यूं तेरी यादों की कश्ती है रवां शाम के बाद.
जैसे वीरान जज़ीरे में धुआं शाम के बाद.
चंद लम्हे जो गुजारे थे तेरे साथ कभी
ढूंढ़ता हूं उन्हीं लम्हों के निशां शाम के बाद.
एक-एक करके हरेक जख्म उभर आता है
दिल के जज़्बात भी होते हैं जवां शाम के बाद.
Read more: http://www.gazalganga.in/2012/11/blog-post_9373.html#ixzz2Db9P0l4m
ग़ज़लगंगा.dg: काटने लगता है अपना ही मकां शाम के बाद:
'via Blog this'
प्रशासन का क्या दोष...शहरवासी ही गड्ढों से बचकर नहीं चलते हैं
-
भास्कर सम्पादक भाई सर्वेश शर्मा जी का आर्टिकल, प्रशासन का क्या
दोष...शहरवासी ही गड्ढों से बचकर नहीं चलते हैं
*सर्वेश शर्मा/ बात-बेबाक
जरा, बचकर चलिए जन...
2 comments:
बहुत बढ़िया ।
भाई देवेन्द्र जी-
त्योहारों के बाद सुन्दर गजल पढने को मिली -
शुभकामनायें-
behatarin.....nwinta liye hue prastuti
Post a Comment