यूं तेरी यादों की कश्ती है रवां शाम के बाद.
जैसे वीरान जज़ीरे में धुआं शाम के बाद.
चंद लम्हे जो गुजारे थे तेरे साथ कभी
ढूंढ़ता हूं उन्हीं लम्हों के निशां शाम के बाद.
एक-एक करके हरेक जख्म उभर आता है
दिल के जज़्बात भी होते हैं जवां शाम के बाद.
Read more: http://www.gazalganga.in/2012/11/blog-post_9373.html#ixzz2Db9P0l4m
ग़ज़लगंगा.dg: काटने लगता है अपना ही मकां शाम के बाद:
'via Blog this'
वित्त वर्ष 1 अप्रैल से क्यों?
-
ईस्ट इंडिया कम्पनी से ब्रिटिश सरकार को भारत की सत्ता हस्तांतरण होने के बाद
1860 में पहली बार बजट प्रणाली प्रारंभ की गई। 1867 में 1 अप्रैल से 31 मार्च
तक...
2 comments:
बहुत बढ़िया ।
भाई देवेन्द्र जी-
त्योहारों के बाद सुन्दर गजल पढने को मिली -
शुभकामनायें-
behatarin.....nwinta liye hue prastuti
Post a Comment