आदरणीय डा. अरविन्द मिश्रा जी का यह कथन हिंदी ब्लॉगर्स के दरम्यान चल रही एक लंबी और आलिमाना बहस का हिस्सा है, जिसे देखा जा सकता है निम्न पोस्ट पर
और ख़ुदा ने उनकी किसमत में जि़ला वतनी न लिखा होता तो उन पर दुनिया में भी
(दूसरी तरह) अज़ाब करता और आख़ेरत में तो उन पर जहन्नुम का अज़ाब है ही
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सूरए अल हश्र
सूरए अल हश्र मक्का में नाजि़ल हुआ, और उसकी चैबीस (24) आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
जो चीज़...
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