कौन सी बातों पर लोग ज़्यादा ध्यान देते हैं ?
इस नज़र से जब देखा गया तो प्रिय प्रवीण जी की पोस्ट पर 16 हाइली क्वालीफ़ाईड इंटेलेक्चुअल्स के कमेंट मौजूद थे।
दूसरी तरफ़ प्रिय महेश बारमाटे ‘माही‘ जी की पोस्ट थी। जो आजकल हिंदी ब्लॉगिंग गाइड लिखने में एक ऐतिहासिक रोल निभा रहे हैं। हिंदी ब्लॉगिंग कैसे सामान्य जनता के लिए सुलभ हो सके ?
वे इस चिंता में घुले जा रहे हैं लेकिन उनकी पोस्ट पर शून्य कमेंट हैं।
ब्लॉग जगत का हाल उल्टा है।
यहां वर्जनाएं तोड़ना बुद्धिजीवी कहलाने के लिए परमावश्यक है।
यहां आपको समलैंगिकता पर बात करते हुए औरत-मर्द इकठ्ठे मिल जाएंगे और माही जी की पोस्ट पर कोई अकेले भी न मिलेगा। हालांकि ‘हमारीवाणी‘ पर अब तक 17 लोग उसे पढ़ चुके हैं और टॉप 5 में वह नज़र आ रही है। उनका काम भी सकारात्मक है और वह किसी ऐसे वर्ग से भी नहीं हैं, जिन्हें अलग थलग डालने की क़वायद अक्सर ही की जाती है।
तब क्या वजह है कि लोग काम की बात छोड़कर सेक्स की बातें कर रहे हैं ?
क्या इनके अंदर काम के प्रति किसी तरह की कोई कुंठा दबी हुई है ?
यह सवाल परेशान सा कर सकता है।
कई बार मनोरोग बड़े जटिल हो जाते हैं।
समलैंगिकों की चिंता के साथ साथ उनके हिमायतियों को अपनी चिंता भी समय रहते कर लेनी चाहिए।
बहरहाल हिंदी ब्लॉग जगत में अपेक्षाकृत कम लाभदायक या रददी लेख ज़्यादा प्रशंसा और ध्यान पा रहे हैं, यह एक हक़ीक़त है।
इस नज़र से जब देखा गया तो प्रिय प्रवीण जी की पोस्ट पर 16 हाइली क्वालीफ़ाईड इंटेलेक्चुअल्स के कमेंट मौजूद थे।
माननीय मंत्री जी ने तो विकसित विश्व से आयातित बीमारी कह दिया, पर क्या यह मुद्दा इतना आसान है ?
महेश बारमाटे ‘माही‘ |
वे इस चिंता में घुले जा रहे हैं लेकिन उनकी पोस्ट पर शून्य कमेंट हैं।
हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड : एक नया अध्याय - भाग २
हम जब किशोर थे तो सेक्स की बातें करना बुरा माना जाता था। हमारे आस-पास भी इस पर बातचीत की कुछ मर्यादाएं हैं। औरत और मर्दों को मिक्स होकर तो हमने सेक्स पर बात करते शायद ही कभी सुना हो और समलैंगिकता पर तो आज तक नहीं सुना।ब्लॉग जगत का हाल उल्टा है।
यहां वर्जनाएं तोड़ना बुद्धिजीवी कहलाने के लिए परमावश्यक है।
यहां आपको समलैंगिकता पर बात करते हुए औरत-मर्द इकठ्ठे मिल जाएंगे और माही जी की पोस्ट पर कोई अकेले भी न मिलेगा। हालांकि ‘हमारीवाणी‘ पर अब तक 17 लोग उसे पढ़ चुके हैं और टॉप 5 में वह नज़र आ रही है। उनका काम भी सकारात्मक है और वह किसी ऐसे वर्ग से भी नहीं हैं, जिन्हें अलग थलग डालने की क़वायद अक्सर ही की जाती है।
तब क्या वजह है कि लोग काम की बात छोड़कर सेक्स की बातें कर रहे हैं ?
क्या इनके अंदर काम के प्रति किसी तरह की कोई कुंठा दबी हुई है ?
यह सवाल परेशान सा कर सकता है।
कई बार मनोरोग बड़े जटिल हो जाते हैं।
समलैंगिकों की चिंता के साथ साथ उनके हिमायतियों को अपनी चिंता भी समय रहते कर लेनी चाहिए।
बहरहाल हिंदी ब्लॉग जगत में अपेक्षाकृत कम लाभदायक या रददी लेख ज़्यादा प्रशंसा और ध्यान पा रहे हैं, यह एक हक़ीक़त है।
यह बात हमने आज इसलिए कह दी क्योंकि आज ही हमसे फैज़ साहब ने कहा था की 'सच बोल दो'
सो हमने बोल दिया है.
किसी को कोई शिकायत हो तो ज़िम्मेदारी फैज़ साहब पर पड़नी चाहिए.
लिहाज़ा शिकायत भी वहीं करना मुनासिब है.
लिंक यह थामिए,
शब बखैर, रात आधी हो चली है अब कुछ हमें भी कर लेने दिया जाए.
