हज़रत मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मस्जिद बिल्कुल सादा थी। शुरू में उसमें सिर पर छत और पांव के नीचे चटाई भी न थी। वह मस्जिद बिल्कुल क़ुदरती माहौल में थी। नमाज़ पढ़ने वालों पर सूरज की रौशनी हर तरफ़ से पड़ती थी, उन्हें ताज़ा हवा मिलती थी। उनके पांव ज़मीन से टच होते थे और उनके सिर पर खुला आसमान होता था। क़ुदरती माहौल सुकून देता है और बहुत सी बीमारियों से बचाता है। नए तर्ज़ की मस्जिदें बनाने की होड़ में नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मस्जिद की तर्ज़ को भुला दिया गया है।
मस्जिदों को सादा रखा जाता तो उनके नाम पर धंधा और ठगी करने वाले पनपते ही नहीं। ऐसे भी मदरसे हैं। जिनकी तरफ़ से चंदा वसूल करने वाला कोई जाता ही नहीं है। जिसे भी देना होता है। वह ख़ुद ही मनी ऑर्डर कर देता है या किसी के हाथ भेज देता है। कुछ मदरसों ने ऐसे लोगों की तनख्वाह मुक़र्रर कर रखी है। यह ठीक है। उनके घर का ख़र्च भी चलना चाहिए।
कमीशनख़ोरी और ठगी इससे बिल्कुल अलग चीज़ है। चंदा वुसूल करने वाले ये लोग भी दाढ़ी, टोपी और शरई लिबास में होते हैं। इनके वेश-भूषा को देखकर धोखा न खाएं और अपनी रक़म चंदे में देने से पहले यह ज़रूर देख लें कि आप अपनी रक़म किसी ठग या कमीशनख़ोर को तो नहीं दे रहे हैं ?
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1 comments:
दीन धर्म में ठगों का दाख़िला लोगों की लापरवाही की वजह से ही होता है.
आपने ख़बरदार किया, इसके लिए शुक्रिया.
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