ज़मीन पर और पैर छत या पेड़ की शाखाओं से बांध दिया जाता है) अपनाने की सलाह दी।
2 comments:
सादा जीवन संत का, सूफी संत महान ।
मूल रूप से चिश्तिया, भारत को वरदान ।
भारत को वरदान, शान्तिमय भाईचारा ।
ऊपरवाला नेक, वही जीवन आधारा ।
रविकर करे प्रणाम, करे मानवता वादा ।
सह अस्तित्व स्वीकार, बिताऊं जीवन सादा ।।
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