यूं तेरी यादों की कश्ती है रवां शाम के बाद.
जैसे वीरान जज़ीरे में धुआं शाम के बाद.
चंद लम्हे जो गुजारे थे तेरे साथ कभी
ढूंढ़ता हूं उन्हीं लम्हों के निशां शाम के बाद.
एक-एक करके हरेक जख्म उभर आता है
दिल के जज़्बात भी होते हैं जवां शाम के बाद.
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ग़ज़लगंगा.dg: काटने लगता है अपना ही मकां शाम के बाद:
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आम गलतियां, जो स्मार्टफोन को नुकसान पहुंचा सकती हैं
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आप स्मार्टफोन की उम्र कैसे बढ़ा सकते हैं? इस सवाल का जवाब यह है कि आप उन आम
गलतियों से बचें, जो साधारण स्मार्टफोन यूजर्स अक्सर करते हैं। पहली गलती है
स्मा...
3 comments:
बहुत बढ़िया ।
भाई देवेन्द्र जी-
त्योहारों के बाद सुन्दर गजल पढने को मिली -
शुभकामनायें-
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवार के चर्चा मंच पर ।।
behatarin.....nwinta liye hue prastuti
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