यूं तेरी यादों की कश्ती है रवां शाम के बाद.
जैसे वीरान जज़ीरे में धुआं शाम के बाद.
चंद लम्हे जो गुजारे थे तेरे साथ कभी
ढूंढ़ता हूं उन्हीं लम्हों के निशां शाम के बाद.
एक-एक करके हरेक जख्म उभर आता है
दिल के जज़्बात भी होते हैं जवां शाम के बाद.
Read more: http://www.gazalganga.in/2012/11/blog-post_9373.html#ixzz2Db9P0l4m
ग़ज़लगंगा.dg: काटने लगता है अपना ही मकां शाम के बाद:
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जैसे वीरान जज़ीरे में धुआं शाम के बाद.
चंद लम्हे जो गुजारे थे तेरे साथ कभी
ढूंढ़ता हूं उन्हीं लम्हों के निशां शाम के बाद.
एक-एक करके हरेक जख्म उभर आता है
दिल के जज़्बात भी होते हैं जवां शाम के बाद.
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