मैं उन लोगों में से हूं जो एक दौर में अफजल गुरू को फांसी दिए जाने के प्रबल समर्थक थे। फांसी के खिलाफ उठने वाली हर आवाज को मैं भी राष्ट्रद्रोही मानता था।
चिट्ठी से अफजल के बारे में कुछ ऐसी चीजें जानने को मिलीं जिनसे मेरी धारणा में थोड़ा सा बदलाव हुआ।...
मुझे लगता है कि अफजल के मन का उग्रवाद भी इसी ‘बलात्कार’ शब्द की परिणति थी।
उसकी फांसी के पहले और बाद में भी मेरी उत्सुकता का विषय रहा कि एक आतंकी के पक्ष में पूरा श्रीनगर लामबन्द क्यों हो जाता है? क्यों अफसल के शव के लिए कश्मीर जलने लगता है? इन सवालों का जवाब मुझे कश्मीर की वादियों से नहीं बल्कि पूर्वोत्तर की उन पहाड़ियों से मिलता है जहां की बुजुर्ग महिलाएं सड़क पर उतरकर सुरक्षाबलों को ललकारती हैं कि ‘आओ मेरा बलात्कार करो....’।
यह सही है कि कश्मीर हो या फिर पूर्वोत्तर, बगैर सुरक्षाबलों के हमारी राष्ट्रीय अस्मिता खतरे में पड़ जाएगी। वहां सैन्य ताकत चाहिए लेकिन हमारी मां-बहनों के बलात्कार की कीमत पर नहीं।
मान-मर्दन से पैदा होंगे और अफजल
Ved Prakash Pathak |
0 comments:
Post a Comment