कागजी इंकलाब की बातें.
बंद करिए किताब की बातें.
कितने अय्यार हैं जो करते हैं
हड्डियों से कबाब की बातें.
पढ़ते रहते हैं हम रिसालों में
कैसे-कैसे अज़ाब की बातें.
नींद आखों से दूर होती है
जब निकलती हैं ख्वाब की बातें.
और थोड़ा करीब आते तो
खुल के होतीं हिज़ाब की बातें.
कौन सुनता है इस जमाने में
एक ख़ाना-खराब की बातें.
---देवेंद्र गौतम
ग़ज़लगंगा.dg:
'via Blog this'
बंद करिए किताब की बातें.
कितने अय्यार हैं जो करते हैं
हड्डियों से कबाब की बातें.
पढ़ते रहते हैं हम रिसालों में
कैसे-कैसे अज़ाब की बातें.
नींद आखों से दूर होती है
जब निकलती हैं ख्वाब की बातें.
और थोड़ा करीब आते तो
खुल के होतीं हिज़ाब की बातें.
कौन सुनता है इस जमाने में
एक ख़ाना-खराब की बातें.
---देवेंद्र गौतम
ग़ज़लगंगा.dg:
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1 comments:
वाह-
बहुत बढ़िया आदरणीय-
शुभकामनायें-
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