7 comments:
प्रवीण जी ने अन्तिम वाक्य कहकर शायद किसी का दिल दुखाया है। उनसे मेरी विनती है कि किसी काम के बारे में इस तरह न कहें जबकि इसका लेखक अपना समय और मेहनत दोनों लिखने में खर्च कर रहा है। बुरा न मानिएगा प्रवीण शाह साहब।
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आदरणीय व प्रिय डॉ० अनवर जमाल साहब,
आपकी इस आपत्ति व आहत होने को समझ सकता हूँ...जानता हूँ कि आप एक धार्मिक शख्स हैं और आपका धर्म इस तरह की बातों की चर्चा तक की भी इजाजत नहीं देता...
पर इस नयी दुनिया में मुद्दे कालीन के नीचे दबा देने मात्र से खत्म नहीं हो जाते... इस बात पर जरूर गौर कीजिये...
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(प्रिय चंदन कुमार मिश्र जी के कहे को ध्यान में रख मैंने अपनी पहले की टीप के अंतिम वाक्य को हटा यह टिप्पणी फिर से दी है... यदि किसी का भी दिल दुखा है तो क्षमाप्रार्थी भी हूँ...)
...
अब मैं क्या कहूँ यहाँ ?
जानता हूँ की मेरे लेख जिनपर कभी १० से ज्यादा कमेंट्स भी आये हैं, आज एक भी कमेन्ट मुझे नसीब नहीं हो रहा है...
लगता है कि ये मेरे ब्लॉग्गिंग कैरियर की नयी शुरुआत है...
शायद भगवान् को यही मंजूर हो..
इसी आस में मैं लिख रहा हूँ कि
मेरा भी वक्त आएगा...
जब लोग मुझे गुपचुप ही सही पढेंगे जरूर...
और मेरे काम को सारे जग में सराहा जायेगा...
@ Mahesh ji ! मैंने ‘ब्लॉग की ख़बरें‘ पर पोस्ट इसीलिए बनाई है कि हरेक अपना चेहरा देख ले और जान ले कि सकारात्मक काम करने वालों का हौसला जाने अनजाने कैसे तोड़ रहे हैं वे ?
अब किसी के पास कोई जवाब ही नहीं है तो वह देगा क्या !
हौसलाभंजक तत्वों की परवाह मैंने कभी नहीं की, आप भी मत करना। ये सब आपका हौसला तोड़ने के हथकंडे हैं।
इनसे घबराना नहीं चाहिए।
आदमी को बस अपने काम पर ध्यान देना चाहिए।
अब आपके पास गूगल और फ़ेसबुक पर कई ग्रुप हैं और सभी अच्छे जा रहे हैं। आपकी पोज़ीशन पहले के मुक़ाबले आज मज़बूत है और आने वाले समय में आप और भी ज़्यादा मज़बूत होकर उभरेंगे।
शुभकामनाएं,
धन्यवाद !
धन्यवाद अनवर जी...
आप न होते तो शायद मैं इतनी आगे तक न पहुँच सका होता...
मुझे लोगों के कमेन्ट की नहीं बल्कि खुद के आत्म विश्वास की जरूरत है जिसे आप हमेशा बढ़ाते रहते हैं...
मैंने कहीं सुना था कि
अगर कोई आपके कार्य से जलने लगा हो, आपकी बुराई करने लगा हो और आपका मनोबल गिराने का प्रयास करने लगे
तो यह समझना कि आप तरक्की कर रहे हैं और सफलता बहुत जल्द आपके कदमो में होगी, बस अपना आत्मविश्वास न खोना...
@ प्रिय महेश जी ! आपने बिल्कुल सही सुना है। यह दुनिया है और यहां हर अकसर आदमी अपने आप को बहुत बड़ा समझते हैं और दूसरों से उम्मीद करते हैं कि वे उनके विचार सुनें और सराहें जबकि वे ख़ुद दूसरों के लिए यह सब करने के लिए तैयार ही नहीं हैं।
हिंदी ब्लॉगर्स को नई ताक़त नए लोगों के आने से ही मिलेगी। पुराने लोगों में से बहुत से निकल लिए हैं पतली गली से और जो जमे बैठे हैं इनमें से भी बहुत से ऐसे हैं जिनके पास अब नया देने के लिए कुछ नहीं है। बस अपने पैसे के बल पर अपनी चैपाल जमाए बैठे हैं।
इनकी परवाह करना बेकार है। अपनी मंज़िल तय करके आप अपने रास्ते पर आगे बढ़ते रहिए। लोगों को कुछ ऐसा देते रहिए जिससे उन्हें कुछ नया ज्ञान मिले, उनकी कोई समस्या आप दूर करते रहिए। नए लोग आपसे जुड़ते चले जाएंगे और वे लोग देखते रह जाएंगे जो सोचते हैं कि लोगों को ब्लॉगर होने सर्टिफ़िकेट हमसे लेना चाहिए।
वहम है उनका, धूल की तरह उड़ा दीजिए, उनका सारा वहम और बस अपने लेखन पर ध्यान दीजिए।
अपने ब्लॉग पर ट्रैफ़िक बढ़ाने पर ध्यान दीजिए और यह बिल्कुल भी न देखिए कि आपके लेख पर टिप्पणी एक आई है या दस !!!
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